17.3 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 09:47 pm
17.3 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

आबादी का बढ़ता बोझ चिंताजनक

Advertisement

आबादी में चीन से आगे निकलने के दुष्परिणामों की आशंका ने भारतीय सत्ता, बौद्धिकों, नीति निर्धारकों और यहां तक कि राजनेताओं को सोते से जगा दिया है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

एक साल के भीतर भारत दुनिया की सर्वाधिक आबादी का देश बन जायेगा. हर घंटे लगभग 37 सौ लोगों के जुड़ने के हिसाब से 2030 तक हमारी जनसंख्या 150 करोड़ का आंकड़ा पार कर लेगी. आर्थिक वृद्धि की वर्तमान उच्चतम दर के बावजूद 50 करोड़ से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने के लिए मजबूर होंगे. उल्लेखनीय तकनीकी विकास के बाद भी अधिकतर भारतीयों को निर्बाध बिजली आपूर्ति और पर्याप्त पेयजल शायद ही मिल सके.

- Advertisement -

जगह और संसाधनों की मारामारी से विकास की उपलब्धियां खो जायेंगी. वैश्विक सकल घरेलू उत्पादन में भारत का हिस्सा सात फीसदी से भी कम है, पर दुनिया का लगभग हर पांचवां व्यक्ति भारत में रहता है. आर्थिक व सामाजिक तबाही की आशंकाओं की इस पृष्ठभूमि में बढ़ती आबादी रोकने के लिए कठोर उपायों की मांग फिर उठने लगी है. आपातकाल में परिवार नीति-निर्धारण का केंद्रीय विषय बना था.

संजय गांधी ने आबादी रोकने के लिए जोर-जबरदस्ती के साथ समझाने-बुझाने के भी रास्ते अपनाये थे. अत्यधिक बल प्रयोग और अल्पसंख्यकों के हिंसक विरोध के कारण वे असफल रहे. उत्तर भारत में कांग्रेस की चुनावी हार भी हुई. अगले चार दशक तक जनसंख्या नियंत्रण पर चर्चा करने की किसी राजनीतिक दल की हिम्मत नहीं हुई.

आबादी के मामले में चीन से आगे निकलने के दुष्परिणामों की आशंका ने भारतीय सत्ता, बौद्धिकों, नीति निर्धारकों और यहां तक कि राजनेताओं को सोते से जगा दिया है. स्वाभाविक रूप से यह विमर्श विचारधारात्मक आधारों पर हो रहा है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार और उससे जुड़े संगठन सरकार पर दो बच्चों तक संतानोत्पत्ति को सीमित करने का कानूनी प्रावधान करने के लिए दबाव बना रहे हैं.

हाल में संघ विचारक और भाजपा द्वारा नामित राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने सदन में व्यक्तिगत विधेयक प्रस्तावित किया था. किसी धर्म या समुदाय का उल्लेख किये बिना सिन्हा ने संकेत किया था कि कुछ वर्ग दूसरों की कीमत पर समृद्ध हो रहे हैं. इसके बाद उनके दल के कई लोगों ने जनसंख्या नियंत्रण की जरूरत पर जोर दिया, लेकिन उनकी बातों से लगता था कि वे बढ़ती आबादी के लिए अकेले मुस्लिम समुदाय को दोषी ठहराने के अपने असली इरादे को छुपाने की कोशिश कर रहे हैं.

इस मुद्दे को हिंदू बनाम मुस्लिम बना देने के कारण जनसंख्या नियंत्रण के निरंतर प्रयासों को धक्का लगता रहा है. आज भी, न केवल राजनेताओं द्वारा, बल्कि मीडिया में भी इसे सांप्रदायिक आधारों पर भी देखा जा रहा है. अगर दो बच्चों के कानून को समर्थन देने के लिए भाजपा नेताओं को बुलाया जाता है, तो अपनी पार्टी के अकेले सांसद असदुद्दीन ओवैसी अपने समुदाय के एकमात्र प्रवक्ता के रूप में चर्चा के केंद्र में आ जाते हैं. जब एक ही मंच पर दो अतिवाद हों, तो मुद्दा पिछड़ापन बनाम प्रगति का न रह कर बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक हो जाता है.

