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जगन्नाथ यात्रा 2020: जानिए भगवान जगन्नाथ इस समय क्यों रहते हैं एकांतवास में

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चार पवित्र धामों में से एक धाम जगन्नाथ धाम है. जगन्नाथ धाम में भगवान विष्णु जगन्नाथ रूप में विराजते है. भगवान जगन्नाथ की जन्मतिथि ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन है. इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा से मिलने जाते है. हजारों वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है. ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र व बहिन सुभद्रा सहित 108 कलशों से पवित्र स्न्नान करते हैं.

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चार पवित्र धामों में से एक धाम जगन्नाथ धाम है. जगन्नाथ धाम में भगवान विष्णु जगन्नाथ रूप में विराजते है. भगवान जगन्नाथ की जन्मतिथि ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन है. इस दिन भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा से मिलने जाते है. हजारों वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है. ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र व बहिन सुभद्रा सहित 108 कलशों से पवित्र स्न्नान करते हैं. इस दिन भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाली जाती है. इस बार कोरोना ने देश के सभी त्योहारों की रौनक छीन ली है. अब भगवान जगन्‍नाथ की हर साल आयोजित होने वाली भव्‍य रथयात्रा पर भी कोरोना के कारण फीका पड़ गया है.

मान्यता है कि अत्यधिक स्नान करने के कारण भगवान जगन्नाथ और दोनों भाई बहन इस समय बीमार पड़ जाते हैं. इसलिए उनको एकांतवास में रखा जाता है. पंद्रह दिन के लिए मंदिर बंद कर दिया जाता है. उस समय सिर्फ पुजारी वैद्य के रूप भगवान की सेवा कर उनका इलाज करते हैं. बीमार पड़ने के बाद भगवान वैसे ही रहते हैं जैसे कोई भी बीमार व्यक्ति रहता है. रत्न सिंहासन वाले वस्त्र उतार कर बिल्कुल सादे सूती श्वेत रंग के आरामदेह वस्त्र पहनते हैं. इस समय सभी आभूषण उतार दिए जाते हैं. भोजन में केवल फल, जूस और तरल पेय उन्हें चढ़ाये जाते है. पांचवें दिन बड़ा उड़िया मठ से फुलेरी तेल आता है, जिससे भगवान की हल्के-हल्के मालिश की जाती है.

भगवान पर रक्त चंदन और कस्तूरी का लेप किया जाता है. इस समय भारी पोशाक, गहने-फूलों का श्रृंगार, धूप-दीप, आरतियां यानी सुबह से रात तक व्यस्त दिनचर्या अणासर में भगवान को इन क्रियाओं से राहत मिल जाती है. इस दौरान भगवान को हल्का खाना जैसे दूध, फलों के जूस और कई आयुर्वेदिक औषधियों के मिश्रण से काढ़ा बनाकर दिया जाता है. भगवान जगन्नाथ को इस समय हल्दी, हरड़, नीम, बहेड़ा, लौंग आदि अनेक जड़ी बूटियों के काढ़े से नर्म मोदक बनाकर भगवान को दसवें दिन खिलाए जाते हैं. भगवान जगन्नथ इस समय 15 दिन तक अराम करते है. पंद्रह दिनों के लिए मंदिर बंद रहता है और भक्त मंदिर के बाहर से ही उनको शीश झुका कर उनका हाल- चाल पूछते हैं.

जानें क्यों किया जाता है भगवान जगन्नाथ का अभिषेक

शास्त्रों के अनुसार विश्वकर्मा जब मूर्ति बना रहे थे, तब राजा इंद्रदयुम्न के सामने शर्त रखी कि वे दरवाजा बंद करके मूर्ति बनाएंगे. इस दौरान कोई भी प्रवेश नहीं करेगा. शर्त रखी गई थी कि जब तक मूर्तियां नहीं बन जातीं तब तक अंदर कोई प्रवेश नहीं करेगा. शर्त रखी गई थी कि मूर्ति बनने से पहले दरवाजा पहले खुल जाएगा तो वे मूर्ति बनाना छोड़ देंगे. बंद दरवाजे के अंदर मूर्ति निर्माण किया जा रहा है या नहीं, यह जानने के लिए राजा नित्यप्रति दरवाजे के बाहर खड़े होकर मूर्ति बनने की आवाज सुनते थे.

मान्यता है कि भगवान जब बालक थे उस समय ठंडे जल से बहुत अधिक स्नान कर लिए थे. इसलिए उन्होंने बीमार पड़ गये थे, इसलिए तब से ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा से अमावस्या तक भगवान की बीमार शिशु के रूप में सेवा की जाती है. इसके बाद जब भगवान स्वस्थ्य होकर अपने मौसी के घर जाते है. रथ यात्रा से एक दिन पहले भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा स्वस्थ होते हैं. तब उन्हें मंदिर के गर्भ गृह में वापस लाया जाता है. इसके बाद भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी रोहिणी से भेंट करने गुंडीचा मंदिर जाते हैं. भगवान के गुंडीचा मंदिर में आने पर यहां उत्सवों और सांस्कृति कार्यक्रमों का बड़े धूमधाम और उत्साह के साथ आयोजन किया जाता है. भगवान यहां 9 दिन तक रहते हैं और उसके बाद अपनी मौसी के घर से वापस अपने मंदिर में लौट जाते हैं.

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