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मुफ्त राशन का फैसला सराहनीय

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मुफ्त राशन वितरण के इन दो कार्यक्रमों से लगभग 81.35 करोड़ लोगों को लाभ होने का अनुमान है. लाभार्थियों की बड़ी संख्या, जो हमारी अनुमानित वर्तमान जनसंख्या का कमोबेश 58 प्रतिशत हिस्सा है.

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केंद्र सरकार ने निर्णय लिया है कि एक जनवरी, 2023 से एक साल के लिए गरीब परिवारों को निःशुल्क राशन उपलब्ध कराया जायेगा. यह एक आवश्यक कदम है और इसका स्वागत किया जाना चाहिए. उल्लेखनीय है कि कोरोना महामारी की शुरुआत से इस वर्ष दिसंबर तक, 28 माह तक, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत जरूरतमंद परिवारों को हर महीने पांच किलोग्राम अनाज मुफ्त दिया गया है. कैबिनेट ने जो हालिया फैसला लिया है, वह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के तहत है.

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इसमें प्राथमिकता वाले लाभार्थी परिवारों को हर महीने पांच किलोग्राम अनाज प्रति व्यक्ति के हिसाब से दिया जायेगा तथा अंत्योदय अन्न योजना, जो बेहद गरीब परिवारों को राहत पहुंचाने के लिए है, के तहत हर परिवार को 35 किलोग्राम अनाज हर महीने देने का प्रावधान किया गया है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के प्रावधान के तहत अभी तक लाभार्थी वर्ग को एक किलोग्राम चावल, गेहूं और मोटे अनाज के लिए क्रमशः तीन, दो और एक रुपये का भुगतान करना होता था, लेकिन अब कैबिनेट ने इन दरों को शून्य कर दिया है.

केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने जानकारी दी है कि इस वितरण पर सरकार दो लाख करोड़ रुपये से अधिक खर्च करेगी. मुफ्त राशन वितरण के इन दो कार्यक्रमों से लगभग 81.35 करोड़ लोगों को लाभ होने का अनुमान है. लाभार्थियों की बड़ी संख्या, जो हमारी अनुमानित वर्तमान जनसंख्या का कमोबेश 58 प्रतिशत हिस्सा है, यह इंगित करती है कि सुधार के बावजूद अर्थव्यवस्था उस स्थिति में नहीं पहुंची है, जिस स्थिति में समाज का निर्धन और वंचित समुदाय बिना ऐसी पहलों के समुचित आहार हासिल कर सके.

पिछले वर्ष यह अनुमान लगाया जा रहा था कि कोरोना महामारी के चलते जिस प्रकार अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है, उसमें सुधार भी बड़ी तेजी से होगा, पर कई कारकों के कारण ऐसा नहीं हो सका है. अभी कुछ क्षेत्रों में जहां बेहतर सुधार दिख रहा है, वहीं कई क्षेत्र अब भी संकट में हैं. संगठित क्षेत्र में बेहतरी उत्साहजनक है, लेकिन असंगठित क्षेत्र में चिंताजनक स्थिति बनी हुई है. असंगठित क्षेत्र में ही अधिक रोजगार होता है और इसकी हालत ठीक नहीं होने से बड़ी संख्या में परिवारों की आमदनी बहुत कम है.

यदि हम ग्रामीण क्षेत्र में कृषि एवं संबंधित व्यवसायों को देखें, तो वहां भी बेहतरी असंतुलित है. कहीं सुधार है, तो कहीं स्थिति खराब है. शहरी क्षेत्र में जो वृद्धि के केंद्र हैं, वे भी अभी सीमित ही हैं. ऐसी स्थिति में एक बड़ी आबादी को राहत की आवश्यकता है. इसलिए मुफ्त राशन योजना एक अहम कदम है. इस संबंध में यह सवाल आता रहता है कि अनाज का एक हिस्सा सही लाभार्थियों को नहीं मिल पाता है.

यह प्रशासन और प्रबंधन से जुड़ा मसला है तथा इसको आधार बना कर योजना को रोक देने का कोई मतलब नहीं है. एक तो इससे बहुत सारे परिवारों का भरण-पोषण सुनिश्चित होता है. दूसरा यह है कि अनाज वितरण के लिए सरकार किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाज खरीदती है, जिससे उन्हें भी सहयोग मिलता है.

