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साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा ने छठ पूजा की परंपरा पर उठाये सवाल, सोशल मीडिया में हो गयीं ट्रोल

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छठ बिहारवासियों का महापर्व है. इस पर्व को लेकर लोगों की आस्था इस कदर है कि छठव्रतियों की सेवा के लिए लोग धर्म की दीवार तोड़कर भी सामने आ जाते हैं. ऐसे में जब कल छठ महापर्व की शुरुआत के दिन दिग्गज साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा ने छठ के दौरान महिलाओं द्वारा नाक से सिंदूर लगाने […]

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छठ बिहारवासियों का महापर्व है. इस पर्व को लेकर लोगों की आस्था इस कदर है कि छठव्रतियों की सेवा के लिए लोग धर्म की दीवार तोड़कर भी सामने आ जाते हैं. ऐसे में जब कल छठ महापर्व की शुरुआत के दिन दिग्गज साहित्यकार मैत्रेयी पुष्पा ने छठ के दौरान महिलाओं द्वारा नाक से सिंदूर लगाने की परंपरा पर सवाल उठाये, तो वे सोशल मीडिया में लोगों के निशाने पर आ गयीं. मैत्रेयी पुष्पा ने लिखा-छठ के त्यौहार में बिहारवासिनी स्त्रियां मांग, माथे और नाक पर भी सिंदूर पोत लेती हैं, कोई खास वजह होती है क्या?

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इस फेसबुक पोस्ट के बाद लोगों ने उनके रहन-सहन पर भी सवाल उठा दिया और कह दिया जो खुद सिंदूर नहीं लगातीं, वो क्या जानें सिंदूर लगाने का महत्व. वहीं एक महिला ने यह भी कहा कि जब पोता जाता है तब ना, अगर लोग अपनी इच्छा से लगाते हैं, तो इसमें क्या बुरा है. मन से करने पर बहुत सुंदर एहसास होता है, आप मानें या ना मानें, शादीशुदा होकर विधवा का भेष बनाना है या कुंवारी का यह आपका निजी मामला है.
तो किसी ने तंज कसा, अरे ,हमें तो मालूम ही नहीं था,ऐसा क्या?
ज्ञान बांटने के लिए धन्यवाद. आम भारतीय महिला बौद्धिकता में आपसे बहुत आगे है मोहतरमा.
वहीं कई लोगों ने समझदारी से भी प्रतिक्रिया दी है. सकारात्मक सोच की जरूरत है. यही स्त्रियां लगभग दो दिन कठोर व्रत करती हैं. जमीन पर सोती हैं. वो सम्मानित हैं उनकी आस्था पर कमेंट ठीक नहीं वो भी तब जब आप स्त्री पक्षधर की एक लेखिका हैं.
वहीं कई लोगों का रुख बड़ा कठोर था. बड़ी सिम्पल बात हैं जिसको या जिस किसी की मां बहन की आस्था को ठेस पहुंचा कर आप गालियां देंगी वो तालियां तो आप को देगा नहीं…..
हालांकि कई लोग मैत्रेयी पुष्पा के समर्थन में भी सामने आये और उन्होंने इसे आस्था के नाम पर अंधविश्वास करार दिया.

पढ़ें डॉ उषाकिरण खान का आलेख ‘ सामाजिकता से बचेगा छठ का उल्लास’

ट्रोल होने के बाद मैत्रेयी पुष्पा ने फिर एक पोस्ट लिखा- आस्था पर ठेस का दोष मुझपर गालियों की बौछार.एक बार सती, दूसरी बार सिंदूर. हे स्त्री तू इसी के लिए बनी है. मैत्रेयी पुष्पा हिंदी के शीर्षस्थ साहित्यकारों में से एक हैं. अपने लेखन में उन्होंने स्त्री स्वतंत्रता और उनके अधिकारों की भी खूब वकालत की है. स्त्री अधिकारों पर लिखे गये उनके उपन्यासों में चाक,इदन्नमम,कही ईसुरी फाग,अल्मा कबूतरी प्रमुख है, जबकि कस्तूरी कुंडल बसे,गुड़िया भीतर गुड़िया, आत्मकथा है. स्त्री अधिकारों पर गोमा हंसती है उनकी प्रमुख कहानी है.

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