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Independence Day 2024: तकनीक में उपभोक्ता से निर्यातक का सफर

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हाल के दिनों में ईजाद हुए डाटा विज्ञान, ब्लॉकचैन, ड्रोन, एआइ मशीन लर्निंग (एमएल), रोबोटिक्स, क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी तकनीकों का न सिर्फ हमारे देश में बेहतर उपयोग हो रहा है

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वर्ष 1947 में देश की आजादी के समय हम जहां सूचना प्रौद्योगिकी और तकनीक के सीमित उपभोक्ता थे, वहीं आज 77 साल बाद हम आइटी उत्पाद और सेवाओं के प्रमुख निर्यातकों में एक हैं. वित्त वर्ष 2023 में देश की जीडीपी में आइटी निर्यात की हिस्सेदारी 7.5 फीसदी रही. भारतीय आइटी क्षेत्र का कुल मूल्यांकन 240 अरब डॉलर से ज्यादा है और इसमें 50 लाख से ज्यादा लोग कार्यरत हैं. भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण सेवा (ईएमएस) उद्योग के 23.5 अरब डॉलर से 6.5 गुना बढ़कर 2025 तक 152 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है. नैसकॉम और मैकिन्से की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का प्रौद्योगिकी सेवा उद्योग 2025 तक वार्षिक राजस्व में 300 अरब डॉलर से ऊपर पहुंच सकता है.

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स्वतंत्रता दिवस के 77वें वर्षगांठ पर भारत के तकनीक और सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उपभोक्ता से निर्यातक बनने के उद्भव का वर्णन प्रासंगिक हो जाता है. स्वतंत्रता के बाद हमारे देश भारत में तकनीक के तेज विकास के कई प्रमुख कारक हुए, जैसे 1947 में भारत सरकार ने वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआइआर) की स्थापना की, जहां से तकनीकी विकास की परिकल्पना शुरु हुई. फिर 1952 में तकनीक और प्रौद्योगिकी के शोध और प्रशिक्षण के लिए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) बॉम्बे की स्थापना हुई. वर्ष 1967 में भारत ने अपना पहला उपग्रह आर्यभट्ट भेजकर संचार क्षेत्र में स्वावलंबन की तरफ कदम बढ़ाया.

उसी वर्ष भारत में आइटी उद्योग का विधिवत आरंभ मुंबई में टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज की स्थापना के साथ हुआ. टीसीएस ने सॉफ्टवेयर सेवाओं की शुरुआत टाटा स्टील के कर्मचारियों के लिए पंच कार्ड सुविधाएं विकसित करने से किया. टीसीएस ने 1977 में प्रसिद्ध अमेरिकी व्यावसायिक उपकरण निर्माता कंपनी बरोज कॉर्पोरेशन के साथ भागीदारी कर भारत से आइटी सेवाओं का निर्यात शुरू किया. वर्ष 1973 में मुंबई में पहले सॉफ्टवेयर निर्यात क्षेत्र सांताक्रुज इलेक्ट्रॉनिक एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग यूनिट (सीप्ज) की स्थापना की गयी. अस्सी के दशक में देश का 80 प्रतिशत से अधिक सॉफ्टवेयर निर्यात सीप्ज से ही हुआ था. अजीम प्रेमजी 1966 में प्रसिद्ध संस्था विप्रो के अध्यक्ष बने और कुछ वर्षों बाद ही उन्होंने ध्यान आइटी सेवा पर केंद्रित कर दिया. पटनी कंप्यूटर सिस्टम्स ने 1972 में स्थापना के बाद से सॉफ्टवेयर निर्माण और आइटी सर्विस देना शुरू किया, उस समय इसका नाम डेटा कन्वर्शन इंक था. साल 1981 में नारायण मूर्ति और उनके सहयोगियों ने गुणवत्तापूर्ण सॉफ्टवेयर सेवा प्रदान करने के लिए प्रसिद्ध संस्था इंफोसिस की स्थापना की.

जनवरी 1984 में अनावृत की गयी नयी इलेक्ट्रॉनिक्स नीति के प्रमुख उद्देश्य थे- इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा, सरकारी विभागों के लिए कंप्यूटर का आयात, विज्ञान शहर/विज्ञान पार्क स्थापित कर तकनीकी विकास को प्रोत्साहित करना और प्रवासी भारतीय तकनीकी विशेषज्ञों को देश वापस लौटने के लिए मुक्त व्यापार निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र स्थापित करना. वर्ष 1991 में उदारीकरण के बाद भारतीय तकनीक व्यवसाय क्षेत्र में तेज विकास हुआ. भारत सरकार के इलेक्ट्रॉनिक्स विभाग ने 1991 में आइटी सुधार के लिए सॉफ्टवेयर टेक्नोलॉजी पार्क ऑफ इंडिया (एसटीपीआइ) नामक निगम की स्थापना की.

