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Kumbh Mela 2019 : दूसरे स्नान पर्व पर प्रयागराज में उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़, पौष पूर्णिमा के साथ शुरू हुआ कल्पवास

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प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) : कुंभ मेले के दूसरे स्नान पर्व पर त्रिवेणी में डुबकी लगाने के लिए लाखों श्रद्धालु संगम के तट पर पहुंच चुके हैं. सुबह से ही श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल पर श्रद्धा की डुबकियां लगा रहे हैं. पवित्र स्नान कर रहे हैं. संगम के तट पर प्रयागराज में […]

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प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) : कुंभ मेले के दूसरे स्नान पर्व पर त्रिवेणी में डुबकी लगाने के लिए लाखों श्रद्धालु संगम के तट पर पहुंच चुके हैं. सुबह से ही श्रद्धालु गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम स्थल पर श्रद्धा की डुबकियां लगा रहे हैं. पवित्र स्नान कर रहे हैं. संगम के तट पर प्रयागराज में सोमवार (21 जनवरी) को पौष पूर्णिमा के दिन पवित्र स्नान करने के साथ ही एक महीने का कल्पवास भी शुरू हो गया. हर बार कुंभ में 10 से 12 लाख श्रद्धालु लगातार एक महीना तक यहां रुककर नियम व परंपराओं के मुताबिक संगम में स्नान करते हैं.

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पौष पूर्णिमा पर करीब 75 लाख लोगों के कुंभ मेला में आने और त्रिवेणी संगम में स्नान करने की संभावना है. पौष पूर्णिमा पर अखाड़ों का शाही स्नान होता है. संत-महात्मा व श्रद्धालु सादगी से संगम में आस्था की डुबकी लगाते हैं. बुजुर्गों से लेकर बच्चे तक कपकपाती ठंड में संगम में गोते लगा रहे हैं. पौष पूर्णिमा के स्नान का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि रविवार की रात 12 बजे से ही यहां श्रद्धालुओं का तांता लग गया था.

पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व के साथ ही संगम की रेती पर एक महीने का कल्पवास भी शुरू हो जाता है. कुंभ मेला प्रशासन ने पौष पूर्णिमा के स्नान की सभी तैयारियां पूरी कर लिये जाने का दावा किया है. इस मौके पर सुरक्षा के कड़े इंतजाम किये गये हैं. पौष पूर्णिमा के स्नान पर्व के लिए रेलवे और रोडवेज ने खास इंतजाम किये हैं.

पौष पूर्णिमा : इतिहास और मान्यता

भारतीय पंचांग में पौष मास के शुक्ल पक्ष की 15वीं तिथि को पौष पूर्णिमा कहते हैं. पूर्णिमा को ही पूर्ण चंद्र निकलता है. कुंभ मेला की अनौपचारिक शुरुआत इसी दिवस से चिह्नित की जाती है. इसी दिवस से कल्पवास की शुरुआत भी होती है. कल्पवास का कुंभ में बड़ा महत्व होता है. कल्पवास का अर्थ होता है संगम के तट पर ध्यान करना. कल्पवास का समय पौष मास के शुक्लपक्ष से माघ मास के एकादसी तक होता है.

कल्पवास की शुरुआत की बात करें, तो यह वेदकालीन अरण्य संस्कृति की देन है. यह हजारों साल से चला आ रहा है. ऐसी मान्यता है कि जब तीर्थराज प्रयाग में कोई शहर नहीं था, तब यह भूमि ऋषियों की तपोस्थली थी. प्रयाग में गंगा-जमुना के आसपास घना जंगल था. इस जंगल में ऋषि-मुनि ध्यान और तप करते थे. ऋषियों ने गृहस्थों के लिए कल्पवास का विधान रखा.

ऐसी मान्यता है कि जो कल्पवास करता है, उसका अगला जन्म राजा के रूप में होता है. साथ ही कहा जाता है कि मोक्ष भी उसे ही मिलती है, जो कल्पवास करता है.

कल्पवास के दौरान 21 नियमों का पालन जरूरी

पुराणों की मानें, तो कल्पवास करने वालों को 21 नियमों का पालन करना जरूरी होता है. इन 21 नियमों में सत्यवचन, अहिंसा, इंद्रियों का शमन, सभी प्राणियों पर दयाभाव, ब्रह्मचर्य का पालन, व्यसनों का त्याग, सूर्योदय से पूर्व शैया-त्याग, नित्य तीन बार सुरसरि-स्नान, त्रिकाल संध्या, पितरों का पिंडदान, यथा-शक्ति दान, अंतर्मुखी जप, सत्संग, क्षेत्र संन्यास अर्थात् संकल्पित क्षेत्र के बाहर न जाना, परनिंदा का त्याग, साधु-संन्यासियों की सेवा, जप एवं संकीर्तन, एक समय भोजन, भूमि शयन, अग्नि सेवन न कराना शामिल है.

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