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Hanuman Chalisa Paath Benefits: हनुमान चालीसा का पाठ करने बजरंग बली होंगे खुश

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Hanuman Chalisa Paath Benefits: मंगलवार को हनुमान चालीसा का पाठ करने के अनेक चमत्कारी लाभ बताए गए हैं. बजरंगबली की आराधना से हमें शक्ति, ज्ञान और विद्या की प्राप्ति होती है, साथ ही आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है. आज हम आपको हनुमान चालीसा के प्रभावी उपायों के बारे में जानकारी दे रहे हैं, जो आपके आर्थिक संकटों को दूर करने, परिवार में सुख-शांति स्थापित करने और आपकी कुंडली में मंगल की स्थिति को सुदृढ़ करने में सहायक होंगे.

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Hanuman Chalisa Paath Benefits:  हनुमान जी को उनके अनुयायी संकट मोचक के रूप में पहचानते हैं. जब भी किसी भक्त के जीवन में कठिनाई उत्पन्न होती है, वह हनुमान जी का स्मरण अवश्य करता है. यह नाम इतना प्रभावशाली है कि इसके स्मरण से ही भय समाप्त हो जाते हैं.

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घर में कलह समाप्त करने के लिए हनुमान चालीसा का उपाय

यदि आप अपने घर में प्रतिदिन होने वाले विवादों और कलह से त्रस्त हैं, तो मंगलवार और शनिवार की संध्या को हनुमान मंदिर जाकर गुड़ और चने का दान करें. इसके पश्चात, मंदिर में बैठकर हनुमान चालीसा का पाठ करें. हनुमान चालीसा का पाठ आरंभ करने से आधा घंटा पहले और आधा घंटा बाद तक किसी से बातचीत न करें और मन में सच्ची श्रद्धा के साथ पाठ करें. इस प्रक्रिया को अपनाने से आपके परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और आपस में प्रेम का भाव बढ़ता है.

कब और कैसे करें?

हनुमान चालीसा का पाठ मंगलवार या शनिवार को करना अत्यंत शुभ माना जाता है. इसके अतिरिक्त, यदि इस चालीसा का नियमित रूप से पाठ किया जाए, तो हनुमान जी का आशीर्वाद सदैव प्राप्त होता है. हनुमान चालीसा को सुबह या शाम के समय लाल रंग के आसन पर बैठकर पढ़ा जा सकता है. इसे सात बार पढ़ने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है.

डर और नकारात्मकता को दूर करें

हनुमान चालीसा में एक दोहा है, ‘भूत पिशाच निकट नहीं आवै महावीर जब नाम सुनावै’. डर और भय से मुक्ति पाने के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करना अत्यंत लाभकारी माना जाता है. इसके अलावा, इस चालीसा का प्रतिदिन पाठ करने से घर की नकारात्मक ऊर्जा भी समाप्त होने लगती है.

दोहा

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निजमन मुकुरु सुधारि। बरनउं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि।।
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।

चौपाई

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।
राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।
कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुँचित केसा।।
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजे। कांधे मूंज जनेउ साजे।।
शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग वंदन।।
बिद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।
भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचन्द्र के काज संवारे।।
लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये।।
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं। अस कहि श्रीपति कण्ठ लगावैं।।
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा। नारद सारद सहित अहीसा।।
जम कुबेर दिगपाल जहां ते। कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना। लंकेश्वर भए सब जग जाना।।
जुग सहस्र जोजन पर भानु। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं। जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।
दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।
राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।
सब सुख लहै तुम्हारी सरना। तुम रच्छक काहू को डर ना।।
आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हांक तें कांपै।।
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।
नासै रोग हरे सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।
संकट तें हनुमान छुड़ावै। मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।
सब पर राम तपस्वी राजा। तिन के काज सकल तुम साजा।।
और मनोरथ जो कोई लावै। सोई अमित जीवन फल पावै।।
चारों जुग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उजियारा।।
साधु संत के तुम रखवारे।। असुर निकन्दन राम दुलारे।।
अष्टसिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।
राम रसायन तुम्हरे पासा। सदा रहो रघुपति के दासा।।
तुह्मरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै।।
अंत काल रघुबर पुर जाई। जहां जन्म हरिभक्त कहाई।।
और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।
सङ्कट कटै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।
जय जय जय हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।
जो सत बार पाठ कर कोई। छूटहि बन्दि महा सुख होई।।
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा।।
तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महं डेरा।।

दोहा

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

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