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अध्यात्म की राह पर आइआइटियन

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टाटा इंस्टीटय़ूट ऑफ सोशल सांइसेज के प्रोफेसर एम कुंहामन के अनुसार, अध्यात्म की तरफ युवाओं के जाने का कारण जटिल समाज (कंप्लेक्स सोसाइटी) है. अध्यात्म के जरिये एक तरह से वे अपना आत्मविश्वास प्राप्त करना चाहते हैं.

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पारंपरिक रूप से भारत में आश्रम का अभिप्राय गुरुओं के माध्यम से जनसाधारण में अध्यात्म का संचार करना रहा है. भौतिकता, मोह, लिप्सा से दूर, एकांतवास में रहने वाले साधुओं से ही अध्यात्म परिभाषित होता रहा है. पर ज्ञान, सूचना व संचार के दौर में आधुनिक तकनीकों से लैस बाबा आइआइटी-आइआइएम से पढ़े हैं और वे भक्तों से वीडियो कांफ्रेंसिंग, स्मार्टफोन, लैपटॉप, माइक्रोब्लॉगिंग साइटों ट्विटर, फेसबुक आदि से संवाद स्थापित करते हैं. कुछ आइआइटियन कॉरपोरेट ऑफिस की तर्ज पर अपने आश्रम चला रहे हैं, तो कुछ मल्टीनेशनल कंपनियों में बड़े ओहदा पर रहते हुए भी अध्यात्म की राह पर हैं.

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हालांकि पारंपरिक साधुओं की भांति वे भी गले में तुलसी माला, ललाट पर चंदन का टीका और गेरुवा या श्वेत वस्त्र धारण करते हैं, पर वे उनसे अलग बड़ी प्रवीणता से अंगरेजी में बात करते हैं. जब वे आत्मा के अस्तित्व और मोक्ष पर उपदेश देते हैं, तो उनमें भौतिकी, न्यूरोसाइंस, अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान से जुड़े तथ्यों का उल्लेख होता है. मध्यप्रदेश के रहने वाले संत शिरोमणि श्री लाहिड़ी गुरुजी ने आइआइटी, वाराणसी से बीटेक किया है. वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में डायरेक्टर हैं. उनके अनुसार, उनके 30 लाख अनुयायी हैं.

उनका वेबसाइट उन्हें सर्वाधिक प्रभावशाली और चमत्कारिक आध्यात्मिक गुरु बताता है. लाहिड़ी गुरुजी बताते हैं कि उनके अनुयायियों में पूर्व सेना प्रमुख वीके सिंह, कनार्टक के पूर्व मंत्री जगदीश शेट्टार और सुरेश कुमार, भाजपा के राष्ट्रीय सचिव अमित शाह, जबलपुर के आइजी राजेश चावला और दूसरे प्रभावशाली लोग हैं. गुरुजी कोई डोनेशन नहीं लेते. वह अपने आध्यात्मिक कामों के लिए अपने वेतन का ही इस्तेमाल करते हैं. वह सामाजिक कार्यो में भी हिस्सा लेते हैं. गुरुजी का मानना है कि युवा उनसे आइआइटियन होने के कारण जुड़ते हैं. वे वैदिक ज्ञान और उसके इस्तेमाल के बारे में जानना चाहते हैं, पर आज के संदर्भ में. मसलन आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में क्या उपयोग हो सकता है या जेनेटिक इंजीनियरिंग, जन वितरण प्रणाली या दूसरे क्षेत्र में वैदिक ज्ञान का क्या लाभ हो सकता है.

आइआइटी दिल्ली से पीएचडी और गणित के प्रोफेसर रहे स्वामी रविंद्रानंद का मानना है कि आज की पीढ़ी व्यावहारिक और तार्किक ज्ञान पर विश्वास करती है. महज पुराणों की कहानियां बता कर आप युवाओं को उनके प्रश्नों का उत्तर नहीं दे सकते. रविंद्रानंद कहते हैं जैसे आइआइएम अहमदाबाद ने अपने छात्रों को लीडरशिप गुण बताने के लिए सौरव गांगुली पर स्टडी किया था, उसी तरह वह भी अपने अनुयायियों को सचिन तेंडुलकर का उदाहरण देकर अध्यात्म की राह बताते हैं.