एसटीपीआइ ने संबद्ध संस्थाओं को वीसैट संचार प्रदान करने के अलावा विभिन्न शहरों में सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी पार्क स्थापित किये, जहां से संस्थाओं को उपग्रह लिंक मिलना संभव हो पाया. साल 1993 में सरकार ने कंपनियों को विशेष लिंक की अनुमति प्रदान की, जिससे देश में किये गये कार्य सीधे विदेशों में प्रसारित हो पाये. आम जनता के लिए इंटरनेट 15 अगस्त, 1995 को वीएसएनएल द्वारा उपलब्ध कराया गया. उसी वर्ष माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम की शुरुआत कर आम उपभोक्ता के लिए कंप्यूटर का उपयोग सुगम बना दिया.

वर्ष 1996 में रेडिफ ने मुंबई में भारत का पहला साइबर कैफे खोला. आइसीआइसीआइ बैंक ने 1997 में ऑनलाइन बैंकिंग की शुरुआत की. वर्ष 1998 में सूचना प्रौद्योगिकी और बीपीओ उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज (नैसकॉम) की स्थापना की गयी, जिससे निजी इंटरनेट सेवा प्रदाता कंपनियों को अनुमति मिली. नयी दूरसंचार नीति, 1999 से बुनियादी ढांचे की उपलब्धता सुलभ हो गयी. उपग्रह, टावर और अन्य दूरसंचार संबंधी व्यवसाय में निजी क्षेत्र के प्रवेश की अनुमति से दूरसंचार क्षेत्र में तेज विकास संभव हो पाया. वर्ष 2000 में भारत विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का सदस्य बना, जिससे भारतीय तकनीकी कंपनियों को नया बाजार मिला. वर्ष 1999 में रेलवे आरक्षण प्रणाली को देशभर में जोड़ा गया था. वर्ष 2000 तकनीकी विकास के लिए ऐतिहासिक वर्ष रहा. इसी वर्ष केबल इंटरनेट, याहू, ईबे और एमएसएन जैसी साइटों की शुरुआत हुई.

वर्ष 2002 में एयरलाइंस के ऑनलाइन बुकिंग सिस्टम की आरंभ हुआ. प्रसिद्ध कंपनी गूगल ने 2004 में भारत में अपना कार्यालय खोला. उसी वर्ष बीएसएनएल ने ब्रॉडबैंड सेवाएं शुरू कीं. सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम 2000 ने इलेक्ट्रॉनिक दस्तावेजों, डिजिटल हस्ताक्षरों को कानूनी मान्यता प्रदान की और अपराधों और उल्लंघनों के लिए प्रावधान बनाये. देश में फिनटेक का नींव 2009 में दो संस्थाओं-नेशनल पेमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया और यूनिक आइडेंटिटी अथॉरिटी ऑफ इंडिया के स्थापना के साथ रखा गया. इसी क्रम में एनपीसीआइ के द्वारा 2016 में दुनिया के सर्वोत्कृष्ट डिजिटल जन भुगतान प्रणाली यूपीआइ का शुरुआत किया जाना क्रांतिकारी कदम साबित हुआ.

हाल के दिनों में ईजाद हुए डाटा विज्ञान, ब्लॉकचैन, ड्रोन, एआइ मशीन लर्निंग (एमएल), रोबोटिक्स, क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी तकनीकों का न सिर्फ हमारे देश में बेहतर उपयोग हो रहा है, बल्कि इनसे जुड़े उत्पाद और सेवाओं का निर्यात भी हो रहा है. क्लाउड कंप्यूटिंग क्षेत्र के 2027 तक 20 प्रतिशत सालाना के औसत से बढ़ने की उम्मीद है. एआइ और एमएल क्षेत्र में भी तेज विकास हो रहा है. तकनीकी क्षेत्र में भारतीय प्रतिभा की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है. कुल मिलाकर, आज हम तकनीक के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने के साथ वैश्विक तकनीकी परिदृश्य को भी बेहतर बनाने में अपनी भूमिका निभा रहे हैं.

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