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जंगल बचाने के लिए ग्रामीणों ने की थी 100 किलोमीटर की पदयात्रा पार्ट 2

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पदयात्रा की शुरुआत झारंखड के नशामुक्त गांव से हुई इसके बाद यह यात्रा यहां से भूसूर और मूटा होते हुए गणेशपुर गांव पहुंची. भूसूर गांव में वन संरक्षण के लेकर बेहतर प्रयास हुआ है. मूटा में भी अब वनों को बचाने के लिए ग्रामीण जागरूक हो रहे हैं और सामने आ रहे हैं.

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पदयात्रा -03

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आज भी पेड़ों की कटाई जारी

ईचादाग, ओरमांझी

वन बचाने के लिए पदयात्रा ओरमांझी प्रखंड के ईचादाग गांव में भी की गयी थी, लेकिन इस गांव में वन को बचाने के लिए लोग एकजुट नहीं हुए. उस वक्त तो ग्रामीण तैयार हुए थे, पर बाद में किसी ने भी दिये गये सुझावों को नहीं माना. आज भी गांव में बेरोक-टोक लोग पेड़ काटते हैं. उन्हें रोकने वाला कोई नहीं है. गांव में वन रक्षा के लिए कोई समिति नहीं है. यही कारण है कि इस गांव के जंगल सिकुड़ते जा रहे हैं.

ग्रामीण जागरूक नहीं हुए : विनोद गंझू

ग्रामीण विनोद गंझू बताते हैं कि गांव में पदयात्रा होने के बाद भी ग्रामीणों की सोच में कोई बदलाव नहीं आया है. जबकि आसपास के गांवों में वन बचाने को लेकर बेहतर कार्य हुए हैं. गांव में वन बचाने के लिए कोई बैठक नहीं होती है. यहां पेड़ों की कटाई जारी है.

यह भी पढ़ें: जंगल बचाने के लिए ग्रामीणों ने की थी 100 किलोमीटर की पदयात्रा

पदयात्रा -04

1995 से ग्रामीण बचा रहे जंगल

बड़गाईंबंडा, ओरमांझी

वन क्षेत्र : करीब 500 एकड़

बड़गाईबंडा ओरमांझी प्रखंड का एक गांव है. गांव पहाड़ों से घिरा है. गांव के पास करीब 500 एकड़ में जंगल है, जबकि गांव के 100 एकड़ में वन रक्षाबंधन किया जाता है. बड़गाईबंडा, पिपराबंडा और बाघिनबंडा गांव में नये पौधे नहीं लगाये गये हैं, पर ग्रामीण पुराने वृक्षों को वर्ष 1995 के बाद से ही संरक्षित कर रहे हैं. इसका फायदा यह हुआ कि कभी गांव के पास के पहाड़ों के ऊपर मिट्टी नजर आती थी, लेकिन आज पूरा पहाड़ हरा-भरा दिखाई पड़ता है.

सिर्फ 10 फीसदी ग्रामीण वन के बारे में सोचते हैं : अशोक भोक्ता

बाघिनबंडा के ग्राम प्रधान अशोक भोक्ता बताते हैं कि अभी भी जंगल को बचाने के लिए सिर्फ 10 फीसदी ग्रामीण ही आते हैं. अभी भी सभी ग्रामीणों के सोच में बदलाव नहीं आया है. जंगलों को बचाने में तीनों गांवों ने सफलता पायी है. साप्ताहिक बैठक में ग्रामीणों को पेड़ नहीं काटने के लिए जागरूक किया जाता है.

पदयात्रा -05

जंगल में आयी हरियाली

बाघिनबंडा, ओरमांझी

वन क्षेत्र : 45 एकड़

ओरमांझी प्रखंड के बाघिन बंडा गांव में ग्रामीणों की मेहनत रंग लायी. 13 अप्रैल को यहां पर वन रक्षाबंधन त्योहार मनाया जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि पहले इस गांव में बेरोक-टोक पेड़ों की कटाई होती थी, लेकिन जब यहां पदयात्रा हुई और ग्रामीणों ने नव रक्षाबंधन किया, तब जाकर ग्रामीणों ने पेड़ काटना बंद कर दिया. अब बहुत जरूरी होने पर ही वन रक्षा समिति में आवेदन देकर पेड़ काटे जाते हैं. साथ ही नये पेड़ लगाने का संकल्प भी लिया जाता है. आज गांव में हरे-भरे जंगल हैं.

