14.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

आंतरिक साधना है योग

Advertisement

असावधानी तथा शीघ्रता से किये योगाभ्यास से शरीरांगों को ऐसी हानि प्राप्त हो सकती है, जो कभी मिटाई नहीं जा सकती.

Audio Book

ऑडियो सुनें

चित्त की चंचलताओं या क्रियाओं पर स्वामित्व स्थापन, नियंत्रण या उनको हटा देना योग है. ऋग्वेद में आया है कि विज्ञलोग अपने मन को केंद्रित रखते हैं. इसमें प्रयुक्त योग शब्द के अर्थ तथा उपनिषदों एवं परवर्ती संस्कृत ग्रंथों में प्रयुक्त योग के अर्थ में बहुत लंबे काल की दूरी पड़ गयी है, जिससे योग का स्वरूप बदला है. आचार्य सायण ने योग का अर्थ। जो पहले से प्राप्त न हो, उसे प्राप्त करने के रूप में लिया है. दूसरे भारतीय दर्शनों की अपेक्षा योगसूत्र संक्षिप्त है. महर्षि पतंजलि द्वारा विरचित योगसूत्र के चार पादों में 195 सूत्र हैं. योग की मौलिक भावना उपनिषदों से जुड़ी है, जो बताती है कि आत्मा वास्तविक, नित्य एवं शुद्ध है, पर यह भौतिक विश्व में आसक्त रहता है और अनित्य यानी नाशवान पदार्थों के पीछे दौड़ता रहता है.

- Advertisement -

योगसूत्र द्वारा व्यवस्थित यम- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ऐसे कर्तव्य हैं, जो निषेध रूप में हैं. किसी को कष्ट न देना, झूठ न बोलना, किसी को नहीं लूटना, शुद्धता, संतोष, तप, स्वाध्याय एवं ईश्वर-प्रणिधान (कर्मों का ईश्वर को समर्पण) ऐसे कर्तव्य हैं, जिनका संबंध योगमार्ग का अनुसरण करने वाले व्यक्ति से है. मन की अवस्थाएं पांच हैं- क्षिप्त, मुग्ध (मूढ़), विक्षिप्त, एकाग्र एवं निरुद्ध. मन की चंचलता पर अधिकार प्राप्त करने के साधन हैं अभ्यास एवं वैराग्य. अभ्यास वह यत्न है, जिसके द्वारा वृत्तियों पर नियंत्रण कर मन को दीर्घकाल के लिए निरंतर एवं इच्छापूर्वक शांतिमय प्रवाह दिया जाता है. वैराग्य देखे हुए पदार्थों पर स्वामित्व-स्थापन की तृष्णा से विरक्ति है. अल्पज्ञात है कि योगसूत्र में किसी आसन का नाम नहीं है, पर महाकवि कालिदास के रघुवंश में वीरासन का उल्लेख है.

शंकराचार्य ने पद्मासन एवं अन्य विशिष्ट आसनों का उल्लेख किया है. ‘हठयोग-प्रदीपिका’ में आसन योग का पहला अंग माना गया है. ‘शिव’ ने सिद्ध, पद्म, सिंह एवं भद्र जैसे 84 आसनों की चर्चा की है. योग प्रणालियों में कुछ अंतर भी है. पातंजल योग चित्तानुशासन पर ही सारा प्रयास लगाता है, वहीं हठयोग का प्रमुख संबंध शरीर और उसके स्वास्थ्य, शुद्धता एवं रोगरहितता से है. पतंजलि ने आसन की परिभाषा ऐसी शरीर स्थिति से की है, जो स्थिर एवं सरल अथवा सुखकर हो, वहीं हठयोग के अनुसार मयूरासन, कुक्कुटासन व सिद्धासन से रोगों का निवारण होता है. हठयोग ने कुछ क्रियाओं का भी उल्लेख किया है, जैसे – नेति (नासा-मार्ग निर्मल करना), धौति (आमाशय स्वच्छ करना), वस्ति (यौगिक एनिमा) एवं नौलि (पेट की नलिका हिलाना), पर इन विषयों पर पतंजलि मौन हैं.

असावधानी तथा शीघ्रता से किये योगाभ्यास से शरीरांगों को ऐसी हानि प्राप्त हो सकती है, जो कभी मिटाई नहीं जा सकती. जो लोग फेफड़ों एवं हृदय के रोगी हैं, उन्हें अपने से प्राणायाम नहीं आरंभ कर देना चाहिए, प्रत्युत किसी दक्ष व्यक्ति से परामर्श ले लेना चाहिए.

योगासनों के दो प्रकारों में एक प्राणायाम है, जो ध्यान एवं एकाग्रता के लिए उपयोगी है. दूसरा प्रकार शारीरिक रोगों के निवारण एवं स्वास्थ्य के लिए है. यदि कोई योगी अपेक्षाकृत स्वस्थ शरीर वाला है, तो वह प्राणायाम एवं अन्य अंगों का अभ्यास कर सकता है. आसनों के अतिरिक्त योगाभ्यासी को अपनी नासिका के अग्रभाग पर अपलक देखते रहना होता है, जिसका निर्देश श्रीकृष्ण ने गीता में किया है. प्राणायाम का अर्थ है कि प्राण का नियंत्रण. ‘याज्ञवल्क्य स्मृति’ में इसके दो अन्य पर्याय हैं- प्राणसंयम एवं प्राणसंरोध.

उपनिषदों में प्राण जीवों की प्रमुख शक्ति का रूप है और ब्रह्म का प्रतिनिधि या अंश है. प्राणायाम को योगसूत्र में श्वास एवं प्रश्वास का गति-विच्छेद कहा गया है. प्राणायाम के तीन भेद हैं – पूरक (बाहरी वायु भीतर लेना), कुंभक (लिये हुए श्वास को रोके रखना) एवं रेचक (फेफड़ों से वायु बाहर निकालना). योगपद्धति में प्राण का अर्थ केवल सांस ही नहीं है, प्रत्युत और कुछ है. यह जीवनी शक्ति एवं उन शक्तियों का द्योतक है, जो शरीर में वाणी, आंख, कान एवं मन और विश्व में विभिन्न रूपों में विद्यमान हैं. इसकी अभिव्यंजना फेफड़ों की गति में परिलक्षित होती है. योगसूत्र ने योगाभ्यासी के समक्ष यह सिद्धांत रखा है कि शरीर में प्राण के वैज्ञानिक संयमन से योगी मानव-चेतना एवं बाह्य विश्व में सामान्यतः न दिखाई पड़ने वाली शक्ति पर अधिकार पा सकता है.

असावधानी तथा शीघ्रता से किये योगाभ्यास से शरीरांगों को ऐसी हानि प्राप्त हो सकती है, जो कभी मिटाई नहीं जा सकती. जो फेफड़ों एवं हृदय के रोगी हैं, उन्हें अपने से प्राणायाम नहीं आरंभ कर देना चाहिए, प्रत्युत दक्ष व्यक्ति से परामर्श ले लेना चाहिए. स्वामी विवेकानंद ने योग के विद्यार्थियों से कहा था कि उन्हें यह जान लेना चाहिए कि गुरु से सीधा संपर्क स्थापित करके ही वे योगाभ्यास करें. कुछ अपवाद हो सकते हैं, पर बिना गुरु के योग का ज्ञान प्राप्त करना अच्छा नहीं है. योगसूत्र का दृढतापूर्वक कथन है कि ओम् (प्रणव) परमात्मा की भावना का द्योतक है और इसके जप तथा मन में इसके अर्थ को रखने से ध्यान बंध जाता है. गीता में आया है कि अभ्यास एवं वैराग्य से मन को नियंत्रण में रखा जा सकता है. यही बात योगसूत्र में भी है. पतंजलि के योगसूत्र के बहुत संस्करण हैं, जिनमें व्यास का भाष्य एवं वाचस्पति की टीका सम्मिलित हैं. एक टीका है पंडित राजाराम शास्त्री बोडस कृत संस्करण और दूसरी है आनंदाश्रम संस्करण, जिसमें वाचस्पति और राजा भोज की टीकाएं हैं. काशी संस्कृत सीरीज में योगसूत्र का प्रकाशन छह टीकाओं के साथ हुआ है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें