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phone addiction in kids: क्या देख रहे हैं आपके बच्चे, किन बातों का ध्यान रखें अभिभावक

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पिछले माह बिहार से आयी एक खबर हर अभिभावक को स्तब्ध कर देने वाली थी- ‘‘नर्सरी कक्षा के छात्र ने अपने ही स्कूल के तीसरी कक्षा के छात्र को गोली मारी’’. इंटरनेशनल चाइल्ड एडवोकेसी ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट कहती है कि इंटरनेट पर बहुत ज्यादा समय बिताने वाले बच्चों में सामाजिकता खत्म हो जाती है.

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phone addiction in kids: स्मार्टफोन की खिड़की से बच्चों तक पहुंच रही हर तरह की सामग्री उनकी मासूमियत भर लीलने से कहीं आगे जा पहुंची है. ऑनलाइन गेम खेलने में समय या धन गंवाने भर की चिंताओं की भी सीमा पार कर चुकी है. वर्चुअल दुनिया में परोसा जा रहा अश्लील कंटेंट तो रिश्तों को तार-तार कर रहा है. संबंधों के मायने तक ना जानने वाले बच्चे सगे रिश्ते का गला घोटने जैसी विकृत मानसिकता के जाल में फंस रहे हैं. ऐसे-ऐसे मामले भी सामने आने लगे हैं कि स्कूल का परिसर ही सुरक्षा से जुड़ी शंकाओं के घेरे में आ जाये. क्लिक-क्लिक पर मिल रही सुविधाओं और चाही-अनचाही सामग्री के कसते शिकंजे में अभिभावकों को सजग रहने की दरकार है कि उनके बच्चे क्या देख रहे हैं.

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चेतावनी देतीं उक्त घटनाएं मासूम मन की विकृत होती मानसिकता के पीछे मुठ्ठी में मौजूद स्मार्टफोन में भरी कुत्सित सामग्री भी जिम्मेदार है, इसमें कोई शक नहीं. इसीलिए देश के हर हिस्से में बसे अभिभावक इन वाकयों को समाचार भर समझने के बजाय एक चेतावनी समझें. हाइटेक होते इस दौर में पूरी तरह से बदल गयी बच्चों की परवरिश से जुड़ी बहुत सी नयी समस्याएं खड़ी हो गयी हैं.

एक ओर नयी पीढ़ी के पालन-पोषण से पारंपरिक रंग-ढंग गायब हुआ है, तो दूसरी ओर वर्चुअल दुनिया से जुड़े अनगिनत जोखिम जुड़ गये. बच्चों द्वारा अंजाम दी गयीं दुष्कर्म और शोषण की बर्बर घटनाएं सचमुच चेताने वाली हैं. यह भयभीत करने वाला सच है कि स्मार्टफोन से पहुंच बना रही अश्लीलता के जाल में फंसकर छोटे-छोटे बच्चे दूषित मानसिकता के शिकार हो रहे हैं. नयी पीढ़ी के मन-जीवन में दस्तक देते इस भटकाव को अभिभावक ही रोक सकते हैं. बच्चों और बड़ों के बीच नियमित संवाद जरूरी है. बच्चों को स्मार्ट स्क्रीन की चकाचौंध से दूर रखना बेहद आवश्यक है. बच्चों के साथ समय बिताते हुए हर अच्छी-बुरी चीज से जुड़ी समझाइश देने की पहल हर अभिभावक को करनी होगी. पैरेंट्स के साथ ही सहजता और नेह भरी सख़्ती का मेल ही बच्चों के मन को डिगने से बचा सकता है.

बच्चों में बढ़ी है अपराध की प्रवृत्ति

विडंबना है कि देश , समाज और परिवार का भविष्य कहे जाने वाले बच्चे अपने ही हमउम्र साथियों और भाई-बहन के उत्पीड़क बन रहे हैं. दुष्कर्म, हत्या, लूटपाट जैसे अपराधों में उनकी भागीदारी बढ़ रही है. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार, हालिया वर्षों में बच्चों में अपराध की प्रवृत्ति बढ़ी है. हर साल 30 हजार से ज्यादा नाबालिग किसी ना किसी अपराध में शामिल रहे हैं. नयी पीढ़ी के लिए सहूलियत बनने के बजाय तकनीक आत्महत्या, अपहरण और हत्या जैसे दर्दनाक वाकयों को अंजाम देने का कारण बन गयी है. हमउम्र बच्चों को डराकर पैसे लेने, साथियों को ब्लैकमेल, घर में चोरी करने और पढ़ाई में पिछड़ने जैसी कई समस्याओं से जुड़े केस तो ऑनलाइन गेम खेलने की लत के कारण ही सामने आ चुके हैं.

बच्चों के मन को थामने की जरूरत

अपनी ही छोटी बहन के शारीरिक शोषण की बर्बरता से जुड़ी यह घटना बताती है कि यह आपत्तिजनक कंटेंट किस कदर बच्चों को दिशाहीन बना रहा है. साफ-साफ नजर आता है कि स्मार्ट गैजेट्स के माध्यम से बेरोकटोक मिल रही वर्जनीय सामग्री ने बालमन को मनोदैहिक बीमारियों की ओर धकेल दिया है. कई मामलों में तो बच्चों का मन समझ भी नहीं पाता कि किस राह जा रहा है? हार्मोनल बदलाव की उम्र के इस दौर में उनका दिलो-दिमाग नियमित ऐसा कंटेंट देखने का लती हो जाता है, जो धीरे-धीरे व्यावहारिक धरातल पर भी कुत्सित बर्ताव की ओर ले जाने का कारण बनता है. ऐसे में बच्चों को ठहराव और अनुशासन की सीख देना हमारा-आपका काम है.

तकनीक से बचना नहीं, बचाना जरूरी

कोविड आपदा के समय ऑनलाइन स्कूलिंग के चलते हर उम्र के बच्चों को स्मार्ट गैजेट्स मिले. कमोबेश हर घर का हर बच्चा ही तकनीक से जुड़ गया. बेहद कम उम्र के बच्चों की भी पहुंच इंटरनेट तक बन गयी. हालांकि मौजूदा दौर में संवाद और सूचनाओं के लिए जरूरी हो चले स्मार्ट गैजेट्स से बच्चों को दूर भी नहीं रखा जा सकता, देर-सवेर बच्चे तकनीकी गैजेट्स का इस्तेमाल तो करेंगे ही. हां, अभिभावकों की देखरेख अब बेहद आवश्यक है. पैरेंट्स को तकनीक का सधा और सही इस्तेमाल सिखाना होगा. बच्चों द्वारा आभासी दुनिया में देखी जा रही सामग्री पर नजर रखनी होगी. घर के छोटे सदस्यों को पारिवारिक-सामाजिक जीवन से जोड़ने के प्रयास करने होंगे.
इंटरनेशनल चाइल्ड एडवोकेसी ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट कहती है कि इंटरनेट पर बहुत ज्यादा समय बिताने वाले बच्चों में सामाजिकता खत्म हो जाती है. अपराध करने और दुस्साहसी कदम उठाने वाले बच्चों के बढ़ते उदाहरण इन्हीं स्थितियों की बानगी बन रहे हैं.

भटका रही है अश्लील सामग्री

ब्रिटेन की ‘द नेशनल सोसायटी फॉर द प्रिवेंशन ऑफ क्रूअलिटी टू चिल्ड्रेन’ के मुताबिक, 79 प्रतिशत युवा 18 साल की उम्र से पहले पोर्नोग्राफिक कंटेंट देख लेते हैं. बार-बार पोर्नोग्राफी देखने वालों का शारीरिक रूप से आक्रामक फिजिकल एक्टिविटी में संलग्न होने की भी अधिक संभावना होती है. अध्ययन बताते हैं कि आज 10 प्रतिशत से ज़्यादा बच्चे 14 वर्ष की आयु तक ऑनलाइन पॉर्न के संपर्क में आ चुके हैं. तकलीफदेह है कि इंटरनेट पर मौजूद मनगढ़ंत पॉर्न क्लिप्स, को देख रहे हर आयु वर्ग के लोगों के मनोविज्ञान को विक्षिप्तता की कगार पर ले जा रही हैं. जबकि नकारात्मक और हिंसक सामग्री देखने वाले बच्चों के भावी जीवन में भी शारीरिक संबंधों और रिश्तों के बारे में समझ और अपेक्षा विकृत हो सकती है. वर्ष 2015 में सरकार द्वारा 857 पॉर्न साइट्स को प्रतिबंधित किया गया था, लेकिन बाद में फैसला वापस ले लिया गया.

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विकसित देशों की साझी चिंता

बच्चों का बचपन सहेजने की चिंता दुनिया के हर समाज में की जा रही है. बीते साल अमेरिका के अरकांसास, मिसिसिपी, यूटा और वर्जीनिया में पास किये गये कानून के बाद वहां पॉर्न वेबसाइट एक्सेस के लिए उम्र का सत्यापन जरूरी कर दिया गया है. नॉर्थ कैरोलिना और मोंटाना में इसी वर्ष इस कानून को लागू किया गया. धीरे-धीरे ऐसे नियमों को पूरे अमेरिका में लागू किया जा रहा है. कानून लाने का उद्देश्य बच्चों को पोर्नोग्राफिक कंटेंट से दूर रखना है. वहां के लोग इस बात को लेकर चिंतित हैं कि ऐसे कंटेंट में हिंसक यौन व्यवहार को सामान्य दिखाया जाता है, जिससे बच्चों पर इसका नकारात्मक असर पड़ता है. ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूके, यूरोपीयन यूनियन और एशिया के कुछ भागों में भी सोशल मीडिया और दूसरे कई प्लेटफॉर्म पर इसी तरह के आयु सत्यापन के सुझाव को लेकर सोचा जा रहा है.

केस-
मध्य प्रदेश के रीवा में हुई भयावह घटना में 13 साल के लड़के ने नौ साल की बहन के साथ दुष्कर्म कर उसकी जान ले ली. पुलिस जांच में सामने आया कि रात करीब 1 से 2 बजे लड़के ने मोबाइल पर अश्लील वीडियो देख बगल में सो रही बहन का शारीरिक शोषण किया. छोटी बहन के यह कहने पर कि वह मां-पापा को पूरी बात बता देगी, भाई ने गला दबा दिया.

केस-
हाल ही में आंध्र प्रदेश के नांदियाल जिले में आठ साल की स्कूली बच्ची के साथ दुष्कर्म और फिर हत्या करने वाले तीन स्कूली लड़कों ने बताया कि उन्होंने जैसा पॉर्न वीडियो में देखा, वैसा ही किया. इस मामले में भी आरोपी बच्चों की उम्र 12 वर्ष और 13 वर्ष है. दो बच्चे क्लास 6 और एक क्लास 7 के छात्र हैं.

केस-
दिल्ली के हौजखास में कुछ लड़कों ने एक बच्चे के मुंह में प्राइवेट पार्ट डालकर वीडियो बनाया और इंस्टाग्राम पर पर अपलोड किया. वायरल विडियो पीड़ित बच्चे की मां के पास पहुंचा तब पुलिस को मामले की सूचना दी गयी. इस मामले में भी आरोपियों की उम्र 12 से 14 साल के बीच है. इस पीड़ादायी और शर्मनाक बर्ताव का शिकार बच्चा भी नाबालिग है.

बच्चों के मस्तिष्क से ग्रे मैटर कम करता है ऐसा कंटेट

क्लिनिकल साइकोलोजिस्ट डॉ सुधांशु मिश्रा के अनुसार, पॉर्न कंटेंट देखना बच्चों में स्वतः यौन उत्तेजना, भ्रम और अपराधबोध पैदा कर सकता है. ऐसी सामग्री देखकर बच्चों में सेक्स के प्रति असंवेदशीलता आ सकती है. किशोरावस्था में यौन व्यवहार में संलग्न होने की प्रवृत्ति पैदा हो सकती है. ऐसा कंटेट बच्चों के मस्तिष्क से ग्रे मैटर कम करता है, जिससे उनकी सीखने की क्षमता में कमी आती है. पॉर्न कंटेंट देखने के चलते किशोरों में महिलाओं के प्रति शक्ति का प्रयोग करने की प्रवृत्ति भी बढ़ जाती है. बालमन पर होने वाले बहुत से ऐसे दुष्प्रभावों से मन-जीवन दिशाहीन हो जाता है.

इन स्थितियों में अभिभावक गौर करें

  • बच्चा समय से पहले यौन एक्टिविटी और सेक्सुअल भाषा इस्तेमाल करने में रुचि लेने लगे.
  • वर्चुअल सर्फिंग में बहुत अधिक समय बिताने लगे.
  • घर के दूसरे सदस्यों द्वारा अपने स्मार्टफोन या लैपटॉप के इस्तेमाल को लेकर चौकन्ना रहने लगे.
  • आपके बैंक अकाउंट से अनजान जगह के लिए पैसे चुकाये जायें.
  • उसका व्यवहार हद से ज्यादा आक्रामक या सीक्रेटिव हो जाये.
  • हमउम्र साथियों को देखने, समझने या बातचीत करने का अंदाज बदल जाये.
  • ब्राउजर हिस्ट्री में अनुचित साइट्स, सर्च, विजिट की जानकारी हो.

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