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प्रशंसनीय है 2023 का बजट

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सरकार ने वित्तीय अनुशासन के माध्यम से राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने का प्रावधान रखा है, जिसके फलस्वरूप बजट में खर्चों पर सरकार का नियंत्रण स्पष्ट प्रतीत होता है.

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अगले वर्ष चुनाव में जाने से पूर्व मोदी सरकार का ये अंतिम पूर्ण बजट है. इसके माध्यम से वित्त मंत्री ने देश के समावेशी विकास का एक ऐसा खाका खींचा है, जिसने एक तरफ जहां दूरगामी विकास की आधारशिला रखी है, तो वहीं दूसरी तरफ आम आदमी को भी पूर्ण प्राथमिकता में रखा है. इस बजट के प्रति समाज में बहुत उत्सुकता बनी हुई थी तथा सभी की सरकार से आर्थिक सुधारों की अपेक्षा थी, जिनके माध्यम से अर्थव्यवस्था को तेजी से एक नया आयाम दिया जा सके.

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चालू वित्त वर्ष में कोरोना के बाद काफी अच्छे परिणाम देखे गये हैं, जिनमें मुख्य रूप से विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना रहा. इस बजट के माध्यम से इस पक्ष पर एक ऐसी सोच को विकसित करने की कोशिश की गयी है, जिससे भारत वैश्विक पटल पर आगामी समय में तेजी से बढ़े

आगामी वित्त वर्ष के लिए सात प्रतिशत की विकास दर का अनुमान लगाया गया है, जो अपने-आप में बहुत सकारात्मक है क्योंकि संपूर्ण विश्व मंदी की सुगबुगाहट के दौर में है. एक लंबे अरसे के बाद इस बजट के माध्यम से आर्थिक विकास तथा कर सुधारों का अच्छा संयोजन दिख रहा है. बजट के अंतर्गत आगामी वर्ष के लिए पूंजीगत निवेश के लिए दस करोड़ रुपये का वित्तीय प्रावधान रखा गया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 33 प्रतिशत अधिक है.

ये सराहनीय कदम हैं. निश्चित तौर पर आने वाले दिनों में इससे भारत के आर्थिक विकास में तेजी देखने को मिलेगी. पूंजीगत खर्च में बढ़ोतरी के माध्यम से सरकार ने अपने रुख को बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है कि प्रगति के लिए आधारभूत संरचनाओं का विकास, टेक्नोलॉजी तथा डिजिटल प्लेटफॉर्म को और अधिक उन्नत बनाना मुख्य प्राथमिकताओं में रहेगा. इसका प्रत्यक्ष प्रभाव निजी निवेश में बढ़ोतरी के माध्यम से भी देखने को मिलेगा.

बजट के अंतर्गत सरकार ने राजकोषीय घाटे पर भी पूर्ण नियंत्रण के प्रति अपनी सोच को बरकरार रखा है तथा आगामी वित्तीय वर्ष के लिए से 5.9 प्रतिशत का लक्ष्य लिया है. चालू वित्त वर्ष में यह छह प्रतिशत से अधिक रहेगा, इसमें महामारी का दुष्प्रभाव, रूस-यूक्रेन युद्ध से वैश्विक संकट तथा अमेरिकन फेडरल बैंक की ब्याज नीतियों के चलते डॉलर के मुकाबले रुपये का कमजोर होना आदि मुख्य कारक हैं.

सरकार ने वित्तीय अनुशासन के माध्यम से राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने का प्रावधान रखा है, जिसके फलस्वरूप बजट में खर्चों पर सरकार का नियंत्रण स्पष्ट प्रतीत होता है. पूंजीगत खर्च के प्रति आर्थिक नीतियों में दूरगामी सोच इस बात से भी देखने को मिली है कि राज्यों को बिना ब्याज पर दिये जाने वाले कर्ज में भी पूंजीगत खर्चों को बढ़ाने पर जोर दिया गया है.

बजट के अंतर्गत भारत की युवा शक्ति को भी एक अलग दृष्टिकोण से देखा गया है. किसानों को कृषि उद्यमी बनाने की तरफ जोर देने के साथ ट्रेनिंग सेंटर का भी प्रावधान है. विभिन्न विश्वविद्यालयों में 5जी से संबंधित 100 प्रयोगशालाओं की स्थापना होगी, जिसके द्वारा नये रोजगारों के सर्जन के उद्देश्यों को विकसित किया जायेगा. टेक्नोलॉजी के उन्नत स्तर के माध्यम से समाज के समावेशी विकास की भी एक झलक बजट में देखने को मिली है, जिसके अंतर्गत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से स्वास्थ्य, कृषि के क्षेत्रों में सुधार को प्राथमिकता दी गयी है.

इस पक्ष पर औद्योगिक घरानों का भी आपसी तालमेल भी नीतियों के अंतर्गत सम्मिलित किया गया है. बजट में छोटे व लघु उद्योगों को भी ध्यान में रखा गया है तथा महामारी के दौरान तालाबंदी के समय के दौरान हुए आर्थिक घाटे की पूर्ति हेतु अलग से वित्तीय फंड का प्रावधान किया गया है.

बजट के अंतर्गत एक लंबे अरसे के बाद प्रत्यक्ष कर के ढांचे में बदलाव देखने को मिला है, जिसने आम आदमी को काफी राहत दी है. उदाहरण के तौर पर, 25 हजार की मासिक आय वाला व्यक्ति अब आयकर की सीमा में नहीं है, वहीं 50 हजार की मासिक आय वाले व्यक्ति को अब 18,200 रुपये कर की बचत होगी. सबसे सकारात्मक पक्ष इस बजट का यह है कि महिलाओं के आर्थिक विकास के लिए वित्तीय बचत की योजना शुरू की गयी है.

इसके अंतर्गत दो वर्षों के लिए 7.5 प्रतिशत ब्याज दर का प्रावधान है तथा निवेश में से आंशिक निकासी का विकल्प भी रहेगा. वृद्ध जनों को भी आर्थिक बचत की तरफ आकर्षित किया गया है तथा उनकी निवेश सीमा 15 से बढ़ाकर 30 लाख रुपये कर दी गयी है, जो परिवार के लिए अच्छा आर्थिक नियोजन साबित होगा.

इस बजट का एक पक्ष यह भी है कि पूंजीगत खर्च में अधिक आवंटन के बाद आने वाले समय में विभिन्न आर्थिक छूट या सब्सिडी की आशा करना व्यर्थ है. इस कारण पेट्रोल व डीजल तथा रसोई गैस के मूल्यों में कमी नहीं होगी. फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्यों में भी आंशिक बढ़ोतरी ही होगी. यह प्रश्न भी है कि समाज में जब वित्तीय तरलता कर सुधार के माध्यम से बढ़ेगी, तो क्या वह महंगाई नहीं बढ़ायेगी क्योंकि महंगाई पर नियंत्रण के संदर्भ में सरकार की नीति बजट में कहीं पर भी स्पष्ट नहीं है.

निष्कर्ष के रूप में यह कहा जा सकता है कि पूंजीगत खर्च में बढ़ोतरी के माध्यम से आधारभूत संरचना के विकास में तेजी आयेगी, तो आम लोगों को प्रत्यक्ष कर में कमी से वित्तीय फायदा होगा. इससे क्रय क्षमता बढ़ेगी और आर्थिक निवेश के अवसर भी बनेंगे. देश को जैसे आर्थिक सुधारों की जरूरत थी, उसकी पूर्ति इस बजट ने कर दी है.

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