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विश्व कप जीतने पर गौरवान्वित भारत

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T20 World Cup: राहुल द्रविड़ के कोच के तौर पर कार्यकाल का यह आखिरी टूर्नामेंट था, इसे रोहित शर्मा की टीम यादगार बनाने में सफल रही.

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T20 World Cup: बरबाडोस के केनसिंग्टन ओवल मैदान पर छाये बादल बरसते, इससे पहले ही भारतीय खिलाड़ियों की अश्रुधारा बह निकली. इसकी वजह भारत का 2007 के बाद पहली बार टी-20 विश्व कप जीतना था. फाइनल में खिलाड़ियों का ही नहीं, दर्शकों के लिए भी धड़कनों पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था. मुकाबला इतना रोमांचक था कि आखिरी ओवर तक यह तय नहीं था कि कौन जीतेगा. पर भारतीय दल ने आखिरी ओवरों में सब कुछ झोंककर 13 सालों बाद विश्व कप जीतने का गौरव दिला दिया.

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भारत ने आखिरी बार 2011 में महेंद्र सिंह धौनी की अगुआई में वनडे विश्व कप जीता था. साल 2007 में पहली बार आयोजित हुए टी-20 विश्व कप को भी भारत ने जीता था. विश्व कप में विजेता बनने की शुरुआत कपिलदेव के नेतृत्व में 1983 में हुई थी. इस विश्व कप में भारतीय टीम सही मायनों में एक चैंपियन की तरह खेली और अजेय रहकर विजेता बनी. इस तरह से विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम पहली है. फाइनल की प्रतिद्वंद्वी दक्षिण अफ्रीका टीम भी अजेय रहकर फाइनल में पहुंची थी. एडन मारक्रम की अगुआई वाली इस टीम के सामने अपने ऊपर से चौकर्स का टेग हटाने का दवाब था. फाइनल में पहुंचने से यह टेग किसी हद तक हट गया है.

दक्षिण अफ्रीका एक समय चैंपियन बनने की तरफ भी बढ़ गयी थी, जब उसे 24 गेंदों में सिर्फ 26 रन बनाने थे और उसके छह बल्लेबाज बाकी थे. तभी भारतीय गेंदबाजों ने कमाल का प्रदर्शन किया और उन्हें सूर्यकुमार यादव जैसे क्षेत्ररक्षकों का सहयोग मिला. भारतीय टीम को योजनाबद्ध ढंग से खेलने से यह सफलता मिली है. टीम ने पिछले साल घर में हुए आईसीसी वनडे विश्व कप में भी शानदार प्रदर्शन किया था. इस विश्व कप के लिए रोहित शर्मा के हाथों में ही कमान रहने का सात महीने पहले फैसला होने के समय ही कोच द्रविड़ और कप्तान शर्मा ने तय कर लिया था कि इस बार टी-20 को उसके अंदाज में ही खेलेंगे.

ऐसे में विराट कोहली चल नहीं सके और उन्हें लगातार ओपनर की भूमिका में रखने की आलोचना भी हुई. इसकी वजह यशस्वी जायसवाल के रूप में एक आक्रामक ओपनर होना था. पर द्रविड़ और रोहित जानते थे कि विराट की क्या क्षमता है. इस कारण उन्होंने आलोचनाओं पर ध्यान दिये बगैर विराट पर भरोसा रखा, जो भारत को फाइनल में सफलता दिलाने में अहम साबित हुआ. भारत के तीन प्रमुख बल्लेबाज सस्ते में निकल जाने के बाद विराट ने अक्षर पटेल के साथ पारी को न सिर्फ संवारा, बल्कि स्कोर को लड़ने लायक स्थिति में पहुंचाया.

यह सही है कि द्रविड़ के कार्यकाल में भारत की यह पहली आइसीसी ट्रॉफी है, पर उनके ढाई साल के कार्यकाल में भारत विश्व टेस्ट चैंपियनशिप और वनडे विश्व कप के फाइनल में खेला. यह प्रदर्शन शानदार ही है. अब द्रविड़ के कोच पद छोड़ने और विराट कोहली व रोहित शर्मा द्वारा टी-20 से संन्यास लेने की घोषणा कर देने से नये कोच को अपने हिसाब से इस प्रारूप के लिए नयी टीम खड़ी करने का मौका होगा.

भारतीय गेंदबाजी में जसप्रीत बुमराह और अर्शदीप सिंह तो लगातार कमाल कर ही रहे थे, पर इसमें हार्दिक पांड्या नये हीरो के रूप में उभरे. उन्हें जब आखिरी ओवर में गेंद थमायी गयी, तो दक्षिण अफ्रीका को जीत के लिए 16 रन बनाने थे और उनके सामने डेविड मिलर थे, जिन्हें आक्रामक अंदाज के लिए जाना जाता है. इस ओवर को करते समय हार्दिक ने तो अपनी धड़कनों को काबू में रखा ही, पर उन्हें सफल बनाने में सूर्यकुमार यादव की भूमिका भी अहम रही. मिलर ने पहली ही गेंद पर छक्का लगाने का प्रयास किया और गेंद सीमारेखा के पार भी जा रही थी. पर वहां खड़े सूर्यकुमार ने जिस अंदाज में कैच पकड़ा, उसे ही मैच को भारत के पक्ष में बदलने वाला माना जा रहा है.

राहुल द्रविड़ के कोच के तौर पर कार्यकाल का यह आखिरी टूर्नामेंट था, इसे रोहित शर्मा की टीम यादगार बनाने में सफल रही. द्रविड़ खिलाड़ी के तौर पर विश्व कप जीतने का सपना साकार नहीं कर सके थे, वह उन्होंने कोच के तौर पर पूरा कर लिया है. इस सफलता में राहुल द्रविड़, रोहित शर्मा और मुख्य चयनकर्ता अजित आगरकर की तिकड़ी की अहम भूमिका रही. इनके बेहतरीन निजी रिश्तों से टीम को तैयार करने का तरीका, सोच और लक्ष्य एक रहा. द्रविड़ और रोहित को जिस खिलाड़ी की जरूरत होती, उसे उपलब्ध कराने में आगरकर ने कभी आनाकानी नहीं की. यह सफलता द्रविड़ की हर खिलाड़ी के साथ आपसी समझ बनाने का भी परिणाम है. यही वजह है कि जिन रोहित और हार्दिक में आईपीएल के दौरान अनबन की खबरें आ रही थीं, वे एकजुट होकर टीम को सफल बनाने का प्रयास करते दिखे.

राहुल द्रविड़ को रोहित शर्मा और अजित आगरकर का साथ तो मिला ही, साथ ही उन्होंने सपोर्ट स्टाफ में भी उन सदस्यों को ही रखा, जो उनके साथ खेले थे और उनसे संबंध अच्छे थे. बल्लेबाजी कोच विक्रम राठौर और गेंदबाजी कोच पारस महाम्ब्रे उनके साथ खेले हुए हैं. इस कारण टीम को एक दिशा में चलाने में आसानी हुई. यह सही है कि द्रविड़ के कार्यकाल में भारत की यह पहली आईसीसी ट्रॉफी है, पर उनके ढाई साल के कार्यकाल में भारत विश्व टेस्ट चैंपियनशिप और वनडे विश्व कप के फाइनल में खेला. यह प्रदर्शन शानदार ही है. अब द्रविड़ के कोच पद छोड़ने और विराट कोहली व रोहित शर्मा द्वारा टी-20 से संन्यास लेने की घोषणा कर देने से नये कोच को अपने हिसाब से इस प्रारूप के लिए नयी टीम खड़ी करने का मौका होगा. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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