संघ परिवार का दावा है कि 1951 से हिंदुओं की संख्या तीन गुनी से कुछ अधिक हुई है, जबकि मुस्लिम समुदाय में यह बढ़त छह गुना से ज्यादा है. प्यू रिसर्च सेंटर के अध्ययन में भी बताया गया था कि 1951 से 2011 के बीच हिंदू व अन्य धार्मिक समूहों की आबादी तिगुनी हुई, पर मुस्लिम आबादी पांच गुना बढ़ गयी. और, शिक्षा और संपत्ति के मामले में अन्य के मुकाबले मुस्लिम समुदाय ही पिछड़ा हुआ है.

मुस्लिम समुदाय का दावा है कि मुस्लिम महिलाओं की कुल प्रजनन दर 1992 के 4.4 बच्चों से घट कर पिछले साल लगभग 2.6 रह गयी है, पर यह हिंदुओं और अन्यों के 2.1 के दर से अब भी बहुत अधिक है. उत्तर और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में मुस्लिम आबादी इतनी तेजी से बढ़ी है कि कई जिले अब मुस्लिम बहुल हो गये हैं. मुस्लिम आबादी का घनत्व एक हद तक समाजशास्त्रीय कारणों से है.

देश की 20 करोड़ मुस्लिम आबादी का आधा हिस्सा केवल छह राज्यों- उत्तर प्रदेश, केरल, पश्चिम बंगाल, असम, जम्मू-कश्मीर और बिहार- में है. इनमें केरल को छोड़कर अन्य राज्यों में शेष भारत की अपेक्षा अधिक जनसंख्या वृद्धि हुई है. आर्थिक मोर्चे पर भी इन राज्यों का प्रदर्शन कमतर रहा है, लेकिन भारत में अर्थशास्त्र आम लोगों की किस्मत तय नहीं करता. यह आस्था और भाईचारा से होता है.

उल्लेखनीय आर्थिक वृद्धि दर के बावजूद संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम के मानव विकास सूचकांक में भारत 131वें स्थान पर है. इस सूची में उसका प्रदर्शन श्रीलंका, भूटान, मलयेशिया, मॉरीशस आदि देशों से भी नीचे है. इस संस्था के मुताबिक, भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में 120वें तथा जल उपलब्धता में 180 देशों में 133वें पायदान पर है. यह विडंबना ही है कि अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहा भारत अभी भी पहचान की राजनीति और सामुदायिक विशेषाधिकारों के चक्कर में उलझा हुआ है.

भारतीय सोच प्रक्रिया पर वे लोग हावी हैं, जो सांप्रदायिक और सामुदायिक दृष्टि से ही सोचते हैं. उनमें से कुछ के लिए एक अरब मोबाइल फोन और उतने ही इंटरनेट उपभोक्ता भारत की समावेशी पहचान के ठोस संकेतक हैं. आबादी की निर्बाध बढ़त ने भारत को पीछे रखा है. जब अधिकतर देशों में जनसंख्या वृद्धि शून्य या ऋणात्मक हो चुकी है, भारत के लोग अब भी जैविक और जनसांख्यिक असंतुलन को बनाये रखने के लिए जूझ रहे हैं.

यह नेतृत्व का दोष है, क्योंकि अगर गरीबों ने अपनी संख्या कम कर अपने और धनिकों के बीच की खाई कम कर ली, तो नेतृत्व को ही नुकसान होगा. दुर्भाग्य से मुस्लिम समुदाय में प्रगतिशील नेताओं का अभाव है, जो झगड़े की जगह कल्याण के बारे में सोच सकते हैं. उन्हें पाकिस्तान या अफगानिस्तान का आदर्श अपनाने के लिए धकेला जा रहा है, मलयेशिया और इंडोनेशिया का उदाहरण नहीं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम आबादी की रोकथाम के लिए अर्थशास्त्र के महत्व को समझ लिया है.

उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं को पसमांदा मुस्लिमों से जुड़ने को कहा है, जिनकी मुस्लिम आबादी में 90 फीसदी हिस्सेदारी है. प्रधानमंत्री मोदी उन्हें भारतीय विकास की यात्रा में भागीदार बनाना चाहते हैं, लेकिन सशंकित समुदाय के लिए उनका यह प्रयास देर से आया है. भारत को अभी भी संख्या के खेल से निकलना है. आबादी में कमी से हिंदुओं की तुलना में मुस्लिम अधिक समृद्ध होंगे. जनसंख्या नीति की गंभीरता आत्मनिर्भर भारत के लिए सबसे अच्छा कदम है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें