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National Commission for Men : देश में क्यों उठ रही है पुरुष आयोग की मांग, ये हैं बड़े कारण…

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National Commission for Men : महिलाओं के द्वारा पुरुषों एवं उनके परिवारजनों के खिलाफ हिंसा कोई नई घटना नहीं है. यद्यपि पुरुषों पर होने वाले अत्याचारों से संबंधित आंकड़े उपलब्ध नहीं है लेकिन इस तथ्य से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि इस तरह के मामलों में बढ़ोतरी हुई है.

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-अनंत कुमार-
(प्रोफेसर, जेवियर समाज सेवा संस्थान, रांची)

National Commission for Men : पिछले कुछ वर्षों से पुरुषों के द्वारा राष्ट्रीय पुरुष आयोग के गठन की मांग की जा रही है. यह मांग कई शहरों दिल्ली, लखनऊ, रांची, एवं जयपुर जैसे शहरों से लगातार उठ रही हैं, खासकर उन संस्थाओं या व्यक्तियों के द्वारा जो पुरुष अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं या महिलाओं एवं उनके परिवारों के द्वारा उत्पीड़ित हैं.

इन संस्थाओं, खासकर ऑल इंडिया मेंस वेलफेयर एसोसिएशन, सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन एवं अन्य का मानना है कि दहेज उत्पीड़न एवं घरेलू हिंसा संबंधी कानूनों का महिलाओं के द्वारा पुरुष उत्पीड़न में गलत इस्तेमाल किया जा रहा है. उनका मानना है कि ये कानून न सिर्फ स्त्रियों के पक्ष में हैं बल्कि एकतरफा हैं. ऐसे कई दृष्टांत हैं जहां महिलाओं ने पुरुषों एवं उनके परिवार के सदस्यों पर झूठे आरोप लगा, परेशान करने के लिए या अपने गलत हितों को साधने के लिए, दहेज विरोधी या महिला हिंसा विरोधी कानूनों का इस्तेमाल किया है.

दहेज उत्पीड़न के झूठे मामले भी होते हैं दर्ज

National Commission for Men : कई परिवार, दहेज उत्पीड़न के झूठे मामलों (धारा 498-ए) एवं घरेलू हिंसा जैसे मामलों में निर्दोष होने बावजूद वर्षो से जेलों में बंद हैं. समय-समय पर अदालतों ने भी इस बात का संज्ञान लिया है कि इन कानूनों का गलत इस्तेमाल न हो.
यद्यपि, ये संस्थाएं स्त्रियों पर होने वाले अत्याचारों के प्रति सजग हैं, उनका मानना है कि स्त्रियों के हितों की रक्षा, पुरुषों की कीमत पर नहीं होनी चाहिए. उनका मानना है कि पुरुष भी सामान रूप से घरेलू हिंसा के शिकार हैं लेकिन उनके लिए पर्याप्त कानूनी प्रावधान या सरंक्षण नहीं है. उनके हितों की रक्षा के लिए कोई आयोग नहीं है जिसके समक्ष वे अपनी बातों को रख सकें, स्वयं का बचाव कर सकें, अपने परिवार के हितों एवं उन पर हो रहे अत्याचार को रोक सकें.

इन संस्थाओं के द्वारा विभिन्न मंचों एवं राजनीतिक दलों के समक्ष ये बातें उठाई जाती रही हैं कि राष्ट्रीय पुरुष आयोग का गठन किया जाए ताकि उत्पीड़ित पुरुषों एवं उनके परिवारों के हितों की रक्षा हो सके. इस संबंध में इन संस्थाओं ने राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री एवं सांसदों को भी पत्र लिखकर ज्ञापन दिया है.

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राष्ट्रीय पुरुष आयोग क्या रोक पाएगा अत्याचार?

ऐसे में यह सवाल उठना वाजिब है कि क्या राष्ट्रीय पुरुष आयोग के गठन मात्र से ही इन समस्याओं का हल संभव है. क्या राष्ट्रीय पुरुष आयोग महिलाओं के द्वारा पुरुषों या उनके परिवारों पर होने वाले अत्याचारों को रोकने में सक्षम होगा. पूर्व के आंकड़े यह बताते हैं कि राष्ट्रीय महिला आयोग के गठन के पच्चीस वर्ष एवं उनके अथक प्रयासों, कानूनों एवं हस्तक्षेप के बावजूद महिलाओं पर होने वाली अत्याचारों की संख्या में बढ़ोतरी हुई हैं. आज भी महिलाएं अपने को असुरक्षित महसूस करती हैं.

पुरुषों के साथ हिंसा नई बात नहीं

महिलाओं के द्वारा पुरुषों एवं उनके परिवारजनों के खिलाफ हिंसा कोई नई घटना नहीं है. यद्यपि पुरुषों पर होने वाले अत्याचारों से संबंधित आंकड़े उपलब्ध नहीं है लेकिन इस तथ्य से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि इस तरह के मामलों में बढ़ोतरी हुई है. महिला सशक्तिकरण एवं अन्य सामाजिक एवं आर्थिक हस्तक्षेपों के कारण, अपने घरों में आर्थिक स्वतंत्रता और अर्थव्यवस्था और संसाधनों पर महिलाओं का नियंत्रण बढ़ा है साथ ही साथ उनमें अपने अधिकारों के प्रति चेतना भी बढ़ी है. ऐसे में स्त्री-पुरुष के बीच शक्ति-संघर्ष एवं वर्ग-संघर्ष अपेक्षित है जिसमें शक्तिशाली शोषक एवं शक्तिहीन शोषित होगा. इस शक्ति-परिवर्तन से स्त्री-पुरुष संबंध प्रभावित हुए हैं.

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इन दलीलों के आधार पर पुरुषों पर होने वाले अत्याचारों की अनदेखी नहीं की जा सकती लेकिन इस तथ्य से इनकार भी नहीं किया जा सकता कि राष्ट्रीय पुरुष आयोग के गठन मात्र से ही इस समस्या का समाधान संभव है. साथ ही इस संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इससे राष्ट्रीय महिला आयोग एवं राष्ट्रीय पुरुष आयोग के बीच विभिन्न मुद्दों पर टकराव बढ़ेगा जो महिला एवं पुरुष दोनों के ही हितों के लिए ठीक नहीं है. साथ ही यह भी समझने की जरूरत है कि समुदाय, परिवार, एवं पति-पत्नी के बीच के संबंध आपसी विश्वास एवं सामाजिक पूंजी से चलते हैं. ऐसे में अदालतों, कानूनों, एवं आयोगों कि अपनी सीमाएं होती हैं.

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