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11 सितंबर महादेवी की पुण्यतिथि: यह व्यथा चन्दन नहीं है !

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-ध्रुव गुप्त- प्रेम, विरह, करुणा, रहस्य और गहन आंतरिक अनुभूति की प्रतिनिधि कवयित्री महादेवी वर्मा की कविताओं की निजता, काव्यात्मक समृद्धि और दार्शनिक गंभीरता आज भी पाठकों को हैरान करती है. जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महाप्राण निराला के बाद हिंदी कविता की छायावादी धारा का चौथा स्तंभ मानी जाने वाली महादेवी ने बहुत अधिक […]

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-ध्रुव गुप्त-

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प्रेम, विरह, करुणा, रहस्य और गहन आंतरिक अनुभूति की प्रतिनिधि कवयित्री महादेवी वर्मा की कविताओं की निजता, काव्यात्मक समृद्धि और दार्शनिक गंभीरता आज भी पाठकों को हैरान करती है. जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महाप्राण निराला के बाद हिंदी कविता की छायावादी धारा का चौथा स्तंभ मानी जाने वाली महादेवी ने बहुत अधिक नहीं लिखा.

उनका अनुभव-संसार भी बड़ा नहीं है, पर अनुभूति की गहनता और कलात्मक उत्कर्ष की दृष्टि से उनका काव्य छायावाद की मूल्यवान उपलब्धि है. उनकी कविताओं की अंतर्वस्तु में हर कहीं एक अंतर्मुखी स्त्री की गहरी वेदना का अहसास है. खुद उनके शब्दों में वेदना का यह एकांत अहसास ‘मनुष्य के संवेदनशील ह्रदय को सारे संसार से एक अविछिन्न बंधन में बांध देता है.’ कविताओं के अलावा महादेवी के बचपन के आत्मीय संस्मरण मानवीय संवेदनाओं के जीवंत दस्तावेज हैं. वेदना की अमर गायिका और आधुनिक युग की मीरा कही जाने वाली महादेवी वर्मा की पुण्यतिथि (11 सितंबर) पर उन्हें भावभीनी श्रधांजलि, उनकी कुछ पंक्तियों के साथ !

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चन्दन नहीं है !

यह न समझो देव पूजा के सजीले उपकरण ये

आंसुओं के मौन में बोलो तभी मानूं तुम्हें मैं

खिल उठे मुस्कान में परिचय तभी जानूं तुम्हें मैं

सांस में आहट मिले तब आज पहचानूं तुम्हें मैं

वेदना यह झेल लो तब आज सम्मानूं तुम्हें मैं

आज मंदिर के मुखर घड़ियाल घंटों में न बोलो

अब चुनौती है पुजारी में नमन वंदन नहीं है

अश्रु यह पानी नहीं है, यह व्यथा चन्दन नहीं है !

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