उनके अनुसार, अध्यात्म का मतलब ध्यान है, जिसके जरिये कोई व्यक्ति श्रेष्ठता (एक्सेलेंस) को प्राप्त कर सकता है. वह अपनी संस्था ‘एकेडमी ऑफ कुंडलिनी योग एंड क्वांटम सोल’ चलाते हैं. अपने आध्यात्मिक कार्यो के लिए वह प्रतिमाह 40 हजार रुपये खर्च करते हैं. स्वामी रविंद्रानंद के उपदेशों में प्रेम, सेक्स और गर्लफ्रेंड भी होते हैं. रविंद्रानंद लाहिड़ी गुरुजी से अलग डोनेशन लेते हैं. उनके आध्यात्मिक उपदेशों और मेडिटेशन सेशन के लिए भक्तों को शुल्क देना पड़ता है.

इन आधुनिक बाबाओं का तर्क यह है कि आइआइटियन पृष्ठभूमि के चलते, युवाओं का उन पर अधिक भरोसा होता है. जैसा कि आइआइटी दिल्ली और आइआइएम कोलकाता से निकले स्वामी मुकुंदानंद बताते हैं कि वह संन्यासी इसलिए नहीं बने कि उनके पास कोई विकल्प नहीं था, बल्कि इसलिए कि जीवन में कुछ बड़ा करना चाहते थे और अध्यात्म से बड़ा कुछ हो नहीं सकता था. मुकुंदानंद के शिष्यों में इंजीनियर और एमबीए धारक हैं, भारत से लेकर अमेरिका तक. उनका मानना है कि समान पृष्ठभूमि होने के कारण अपने अनुयायियों के साथ बेहतर समझ बनायी जा सकती है. वे अध्यात्म को तर्क और सिद्धांत की कसौटी पर कस कर देखना चाहते हैं.

कॉरपोरेट कार्यशैली : दिलचस्प यह है कि संन्यास की राह पर चलने वाले ये बाबा कॉरपोरेट शैली में काम करते हैं. वे अपने आध्यात्मिक संगठनों को चलाने के लिए तकनीकी और प्रबंधकीय योग्यता का इस्तेमाल करना नहीं चूकते. आइआइटी मद्रास और आइआइएम बेंगलुरू के छात्र रहे विनोद हरि इशा फाउंडेशन द्वारा संचालित इशा विद्या के प्रमुख हैं. उनके जिम्मे कई स्कूलों के संचालन का प्रभार है. स्वामी महाप्रभु दास इस्कॉन द्वारा संचालित अक्षय पात्र के प्रमुख हैं. वह आइआइटी मद्रास के छात्र रहे हैं. उन पर मिड डे मील के संचालन की जिम्मेवारी है.

अध्यात्म का चोला : टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल सांइसेज के प्रोफेसर एम कुंहामन के अनुसार, अध्यात्म की तरफ युवाओं के जाने का कारण जटिल समाज (कंप्लेक्स सोसाइटी) है. अध्यात्म के जरिये एक तरह से वे अपना आत्मविश्वास प्राप्त करना चाहते हैं. समाज में अकेलापन बढ़ा है. आर्थिक मंदी के दौर में नौकरी की गारंटी नहीं है और ऐसे समय में जब भ्रष्टाचार, कुप्रशासन आदि का बोलबाला हो, तो फिर युवा अध्यात्म की तरफ ही मुड़ेंगे, जैसा कि पहले बुजुर्गो में यह देखा जाता था.

इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के प्रोफेसर डॉ जॉर्ज मैथ्यू का मानना है कि संन्यास की तरफ आइआइटियन के मुड़ने का मतलब है संकट से घबरा कर भागना. वह परिस्थितियों का सामना नहीं कर सकते. कई विशेषज्ञों का मानना है कि आइआइटियन पैसे और पावर के लिए गुरु बन रहे हैं. हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि आइआइटियन के अध्यात्म की तरफ जाने के ये कारण सही नहीं हैं. इसकॉन, जयपुर के अनंत शेष दास कहते हैं, अध्यात्म की गूढ बातों को तेज दिमाग वाले लोग बेहतर समझते हैं, जैसा कि आइआइटियन होते हैं. उनका आइक्यू लेवल अध्यात्म को बेहतर तरीके से समझ और समझा जा सकता है.

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