पदयात्रा -06

हजारों पेड़ों में होता है रक्षा बंधन

पिपराबंडा, ओरमांझी

वन क्षेत्र : लगभग 500 एकड़

वन बचाने के लिए निकाली गयी पदयात्रा इचादाग के बाद इस गांव में पहुंची थी. पिपराबंडा, बाघिनबंडा और बड़गाईंबंडा के ग्रामीण एक ही दिन 13 अप्रैल को वन रक्षाबंधन का त्योहार मनाते हैं. ग्रामीणों की सोच में अब बदलाव आया है. गांव के पास लगभग 500 एकड़ वन क्षेत्र है, जबकि 100 एकड़ क्षेत्र में वन रक्षाबंधन किया जाता है. ग्रामीण बताते हैं कि गांव में पदयात्रा के दौरान गांव में बैठक आयोजित हुई थी. इस बैठक में ग्रामीणों को जंगल की अहमियत की जानकारी दी गयी थी. इसके बाद जंगल बचाने का कार्य शुरू हुआ था.

पदयात्रा -07

400 एकड़ में हैं हरे-भरे जंगल

आरा-केरम, ओरमांझी

वनक्षेत्र : 400 एकड़

ओरमांझी प्रखंड के आदर्श गांव आरा-केरम ने वन बचाने के लिए बेहतरीन पहल की है. इसका बेहतर परिणाम भी सामने आया. आज गांव के पास 400 एकड़ वन क्षेत्र है, जिसमें 10 एकड़ में पौधे ग्रामीणों द्वारा लगाये गये हैं. वनों को बचाने की शुरुआत ग्रामीणों ने वर्ष 1992 से ही कर दी थी. घटते वन क्षेत्र को देखते हुए ग्रामीणों ने गांव में समिति का गठन किया. गांव में जंगलों को बचाने के लिए ग्रामीण साप्ताहिक बैठक करते थे. गांव में पेड़ नहीं काटने के लिए नियम बनाये गये हैं. आज ग्रामीण वन क्षेत्र से दातून व सूखे पत्ते भी नहीं लाते हैं. जानवरों को भी जंगल में चराने की मनाही है. आज गांव के पास घने जंगल हैं. इसमें कई जंगली जानवर भी हैं. वनों को बचाने के लिए ग्रामीणों ने काफी संघर्ष किया है.

14 अप्रैल को होता है वन रक्षाबंधन

बनलोटवा से चली पदयात्रा आरा-केरम गांव पहुंची थी. इसके बाद से गांव में वर्ष 2014 से वन रक्षाबंधन की शुरुआत हुई. ग्रामीण मानते हैं कि वन से ही जीवन है. अगर पेड़ नहीं होंगे, तो संतुलन बिगड़ जायेगा. इसलिए पेड़ लगाना जरूरी है. गांव में वन को बचाने संबंधित कई बोर्ड लगे हैं. साथ ही नियम तोड़ने पर जुर्माने का भी प्रावधान है. अभी भी ग्रामीण वन को बचाने के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं.

पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचाना है : दुधेश्वर बेदिया

आरा- केरम ग्राम वन सुरक्षा समिति के सदस्य दुधेश्वर बेदिया कहते हैं कि घटते जंगल के कारण पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है. इसके कारण लोगों में बीमारियां भी बढ़ रही हैं. जंगल लगाकर हम विभिन्न बीमारियों से बच सकते हैं. पर्यावरण को प्रदूषित होने से बचा सकते हैं. जंगली जानवरों के शिकार पर भी रोक है. जंगली जानवर को बचाने के लिए भी ग्रामीण हमेशा तैयार रहते हैं, क्योंकि जानवर है तो जंगल है और जंगल है तो हम हैं.

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