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आतंकवाद की बढ़ती चुनौती

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साल 2023 में भारत शंघाई सहयोग संगठन का अध्यक्ष बनेगा. लिहाजा, उम्मीद है कि आतंक के मसले पर ध्यान केंद्रित हो.

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दो दशक पहले जब शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की स्थापना हुई थी, तब उसके मुख्य उद्देश्यों में आतंकवाद निरोध भी था. इस संस्था के प्रारंभिक संस्थापक दो बड़े देश- रूस और चीन- थे. अब भारत समेत नौ देश इसके सदस्य हैं. इस संस्था के तहत आतंक रोकने के लिए जो घटक बना है, उसे एससीओ-रैट्स (रिजनल एंटी टेरर स्ट्रक्चर) कहा जाता है. बीते दिनों इसकी महत्वपूर्ण बैठक नयी दिल्ली में आयोजित हुई.

हालांकि भारत और पाकिस्तान के बीच कोई द्विपक्षीय वार्ता नहीं हो रही है, लेकिन इस बैठक में पाकिस्तानी प्रतिनिधियों ने भी हिस्सा लिया. इस बैठक का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है, क्योंकि हमारी सीमा पर चीन के अतिक्रमण की हालिया घटनाओं और रूस-यूक्रेन युद्ध के शुरू होने के बाद इस समूह की यह पहली बैठक है. इसमें भारत के अलावा चीन, पाकिस्तान, रूस, कजाखस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के प्रतिनिधि शामिल हुए थे.

अफगानिस्तान का दर्जा पर्यवेक्षक देश का है. उल्लेखनीय है कि भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल की पहल पर पिछले साल नवंबर में पांच मध्य एशियाई देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक हुई थी, जिसका मुख्य मुद्दा अफगानिस्तान की स्थिति थी. उसमें ईरान और रूस के अधिकारियों को भी विशेष रूप से आमंत्रित किया गया था.

भारत उन देशों में है, जो आतंकवाद, खास कर सीमा पार से संचालित होनेवाले आतंकवाद, से सबसे अधिक पीड़ित रहे हैं. इसलिए क्षेत्रीय संदर्भ में भी रैट्स की बैठक अहम हो जाती है. इस इकाई का भारत अभी अध्यक्ष भी है, इसलिए भी जरूरी है कि आतंक के मसले पर ध्यान केंद्रित किया जाए. इस बैठक में यह भी तय हुआ है कि अक्तूबर में भारत में आतंकरोधी प्रक्रियाओं पर एक अभ्यास का आयोजन होगा, जिसमें ये सभी देश भी भाग लेंगे.

साल 2023 में भारत एससीओ का अध्यक्ष बनेगा. उस लिहाज से भी ये आयोजन अहम हैं. इन पहलों के संदर्भ में दो बातें उल्लेखनीय हैं. एक तो यह कि पाकिस्तान इस समूह का सदस्य है और इसका अगुवा है चीन. भारत के लिए सबसे बड़ी समस्या सीमा पार से संचालित आतंकवाद है, जिसे पाकिस्तान का पूरा संरक्षण व समर्थन मिलता है. पाकिस्तान हमारे यहां हिंसक गतिविधियों को बढ़ाने के साथ अतिवादी विचारों को फैलाने में भी सहायता देता रहा है.

अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या इस समूह के देश और उनके प्रयासों से पाकिस्तान की हरकतों पर रोक लगा पाना संभव होगा. दूसरी बात यह है कि अफगानिस्तान में पिछले दो सालों में जिस तरह घटनाक्रम बदला है, वह सभी के लिए चिंताजनक है. पाकिस्तान में कुछ दिन पहले सिख समुदाय के दो लोगों की हत्या हुई है. वहां आतंकी हमलों में तेजी आयी है. अफगानिस्तान में भी लगातार आतंकी वारदातें हो रही हैं. विभिन्न देशों में जो आतंकी गिरोह सक्रिय हैं, वे तभी कामयाब हो पाते हैं, जब उन्हें किसी राजसत्ता का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष समर्थन प्राप्त होता है.

पाकिस्तान तो सीधे तौर पर आतंकी और चरमपंथी गुटों को शह देता है. ऐसे में यह देखना होगा कि किस तरह से एससीओ के सदस्य देश पाकिस्तान को यह कहेंगे कि वह आतंकियों पर पूरा अंकुश लगाए. जहां तक चीन की बात है, तो हमने मसूद अजहर के मामले में उसका रवैया देखा है. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जब उसे अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित करने और उस पर पाबंदी लगाने की कोशिशें हुईं, तो चीन ने अपने वीटो का इस्तेमाल कर कई बार अड़ंगा लगाया.

इससे यही साबित होता है कि जब भारत में आतंक की समस्या की बात आती है, तो चीन उसे लेकर गंभीर नहीं होता. अब यह चिंता भी सामने है कि अफगानिस्तान से जो आतंक पनपेगा, उससे सभी नौ सदस्य देशों के लिए समस्या पैदा होगी. ऐसे में रैट्स व्यवस्था के तहत ठोस पहलों की अपेक्षा की जा सकती है. चीन को भी अपने यहां पीटीआइएम जैसे गुटों के आतंकवाद को रोकना है, तो उसे भी गंभीर होना पड़ेगा.

अफगानिस्तान में तालिबान को इस्लामिक स्टेट और अन्य कुछ समूहों को रोकना है. पाकिस्तान में तहरीके-तालिबान पाकिस्तान और कई गिरोह सक्रिय हैं. मध्य एशियाई देशों में भी आतंकी गुट हैं. ईरान में भी ऐसी समस्याएं हैं. अफगानिस्तान एक तरह से आतंकियों का केंद्र बन गया है. वहां तालिबान आज सत्ता में है. उसे मान्यता नहीं दी गयी है, पर भारत समेत कई देश उसकी मानवीय सहायता कर रहे हैं. जो लोग आतंकवाद को औजार बनाकर खुद ही सत्ता में आये हों, उनका क्या रवैया रहेगा, यह बड़ा सवाल सबके सामने है.

आतंकवाद सबके लिए समस्या है, पर पाकिस्तान जैसे देश, जो आतंक से पीड़ित होते हैं, फिर भी आतंक को बढ़ावा देते हैं. पाकिस्तान ने भारत के विरुद्ध जिन गिरोहों का इस्तेमाल किया, वे गुट पाकिस्तान में भी वारदात करते हैं. यह जगजाहिर तथ्य है कि जब अफगान युद्ध के लिए 2001 में अमेरिकी वहां आये, तो पाकिस्तान ने आतंकी गिरोहों का रुख भारत की ओर कर दिया था. अब फिर ऐसी सूचनाएं आ रही हैं कि जो हथियार और गोला-बारूद अमेरिकी छोड़ गये हैं, वे भारत की ओर आने लगे हैं.

जब तक सभी देश मिलकर पाकिस्तान पर दबाव नहीं बनायेंगे, तब तक स्थिति में सुधार नहीं होगा. भारत ने हमेशा चाहा है कि पाकिस्तान के रवैये में सकारात्मक बदलाव आये, चाहे वहां की सत्ता किसी के हाथ में रही हो. पाकिस्तान से भारत को आतंकवाद के अलावा कोई अन्य समस्या नहीं है. भारत द्विपक्षीय स्तर पर कश्मीर मसले पर भी पाकिस्तान के साथ चर्चा करने के लिए तैयार है, पर उसके लिए जरूरी है कि अच्छा माहौल बने.

यह तभी हो सकता है, जब पाकिस्तान भारत विरोधी गिरोहों के खिलाफ ठोस कार्रवाई करे. जब पाकिस्तान पर अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का दबाव होता है, तब वे कुछ करते हैं, पर वह भी दिखावा ही होता है.

आतंकी सरगना पकड़े जाते हैं, पर कुछ समय बाद उन्हें रिहा कर दिया जाता है, पर यह संतोषजनक है कि एससीओ-रैट्स के मंच पर ही सही, पाकिस्तान सहयोग करता हुआ दिख रहा है. वहां जो नयी सरकार आयी है, उसके रुख का अनुमान अभी लगा पाना मुश्किल है. कुछ दिन पहले ही जम्मू-कश्मीर को लेकर बयान दिया गया है. ऐसा रवैया बेहतर माहौल बनाने की राह में अवरोध बन सकता है. पाकिस्तान की यह समस्या भी है कि वहां दो सरकारें हैं- एक इस्लामाबाद में और दूसरी रावलपिंडी में. (बातचीत पर आधारित).

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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