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नमाज : एक प्रमुख इबादत

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अल्लाह न्याय और भलाई और रिश्तेदारों के हक अदा करने का आदेश देता है. बुराई, अश्लीलता और जुल्म व ज्यादती से रोकता है. ( कुरान-16:90)

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नसीर अफसर

इस्लाम धर्म के पांच मुख्य स्तंभ हैं. इसमें तौहीद (एकेश्वरवाद), नमाज (प्रति दिन पांच बार), रोजा (एक माह का उपवास), हज (मक्का की तीर्थयात्रा) और जकात (आय की ढाई प्रतिशत रकम दान करना) शामिल है. यह पांचों स्तंभ अल्लाह की इबादत के तरीके हैं और फर्ज भी हैं. पहले और पांचवें स्तंभ में कोई शारीरिक कष्ट नहीं होता है, लेकिन दूसरा, तीसरा और चौथा स्तंभ ऐसी इबादतें हैं, जिनसे आबिदों (इबादत करनेवालों) को शारीरिक कष्ट तो जरूर होता है, मगर इस कष्ट से जो रूहानी (आत्मिक ) लुत्फ की प्राप्ति होती है, उसका बयान संभव नहीं है.

हर दिन पांच बार की नमाज हर मुस्लिम बालिग नर व नारी पर अनिवार्य है. जिसका पालन नहीं करने पर व्यक्ति दंड का भागीदार होगा. नमाज के समय प्रातःकाल से लेकर रात्रिकालीन तक है. पहली नमाज फज्र (सूर्योदय से एक घंटा पहले) अदा की जाती है. नमाज की पुकार सुन नमाजी अपने बिस्तर को त्याग कर वजू करता है. फिर अपने मालिक की इबादत में सजदारेज हो जाता है. अल्लाह अपने ऐसे बंदों से बेहद खुश होता है.

जो यह समझता है कि नमाज नींद से बेहतर है. फिर उस नमाजी के दिनचर्या के कार्य भी सवाब (पुण्य) में शामिल किये जाते हैं. पैगंबर (स) ने फरमाया है कि नमाज उनकी आंखों की ठंडक है. नमाज के लिए हर नमाजी को तहारत (पवित्रता) से रहना लाजमी होता है. पूरे शरीर और वस्त्र को पाक- साफ रखना अनिवार्य होता है.

हदीस है कि नमाज, नमाजियों को हर बुराई और गलत कामों से रोकती है. यदि हर मुसलमान सच्चा नमाजी हो जाये तो उसके आसपास तमाम बुराइयों का खात्मा हो जाये. नमाज एक ऐसी इबादत है जो सिर्फ और सिर्फ एक अल्लाह के लिए होती है. जब नमाजी नमाज अदा कर रहा होता है, तो वह अपने आप को अल्लाह के करीब पाता है.

यह दिन व शाम के विभिन्न समयों में अदा की जाती है. इस्लाम में कुछेक अनिवार्यता धन से संबंधित है, जहां आर्थिक रूप से कमजोर को रियायत हासिल है, लेकिन नमाज की अदायगी में अनिवार्यता को कठोरता से लागू की गयी है.

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