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युवा पीढ़ी की पायलट योजना

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21वीं सदी की राजनीति विचारधाराओं की नहीं, बल्कि व्यक्तियों के बीच गतिरोध की है. उम्र के साथ, अति महत्वाकांक्षी नेता सत्ता खेल के नियमों को निर्धारित कर रहे हैं.

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प्रभु चावला, एडिटोरियल डायरेक्टर, द न्यू इंडियन एक्सप्रेस

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prabhuchawla@newindianexpress.com

उम्र अनुभव का विकल्प नहीं है. युवा के पास विकल्प बनने का अनुभव नहीं है, यहां तक कि राजस्थान गतिरोध के मामले में भी. सचिन पायलट की अगुवाई में विद्रोही गुट ने दस जनपथ के शीर्ष आदेश को दरकिनार कर दिया. जेनरल गांधी 4.0 के भाईचारे का भाव बूढ़े अशोक गहलोत के लिए असंतोष का संकेतक बन रहा है, जो उत्तराधिकार पर अपना अधिकार जमा रहे हैं. महत्वाकांक्षा मौके का अमृत है.

बिना उड़ान योजना के 42 वर्षीय पायलट 69 वर्षीय गहलोत के को-पायलट थे. पुराने एयरक्रॉफ्ट द्वारा अवरुद्ध कांग्रेस रनवे युवाओं के उत्साह में बाधक है, जो किसी प्रकार कॉकपिट में दाखिल होने के लिए अधीर हैं. इससे पहले कांग्रेस पार्टी के कुलीन बालक 49 वर्षीय ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी का त्याग कर दिया, क्योंकि महसूस किया कि उन्हें वह नहीं मिला, जिसके वे हकदार थे.

उन्होंने कमलनाथ सरकार को गिरा दिया और भाजपा की राह पकड़ ली, जिसने उन्हें ऊपरी सदन की कुर्सी से सम्मानित कर दिया. उनके साथी सचिन पायलट ने अपनी राज्य इकाई का छह वर्ष नेतृत्व किया और राजस्थान में पार्टी को सत्ता में लाने में सफल हुए. वे मुख्यमंत्री पद के लिए आशान्वित थे, लेकिन उन्हें उपमुख्यमंत्री पद से संतोष करना पड़ा. यूपीए शासन में वे अपने 30वें वर्ष के उत्तरार्ध में केंद्रीय मंत्री बने और 40वें वर्ष से पहले ही उन्हें संगठन की जिम्मेदारी दी गयी. एड़ी ठंडी करने से अब उनका स्वभाव गर्म हो गया है.

पायलट और सिंधिया सत्ता हासिल करने तथा सत्ता में बने रहने के लिए 130 वर्ष पुरानी पार्टी कांग्रेस में पीढ़ियों के संघर्ष का प्रतीक बन रहे हैं. शरद पवार पहले युवा तुर्क थे, जिन्होंने महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार को गिराया और 38 वर्ष की आयु में वहां के सबसे युवा मुख्यमंत्री बने. भगवा पार्टी की स्थिरता का श्रेय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और प्रधानमंत्री मोदी को जाता है, जिन्होंने संगठन में युवाओं के लिए मौके बनाये हैं.

आधे से अधिक मुख्यमंत्री 50 वर्ष से कम आयु के हैं. केंद्रीय कैबिनेट में औसत आयु 60 वर्ष है, शायद आजादी के बाद से सबसे युवा. भाजपा ने 75 वर्ष से अधिक आयु के बाद किसी को भी राजनीतिक पद नहीं देने की अनिवार्यता तय कर दी है. सत्तर साल की आयु पार करते ही नेताओं को प्रतिस्थापित कर योग्य युवाओं को मौका दिया जा रहा है.

भाजपा नयी पीढ़ी को तैयार कर रही है. हालांकि, आलोचकों का कहना है कि मोदी और शाह ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को दरकिनार कर दिया है, जिन्होंने संगठन को जमीन से खड़ा किया है. उन्हें यह भी लगता है कि अगर अनुभवी नेताओं को ढीठ आदमी के लिए दरकिनार कर दिया जाता है, तो पार्टी को लंबी अवधि में नुकसान भी हो सकता है. वे कार्रवाई के डर से कैप्टन और को-पायलट को अप्रिय प्रतिक्रिया नहीं देते.

क्षेत्रीय पार्टियों में नेतृत्व का निर्धारण जाति, क्षेत्र और धर्म के गणित के आधार पर तय होता है. वे युवा नेताओं को पहले ही तैयार कर लेती हैं. अधिकांश परिवार संगठन हैं, जिससे पुरानी से नयी पीढ़ी में बदलाव आसानी से हो जाता है. ऐसा पहला बदलाव हरियाणा के देवीलाल ने किया. उन्होंने अपने बेटों को लोकदल पार्टी पर थोप दिया और एक को कम उम्र में ही मुख्यमंत्री बना दिया.

अभी उनके प्रपौत्र दुष्यंत चौटाला उप-मुख्यमंत्री हैं. जम्मू-कश्मीर में फारुक अब्दुल्ला ने वरिष्ठ नेताओं पर अपने 38 वर्षीय बेटे उमर अब्दुल्ला को तरजीह देते हुए राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया. उत्तर प्रदेश में सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने अपने बेटे अखिलेश यादव को भारत के सबसे बड़े राज्य की कमान सौंप दी.

कांग्रेस ही एकमात्र पार्टी है, जो शक्ति हस्तांतरण के लिए एक व्यावहारिक और प्रभावी तंत्र को स्थापित करने में विफल रही है. इंदिरा गांधी के समय बुजुर्ग वफादारों को आगे कर, स्थानीय क्षत्रपों को दरकिनार कर दिया गया. देवराज उर्स, आरके हेगड़े, प्रणब मुखर्जी, माधवराव सिंधिया, ममता बनर्जी जैसे योग्य नेताओं ने निराश होकर पार्टी को उसी के हाल पर छोड़ दिया.

भारत की 70 फीसदी आबादी 45 वर्ष से कम आयु की है. युवा कम पर राजी नहीं है. कांग्रेस में जो 50 साल से कम आयु के हैं, उन्हें लगता है कि क्यों सभी मुख्यमंत्री वरिष्ठ ही होने चाहिए. वे उम्मीद करते हैं कि वरिष्ठ जगह खाली करें. उनका मानना है कि वे जनता की नब्ज को महसूस करते हैं. क्योंकि बेहतर शिक्षा और प्रदर्शन के कारण वे नयी पीढ़ी से जुड़ने के लिए बेहतर स्थिति में हैं.

स्वतंत्र भारत भले ही 73 वर्ष पुराना है, लेकिन उसे सिद्धहस्त भद्रपुरुषों की दया पर नहीं छोड़ा जा सकता, जो अतीत में जीते हैं और आधुनिक तथा समृद्ध प्राथमिकताओं से अनजान हैं. कई युवा नेता विदेश से शिक्षित हैं और अपने बॉस की तुलना में स्वस्थ और स्मार्ट हैं. लेकिन, कई छाप छोड़ने में असफल भी रहे हैं. जम्मू-कश्मीर में उमर और अच्छे प्रदर्शन के बावजूद अखिलेश सत्ता में वापस नहीं आ सके. लालू यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव भी सत्ता में नहीं रह सके.

पार्टी को एकजुट रखने में असमर्थता के लिए राहुल गांधी भी समान रूप से जिम्मेदार हैं. जो लोग कांग्रेस को छोड़ रहे हैं, वे एक समान वंश और अभिजात्य परवरिश के हैं. राहुल को गांधी होने का फायदा है. उनके नेतृत्व में पार्टी दो लोकसभा और कई राज्यों को हार चुकी है. सार्वजनिक तौर पर वे शीर्ष पद को लेकर अनिच्छुक हैं, लेकिन पार्टी का चेहरा बने हुए हैं. कांग्रेस को अभी गांधी के बिना जीवित रहने की कला सीखनी है.

चूंकि कांग्रेस की युवा पीढ़ी आधुनिक सामाजिक-राजनीतिक वातावरण से आयी है और वैचारिक सीख से दूर है, जबकि पार्टी की चाल पुराने ढर्रे पर है. 21वीं सदी की राजनीति विचारधाराओं की नहीं, बल्कि व्यक्तियों के बीच गतिरोध की है. उम्र के साथ, अति महत्वाकांक्षी नेता सत्ता खेल के नियमों को निर्धारित कर रहे हैं.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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