इस संबंध में बात करते हुए हमें यह भी देखना है कि कई महीनों से मुद्रास्फीति लगातार उच्च स्तर पर है, लेकिन उस हिसाब से कमाई में मुद्रास्फीति नहीं है यानी लोगों की कमाई नहीं बढ़ी है. कम दिहाड़ी या वेतन में जरूरतों को पूरा कर पाना मुश्किल है. आम तौर पर गरीब परिवारों की आमदनी खाना जुटाने में खर्च हो जाती है. मुद्रास्फीति का असर खाद्य वस्तुओं पर अक्सर अधिक होता है.

ऐसे में अगर गरीब परिवारों को मुफ्त अनाज मिलता है, तो वे अपनी आमदनी को अन्य जरूरतों पर खर्च कर पायेंगे तथा मौजूदा चुनौतियों से लड़ने में भी उन्हें मदद मिलेगी. यह भी रेखांकित किया जाना चाहिए कि यदि गरीबों को अनाज मुहैया नहीं कराया जायेगा या बीते 28 महीनों में ऐसा नहीं किया जाता, तो उन्हें खुले बाजार से अनाज खरीदना पड़ता. उस स्थिति में बाजार में अनाज के दाम और अधिक बढ़ते. मुद्रास्फीति से कम तथा मध्य आय वर्ग के लोग भी परेशान हैं.

अनाज योजना नहीं होती, उनका भी बजट बहुत अधिक बढ़ जाता. यह इस अन्न योजना का सकारात्मक परोक्ष प्रभाव है. कुछ विश्लेषक मुफ्त अनाज योजना के राजनीतिक लाभ पर चर्चा कर रहे हैं. कोई भी पार्टी सरकार में आती है, तो वह काम करने के लिए आती है. उसके अच्छे कामों का उसे चुनावी फायदा भी मिलता है, पर अन्न वितरण योजना पर बात करते हुए हमें मुख्य रूप से यह देखना चाहिए कि क्या ऐसी योजना की आवश्यकता है या नहीं है. इसका उत्तर सीधा है कि आज की स्थिति में गरीब तबके के लिए राहत और सहायता देना बहुत जरूरी है.

यद्यपि हमारी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर बहुत सारे देशों की तुलना में बहुत अधिक है तथा वृद्धि होते जाने की संभावनाएं भी हैं, लेकिन हमें इस वास्तविकता का संज्ञान भी लेना चाहिए कि यह दर समुचित नहीं है. अनेक घरेलू और अंतरराष्ट्रीय कारकों के चलते आगामी वित्त वर्ष को लेकर भी चिंताएं हैं. रिजर्व बैंक के गवर्नर ने भी रेखांकित किया है कि हमारी आर्थिक वृद्धि की वर्तमान स्थिति गड़बड़ा भी सकती है, अगर मुद्रास्फीति नियंत्रित नहीं हुई.

यदि मुद्रास्फीति बाद में बहुत अधिक बढ़ जायेगी, तो रिजर्व बैंक को ब्याज दरों में बड़ी बढ़ोतरी करने पर मजबूर होना पड़ सकता है, जो अर्थव्यवस्था के लिए घातक हो सकता है. रूस-यूक्रेन युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा है. अमेरिका, यूरोप, चीन समेत कई जगहों पर वृद्धि दर गिरी है. ऐसे बहुत से अर्थशास्त्री और उद्योगपति हैं, जो वैश्विक मंदी की आशंका भी जता रहे हैं. चीन, जापान, कोरिया, अमेरिका आदि लगभग 15 देशों में महामारी ने फिर सिर उठाना शुरू किया है.

निश्चित रूप से इन कारकों का असर भारत पर भी होगा. देश के भीतर जलवायु परिवर्तन से मानसून के अनिश्चित रहने और तापमान बढ़ने से कृषि उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है. ऐसे में हम गरीब तबके को उसके हाल पर नहीं छोड़ सकते हैं. यदि इस तबके का ठीक से ध्यान रखा जायेगा, तो उससे हमारी अर्थव्यवस्था के लिए ठोस आधार बनेगा. समुचित पोषण उपलब्ध कराने और उसके बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए भी अनेक कार्यक्रम चल रहे हैं. निर्धन और कम आय वर्ग के लिए विभिन्न कल्याण योजनाएं भी उल्लेखनीय परिणाम दे रही हैं. मुफ्त राशन योजना से इन प्रयासों को भी बड़ा सहारा मिलेगा. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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