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रोजगार के अवसर बढ़ाने होंगे

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सरकार को मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में रोजगार बढ़ाने के लिए रणनीतिक रूप से आगे बढ़ना चाहिए.

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हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंत्रालयों एवं विभागों में डेढ़ साल के भीतर 10 लाख नियुक्ति का निर्देश दिया है. दिसंबर, 2021 में संसद में बताया गया कि केंद्र सरकार के विभागों में एक मार्च, 2020 तक 8.72 लाख पद खाली हैं. अधिकांश पद रक्षा, गृह, डाक, रेलवे व राजस्व विभाग से संबंधित हैं. बड़ी संख्या में युवाओं की पहली पसंद सरकारी नौकरी होती है. ऐसे में केंद्र सरकार द्वारा नौकरियों की घोषणा युवाओं के लिए बड़ा राहतकारी फैसला है.

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विभिन्न विभागों में खाली पदों के भरे जाने से बड़ी संख्या में युवाओं को रोजगार मिलेगा और सरकार की प्रशासनिक क्षमता बढ़ेगी, लेकिन केवल सरकारी नौकरियों द्वारा ही रोजगार की चुनौतियों का सामना नहीं हो सकेगा. पिछले पांच-छह वर्षों से बेरोजगारी ऊंचे स्तर पर है. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय की रिपोर्ट के मुताबिक 2017-18 में बेरोजगारी चार दशक के ऊंचे स्तर पर रही.

कोरोना काल में सरकार ने उद्योग-कारोबार से घटते रोजगार को बचाने के लिए अनेक पहल की. साथ ही, स्वरोजगार को बढ़ावा देने के लिए भी विशेष वित्तीय योजनाएं शुरू हुईं. वर्ष 2020 में आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया अभियान से अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के साथ-साथ आमदनी, मांग, उत्पादन और उपभोग में वृद्धि से रोजगार की चुनौती कम करने की कोशिश की. फिर भी, सख्त लॉकडाउन से उपजी बेरोजगारी का असर अभी बना हुआ है.

अब रूस-यूक्रेन युद्ध से उद्योग-व्यापार में मंदी की चिंता बढ़ रही है. सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल, 2022 में देश में बेरोजगारी दर बढ़कर 7.83 फीसदी हो गयी और मई, 2022 में यह घटकर 7.12 फीसदी पर रही. जनवरी से मार्च 2022 की अवधि पर आधारित सावधिक श्रम शक्ति सर्वे (पीएलएफएस) की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि रोजगार सृजन की स्थिति सुधारना जरूरी है. साथ ही, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में श्रमिकों की तादाद भी बढ़ानी होगी.

वर्ष 1991 से उदारीकरण शुरू होने के करीब तीन दशक बाद अब निजी क्षेत्र रोजगार के मामले में सरकारी क्षेत्र से बहुत आगे हैं. निजी क्षेत्र में स्वरोजगार, उद्यमिता और स्टार्टअप में रोजगार के अवसर बन रहे हैं. वित्त मंत्रालय की मई, 2022 की बुलेटिन के मुताबिक, वित्त वर्ष 2021-22 में कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) के सब्सक्राइबर्स में रिकॉर्ड 1.2 करोड़ की बढ़ोतरी हुई है.

देश में अस्थायी और ठेके पर काम करनेवाले कामगारों (गिग वर्कफोर्स) की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है. नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, वर्तमान में करीब 77 लाख गिग वर्कफोर्स है. इसकी संख्या 2029-30 तक 2.35 करोड़ होगी. लेकिन ऑनलाइन प्लेटफॉर्म या बिना प्लेटफॉर्म खानपान पहुंचाने वाले, कैब सेवाएं देने वाले, अन्य सर्विस व मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में गिग वर्कर्स के सामने सामाजिक सुरक्षा की बड़ी चिंताएं हैं. इन क्षेत्रों में भी रोजगार के अवसर सृजित करने के साथ-साथ नयी पीढ़ी को तैयार करने की रणनीति पर ध्यान देना होगा.

अब देश और दुनिया में परंपरागत रोजगारों के समक्ष चुनौतियां बढ़ गयी हैं और डिजिटल रोजगार छलांग लगाकर बढ़ते हुए दिखायी दे रहे हैं. कोविड-19 ने नये डिजिटल अवसर पैदा किये हैं, क्योंकि ज्यादातर कारोबारी गतिविधियां अब ऑनलाइन हो गयी हैं. वर्क फ्रॉम होम करने की प्रवृत्ति को व्यापक तौर पर स्वीकार्यता से आउटसोर्सिंग को बढ़ावा मिला है.

स्पष्ट है कि ऑटोमेशन, रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के चलते जहां कई क्षेत्रों में रोजगार कम हो रहे हैं, वहीं डिजिटल अर्थव्यवस्था में रोजगार बढ़ रहे हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि 2025 तक आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रोबोटिक्स, मशीन लर्निंग, ऑटोमेशन और डेटा साइंस जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों में प्रतिभा की मांग, प्रतिभा आपूर्ति की तुलना में 15 से 20 गुना अधिक हो सकती हैं. रोजगार के लिए लगातार नये-नये स्किल्स सीखना जरूरी होता जा रहा है.

इस समय कोविड-19 और यूक्रेन युद्ध की वजह से पैदा हुए रोजगार संकट को दूर करने के लिए सरकार को नये सिरे से सोचने की जरूरत है. साल 1930 की महाआर्थिक मंदी के समय अर्थशास्त्री कींस ने मंदी का अर्थशास्त्र प्रस्तुत करते हुए लोक निर्माण कार्यों को रोजगार एवं आय को बढ़ाने का महत्वपूर्ण आधार बताया था.

इसी तरह, 1933 से 1938 के बीच अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट द्वारा चलाये गये इतिहास प्रसिद्ध न्यू डील कार्यक्रम का मकसद भी आर्थिक मंदी के संकट में लोक निर्माण परियोजनाओं के माध्यम से बड़ी संख्या में लोगों को रोजगार देना था. रोजगार चुनौतियों के मद्देनजर राष्ट्रीय एवं स्थानीय दोनों ही स्तरों पर लोक निर्माण कार्यक्रम से रोजगार बढ़ाना जरूरी हो गया है.

जिस तरह गांवों में मनरेगा रोजगार का प्रमुख माध्यम बन गया है, उसी तरह शहरी बेरोजगारों के लिए भी योजना की जरूरत है. हम उम्मीद करें कि केंद्र सरकार अपनी घोषणा के अनुरूप आगामी डेढ़ वर्ष में 10 लाख नयी नौकरियों के मौके युवाओं की मुठ्ठियों में सौंपने में कामयाब होगी. हम उम्मीद करें कि केंद्र सरकार की तरह राज्यों में भी राज्यस्तरीय नयी नौकरियों के लिए भर्ती का बड़ा अभियान चलाया जायेगा. सरकार को मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में रोजगार बढ़ाने के लिए रणनीतिक रूप से आगे बढ़ना चाहिए.

डिजिटल प्रतिभाओं की कमी के परिदृश्य को ध्यान में रखकर नयी पीढ़ी को एआई, क्लाउड कंप्यूटिंग, मशीन लर्निंग एवं अन्य नये डिजिटल स्किल्स के साथ अच्छी अंग्रेजी, कंप्यूटर दक्षता तथा कम्युनिकेशन स्किल्स से सुसज्जित करने के लिए हरसंभव प्रयास करना होगा. इससे नयी पीढ़ी नये डिजिटल मौकों को भुना पायेगी.

नीति आयोग ने सेवा क्षेत्र में अस्थायी तौर पर काम करने वाले जिन लाखों गिग वर्कर्स के लिए बेहतर सामाजिक सुरक्षा की जरूरत बतायी है, उनकी सामाजिक सुरक्षा के लिए नयी नीति निर्धारित होनी चाहिए. ऐसे प्रयासों से नयी पीढ़ी के लिए रोजगार की चुनौतियां कम होंगी. इससे जहां नयी पीढ़ी के चेहरे पर मुस्कुराहट आ सकेगी, वहीं रोजगार अवसरों के बढ़ने से अर्थव्यवस्था में नयी मांग का निर्माण होगा. इससे अर्थव्यवस्था तेज गति से आगे बढ़ती हुई दिखाई देगी.

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