Hanuman Jayanti 2024 : चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को हनुमान जयंती मनाने का विधान है, जो कल यानी मंगलवार, 23 अप्रैल को है. मंगलवार का दिन हनुमान जी को प्रिय माना जाता है. अत: इस बार यह सुखद संयोग है. धार्मिक मान्यतानुसार, हनुमान जयंती पर व्रत एवं उपासना करने से ही सभी संकट दूर होते हैं तथा हनुमान जी की कृपा प्राप्त होती है. वाल्मीकि रामायण के अनुसार, हनुमान जी से पहली मुलाकात में ही प्रभु श्री राम जान गये थे कि हनुमान चारों वेदों के ज्ञाता हैं.
सलिल पांडेय, मिर्जापुर
भगवान श्रीराम का वन गमन धरती पर ज्ञान, शील, आदर्श, संस्कार, नैतिकता आदि गुणों की स्थापना के लिए माता सरस्वती की इच्छा से हुआ. देवताओं के कहने पर मां सरस्वती मंथरा के मस्तिष्क में प्रवेश कर गयी थीं. वन में पत्नी सीता के हरण के बाद भगवान श्रीराम की भेंट ऋष्यमूक पर्वत पर रहने वाले सुग्रीव के मंत्री श्रीहनुमान से होती है. श्रीराम हनुमानजी से पहली मुलाकात में ही जान जाते हैं कि हनुमान चारों वेदों के ज्ञाता हैं. वाल्मीकि रामायण (किष्किन्धाकाण्ड के तृतीय सर्ग के 29 से 36 तक) के श्लोक में खुद श्रीराम कहते हैं- ‘लक्ष्मण ! हनुमान की बातों से प्रकट होता है कि इन्हें चारों वेदों, भाषा, व्याकरण का उत्कृष्ट ज्ञान है.’ श्रीराम को उस पात्र की तलाश थी, जिसके माध्यम से वे ज्ञान के प्रकाश को धरती के कोने-कोने तक अधिष्ठापित कर सकें.
सतयुग में स्मरण मात्र से देवता हो जाते थे प्रकट
![Hanuman Jayanti 2024 : पहली मुलाकात में श्रीराम जान गये थे कि चारों वेदों के ज्ञाता हैं हनुमान 1 Ramnavmi 2021 Date Bada Mangalwar 2021 Hanuman Chalisa Chaupai Bajrang Baan Aarti Hanuman Ji Ki Puja Vidhi](https://www.prabhatkhabar.com/wp-content/uploads/2024/01/Ramnavmi-2021-Date-Bada-Mangalwar-2021-Hanuman-Chalisa-Chaupai-Bajrang-Baan-Aarti-Hanuman-Ji-Ki-Puja-Vidhi-1024x613.jpg)
रावण द्वारा ज्ञान के नकारात्मक प्रयोग को सकारात्मक बनाने के लिए ही भगवान ने हनुमान जी को लंका भेजा, जिन्होंने मन-बुद्धि-चित्त और अहंकार से उत्पन्न विकृतियों को जलाने का काम किया.
दरअसल, सत्ययुग में देवताओं का स्मरण करने से वे पृथ्वी पर आ जाते थे. इसका आशय है कि पृथ्वी पर ज्ञान का महत्व था. ज्ञान के बल पर दस मूर्त इंद्रियों एवं चार- मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार जैसे अमूर्त रूप में तालमेल बना रहता है. लेकिन युग में आये बदलाव के चलते त्रेतायुग में देवताओं का मंत्रों से जब आवाहन किया जाता था, तब देवता आते थे. इन मंत्रों का प्रयोग उच्च जीवनशैली जीने का विधिक तरीका है. लेकिन समय हमेशा बदलाव लाता है. द्वापर में यज्ञ-अनुष्ठान से देवता आते रहे. यज्ञ-अनुष्ठान व्यक्ति को कर्म से जोड़ता है. त्रेता का ज्ञान और द्वापर का कर्म ही विकास की प्रक्रिया है. युग बदला और भौतिक पदार्थों की महत्ता वाले कलियुग में सदाचरण से भगवान को वश में करने के लिए शास्त्रों ने ज्ञान, कर्म के साथ निर्मल मन तथा भाव बनाने पर जोर दिया. परपीड़ा से बचने के लिए भगवान के सद्गुणों का निरंतर चिंतन करने पर बल दिया.
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श्रीराम का हनुमान जी को गले लगाने का आशय
इस प्रकार श्रीराम के वनगमन का उद्देश्य प्रकृति से जुड़े रहने का भी संदेश है. विज्ञान के वर्तमान युग में भगवान श्रीराम का श्री हनुमान को गले लगाने का आशय भी महर्षि पतंजलि के योग शास्त्र की महत्ता को प्रतिपादित करता है. श्री हनुमान पवन के पुत्र हैं. गोस्वामी तुलसीदास के ‘हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत्त उनचास’ (सुंदरकांड, 25) से स्पष्ट है कि पवन में उनचास प्रकार के गैस तत्व हैं. हनुमान जी प्राणतत्व (ऑक्सीजन) के रूप में हैं, जिसके शरीर में प्रवेश करने पर विकार रूपी व्याधियां नष्ट होती हैं. हनुमानचालीसा में ‘अस कहि श्रीपति कंठ लगावे’ से भी स्पष्ट होता है कि मनुष्य के कंठ में स्थित थायराइड ग्लैंड मानव शरीर की बेहतरी में महत्वपूर्ण कार्य करता है. यह ऐसा ग्लैंड है, जहां से T3, T4 नामक हार्मोंस बनता है, जो पूरे तन-मन को स्वस्थ करता है. यही हार्मोंस ऋषियों की दृष्टि में ‘श्रीहरि’ जैसा है. दस इंद्रियों वाले इस शरीर में पुरुषार्थ चतुष्टय की प्राप्ति का योग ही सबसे सशक्त माध्यम है, तो भगवान श्रीराम के वनगमन का आशय प्रकृति से जुड़ना परिलक्षित होता है तथा वायुमंडल में व्याप्त 15 प्रतिशत प्राणवायु (ऑक्सीजन) की महत्ता की ओर इंगित करता है. चारों वेदों का पूरा ज्ञान न भी हो सके तो शास्त्रों में सदाचार के जो तौर-तरीके बताये गये हैं, उन पर अमल करने का किंचित प्रयास भी हनुमान जी की उपासना है, क्योंकि इसी से ‘बल-बुधि-विद्या देहि मोहिं’ को साकार किया जा सकता है.
मानसिक विकारों से मुक्ति की ओर इंगित करती है यह चौपाई
![Hanuman Jayanti 2024 : पहली मुलाकात में श्रीराम जान गये थे कि चारों वेदों के ज्ञाता हैं हनुमान 2 Hanuman Ji Ki Puja: हनुमान जी को क्यों चढ़ाया जाता है सिंदूर?](https://www.prabhatkhabar.com/wp-content/uploads/2024/03/WhatsApp-Image-2024-03-19-at-08.07.33.jpeg)
हनुमान चालीसा में ‘भूत-पिशाच निकट नही आवें’ चौपाई में जिस भूत और पिशाच का जिक्र है, वह मानसिक विकारों से मुक्ति की ओर इंगित करता है. भूत जहां भ्रांति का सूचक है, वहीं पिशाच यज्ञ-अनुष्ठान में व्यवधान डालने वाले राक्षस को नहीं कहते, बल्कि जो मस्तिष्क का खून पीता है, उसे बताया गया है. काम-क्रोध-मद-लोभ ऐसे मानसिक पिशाच जीवन को नारकीय बनाते हैं. रावण से युद्ध में लक्ष्मण को शक्तिबाण लगने पर आयी मूर्छा को हनुमान जी प्राकृतिक ढंग से संजीवनी बूटी लाकर ठीक करते हैं. लक्ष्मण के शरीर में विषैले गैसों से आयी मूर्छा के इस उपचार को वर्तमान चिकित्सा विज्ञान के मरणासन्न व्यक्ति को तत्काल ऑक्सीजन गैस के उपचार की पद्धति से लिया जाना चाहिए. प्रकृति के देवता शंकर के 11वें अवतार से भी स्पष्ट है कि हनुमान की कृपा से दसों इंद्रियों के साथ ग्यारहवें मन को शुद्ध एवं पवित्र रखा जा सकता है.
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