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Puja Aarti Rules: क्यों जरूरी है हर पूजा के अंत में आरती करना? जानें इस वक्त घी का दीपक जलाने के लाभ

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Puja Aarti Rules: सनातन धर्म में जितना महत्व पूजा का होता है, उतना ही महत्व आरती का भी बताया गया है. आरती, पूजा के बाद किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण काम है. धार्मिक मान्यता है कि पूजा के बाद आरती नहीं करने से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता है. मंदिर या घर में प्रतिदिन सुबह-शाम पूजा और आरती करने के नियम हैं, बिना इसके तो दिन की शुरुआत ही नहीं होती है.

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Puja Aarti Rules: धार्मिक मान्यता है कि सुबह शाम पूजा-आरती करने पर घर में सुख शांति और बरकत आती है. आरती 7 प्रकार की होती है. मंगला आरती, पूजा आरती, श्रृंगार आरती, भोग आरती, धूप आरती, संध्या आरती, शयन आरती. मंगला आरती को भोर में किया जाता है. पूजा आरती देवी-देवताओं की पूजा के अंत में की जाती है. वहीं श्रृंगार आरती पूजा से पहले करने का विधान है. इसके बाद भोग और धूप आरती की जाती है. फिर संध्या आरती के बाद शयन आरती की जाती है.

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मंगला आरती का महत्व

मंगला आरती से निद्रा में सोए हुए भगवान को जगाया जाता है. इसलिए इस आरती को बहुत ध्यानपूर्वक करना चाहिए. ये आरती छोटी होती है, और इस आरती में बहुत सारे वाद्ययंत्र भी नहीं होते हैं. इस आरती के बाद कुछ जगहों पर भगवान को जल अर्पित किया जाता है, धार्मिक मान्यता है कि प्रभु को नींद से जागने के बाद प्यास लगती है. कुछ जगहों पर शंख के स्वर से इस आरती की शुरुआत होती है और इस आरती के बाद धूप और दीप से पूरा मंदिर प्रांगण सुगंधित किया जाता है. वैसे तो यह आरती हर जगह 3 बजे से 5 बजे तक होता है, लेकिन कहीं -कहीं ये आरती 6 बजे तक भी होती है. पूजा किसी देवी या देवता की मूर्ति के सामने की जाती है. जिसमें गुड़ और घी की धूप दी जाती है फिर हल्दी, कुमकुम,धूप, दीप और अगरबत्ती से पूजा करके आराध्य देवता की आरती उतारी जाती है. पूजा में सभी देवी देवताओं की स्तुति की जाती है अतः पूजा आरती के कुछ नियम हैं. भगवान का श्रृंगार करके उन्हें भोग लगाया जाता है.

क्यों जरूरी है हर पूजा के बाद आरती

आरती को भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करने का सबसे अच्छा तरीका माना जाता है. किसी भी पूजा का समापन आरती से करने का मतलब यह है कि अब पूजन समाप्त हो गया है और हम भगवान से कुशलता की कामना करने वाले हैं, इतना ही नहीं, आरती व्यक्ति के आत्म बल को बढ़ाने में भी मदद करती है.

आरती करने का सही तरीका क्या है?

सनातन धर्म में भगवान की आरती करने का भी एक तरीका बताया गया है. हालांकि सभी लोग अपनी श्रद्धा अनुसार, पूजा-पाठ व आरती करते हैं. आरती को किसी भी भगवान के सामने घड़ी की दिशा में गोलाकार गति में घुमाया जाता है. भगवान की आरती सबसे पहले भगवान के चरणों से शुरू करनी चाहिए. सबसे पहले आरती उतारते समय चार बार दीपक को सीधी दिशा में घुमाएं, उसके बाद ईश्वर की नाभि के पास दो बार आरती उतारें, उसके बाद सात बार भगवान के मुख की आरती उतारें. आरती में शंख और घंटी बजाने का विशेष महत्व है. इसकी ध्वनि से चारों तरफ का वातावरण शुद्ध हो जाता है.

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जानिए आरती लेने का सही तरीका

भगवान की आरती होने के बाद अपने दोनों हाथों से आरती ली जाती है. आरती लेने का पहला भाव ये है कि जिस दीपक की लौ ने हमें अपने आराध्य के नख-शिख के इतने सुंदर दर्शन कराए, उसको हम सिर पर धारण करते हैं. वहीं दूसरा भाव ये होता है कि जिस दीपक की बाती ने भगवान के अरिष्ट हरे हैं, उसे हम अपने मस्तक पर धारण करते हैं. आरती लेने का सही तरीका ये होता है कि आरती की लौ को हाथ से लेकर पहले सिर पर घुमाएं और उसके बाद उस को अपने माथे की ओर धारण करें.

पूजा में घी का दीपक जलाने के फायदे

देशी घी का दीपक जलाने से वातावरण में उपस्थित सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश होता है, जिसके कारण सकारात्मक वातावरण का निर्माण होता है जो व्यक्ति के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है. इसलिए शास्त्रों में देवी-देवताओं के समक्ष देशी घी का दीपक जलाने का विधान है. समृद्धि एवं शुभ-लाभ के लिए घी का दीपक जलाया जाता है. घी वाला दीपक बुझने के बाद भी चार घंटे से भी ज्यादा समय तक अपनी सात्विक ऊर्जा को बनाए रखता है. दीपक चाहे तेल का हो या घी का हो, दीपक जलाने के बाद वातावरण में सात्विक तरंगों की उत्पत्ति होती है, जिससे अन्धकार दूर होता है, शुभ शक्तियां आकर्षित होती हैं, वातावरण में मौजूद हानिकारक सूक्ष्म तत्वों का नाश होता है. इसके साथ-साथ घर में सुख-समृद्धि आती है.

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