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SCO News : जानिए शंघाई सहयोग संगठन के सदस्यों की संख्या के बारे में, भारत कब बना समूह का सदस्य

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एससीओ यूरेशिया का एक स्थायी अंतर-सरकारी अंतरराष्ट्रीय बहुपक्षीय संगठन है. जिसका गठन 2001 में हुआ था. जानते हैं इसके सदस्य देशों के बारे में...

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SCO News : शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना 2001 में चीन, रूस, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, कजाखस्तान और उज्बेकिस्तान ने मिलकर शंघाई (चीन) में की थी. जुलाई 2005 में कजाखस्तान की राजधानी अस्ताना में हुए एससीओ शिखर सम्मेलन में भारत, ईरान और पाकिस्तान को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया था. जुलाई 2015 में, रूस के ऊफा में संगठन ने भारत और पाकिस्तान को पूर्णकालिक सदस्य (स्थायी सदस्य) के रूप में स्वीकार करने का निर्णय लिया. इसके बाद 23-24 जून, 2016 को उज्बेकिस्तान के ताशकंद में भारत और पाकिस्तान ने एससीओ की सदस्यता प्राप्त करने के लिए समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किये. जिससे इनके पूर्णकालिक सदस्य के रूप में एससीओं में शामिल होने की औपचारिक प्रक्रिया की शुरुआत हुई. इसके बाद नौ जून, 2017 को अस्ताना में आयोजित शिखर सम्मेलन में भारत और पाकिस्तान आधिकारिक तौर पर एससीओ के पूर्णकालिक सदस्य बन गये. एससीओ का एक बार फिर तब विस्तार हुआ जब 2023 की चार जुलाई को भारत में आयोजित शिखर सम्मेलन (वर्चुअल मोड) में ईरान को पूर्णकालिक सदस्य का दर्जा दिया गया. एससीओ का नवीनतम सदस्य बेलारूस है, जिसे इस वर्ष जुलाई में कजाखस्तान की राजधानी अस्ताना में पूर्णकालिक सदस्य का दर्जा दिया गया.

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संगठन में भारत की भागीदारी के अंतर्निहित उद्देश्य

क्षेत्रीय सुरक्षा : एससीओ में भागीदारी सुरक्षा मुद्दों- विशेषकर आतंकवाद और उग्रवाद- से निपटने में सहयोग करने की भारत की क्षमता को बढ़ाती है. एससीओ खुफिया जानकारी साझा करने और आतंकवाद का सामना करने के लिए संयुक्त प्रयास के लिए एक मंच प्रदान करता है.

आर्थिक अवसर : एससीओ भारत को संसाधन संपन्न मध्य एशियाई क्षेत्र तक पहुंच प्रदान करता है, जो ऊर्जा सुरक्षा और व्यापार के लिए महत्वपूर्ण हैं. भारत की भागीदारी का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आइएनएसटीसी) जैसे कनेक्टिविटी और व्यापार मार्गों को बढ़ावा देना है.

भू-राजनीतिक प्रभाव में वृद्धि : एससीओ का सदस्य बनने से भारत को क्षेत्रीय भू-राजनीति में अधिक प्रमुख भूमिका निभाने का अवसर मिलता है. यह क्षेत्र में चीन के प्रभाव को संतुलित करता है और रूस और मध्य एशियाई देशों के साथ भारत के संबंधों को मजबूती प्रदान करता है.

सांस्कृतिक संबंध : सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने और क्षेत्र में अपने सॉफ्ट पावर को बढ़ाने में भारत को एससीओ का सदस्य होने के कारण लाभ मिलता है. एससीओ फिल्म फेस्टिवल और अकादमिक छात्रवृत्ति जैसी पहल सदस्य देशों के बीच सांस्कृतिक पुल बनाने में मदद करती है.

भारत के लिए चुनौतियां भी कम नहीं

एससीओ में भारत की भागीदारी उसके लिए अपनी बात रखने का अवसर देती है, लेकिन इस समूह में उसके सामने कई चुनौतियां भी हैं.

पाकिस्तान के साथ तनाव : भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव को देखते हुए एससीओ में दोनों की मौजूदगी मुश्किलें उत्पन्न कर सकती हैं. विशेषकर आतंकवाद के मुद्दे पर दोनों देशों के बीच सहमति बनने में दिक्कत आ सकती है.

चीन-रूस के साथ संबंधों को संतुलित करना : चूंकि भारत क्वाड का हिस्सा है, ऐसे में एससीओ में भारत की भागीदारी के लिए रूस और चीन दोनों के साथ अपने संबंधों को सावधानीपूर्वक संतुलित करने की आवश्यकता है.

क्षेत्रीय सुरक्षा की चिंता : भारत के लिए आतंकवाद, अलगाववाद और उग्रवाद जैसे सुरक्षा के मामलों का हल निकालने के लिए सर्वसम्मति बनाना अति आवश्यक है, पर यहां सभी सदस्यों के बीच इसे लेकर आम राय बनाने में भारत को मुश्किल आ सकती है.

आर्थिक लाभ सुनिश्चित करना : एससीओ देशों के साथ आर्थिक एकीकरण के लिए बाजार तक पहुंच, आधारभूत संरचना और कनेक्टिविटी जैसे विभिन्न मुद्दों को हल करने की जरूरत है, तभी भारत को आर्थिक लाभ हो सकेगा.

एससीओ देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार : रूस और मध्य एशिया के साथ चीन के व्यापार की तुलना में मध्य एशिया और रूस के साथ भारत का द्विपक्षीय व्यापार बहुत कम है.

संप्रभुता का मुद्दा : चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को एससीओ के सदस्यों ने अपनाया है, जबकि भारत इसका विरोध करता है और इसे अपनी संप्रभुता पर हमला मानता है. ऐसे में सदस्य देशों के साथ इस मामले में संतुलन बनाने में उसे मुश्किल आ सकती है.

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