18.1 C
Ranchi
Friday, February 21, 2025 | 11:59 pm
18.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

आत्महत्या की रोकथाम

Advertisement

साल 2017 से छात्रों की आत्महत्या से हुई मौतों में 32 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

कोटा में एक ही दिन तीन छात्रों की आत्महत्या ने देश को झकझोर दिया है. स्थानीय प्रशासन ने ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए शिक्षण संस्थाओं, कोचिंग सेंटरों, छात्रावासों एवं पुलिस को अनेक निर्देश दिये हैं. कोटा में या देश के विभिन्न हिस्सों में छात्रों की ऐसी मौतों का मामला बहुत गंभीर हो चुका है और इसकी रोकथाम के लिए कई स्तरों पर प्रयास किया जाना चाहिए. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों को देखें, तो दिल दहलाने वाली तस्वीर उभरती है. वर्ष 2020 में 12,526 छात्रों की मौत आत्महत्या से हुई थी.

वर्ष 2021 में यह संख्या बढ़कर 13,089 हो गयी. यदि मान लिया जाए कि इन मौतों में कोरोना महामारी से उत्पन्न हुई स्थितियां भी अहम कारक थीं, फिर भी ऐसी मौतों का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है. साल 2017 और 2019 के बीच हमारे देश में आत्महत्या से हुई मौतों की कुल संख्या में छात्र आत्महत्या का हिस्सा 7.40 से 7.60 प्रतिशत के बीच रहा था.

वर्ष 2020 में यह बढ़कर 8.20 और 2021 में आठ प्रतिशत हो गया. हालांकि ब्यूरो की रिपोर्ट में ऐसी मौतों के पीछे के विशेष कारणों का उल्लेख नहीं होता है, पर यह अवश्य बताया गया है कि 18 साल से कम आयु के 10,732 किशोरों व बच्चों की ऐसी मौतों में से 864 का कारण परीक्षा में असफल होना था. सबसे बड़ा कारण पारिवारिक समस्याओं को बताया गया है.

साल 2017 से छात्रों की आत्महत्या से हुई मौतों में 32 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है. ये आंकड़े इंगित कर रहे हैं कि हमारी पारिवारिक, सामाजिक और शैक्षणिक व्यवस्था में भारी कमियां हैं तथा उन्हें दूर करने के समुचित प्रयास का अभाव है. प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थाओं की सीमित संख्या के लिए बहुत बड़ी संख्या में बच्चे आवेदन देते हैं. प्रतिस्पर्धा बढ़ने के साथ बच्चों पर पारिवारिक और सामाजिक दबाव भी बढ़ता जाता है, जो अनैतिक एवं अन्यायपूर्ण हैं.

अक्सर बच्चे की क्षमता का सही आकलन किये बिना उनके अभिभावक परीक्षाओं के चक्रव्यूह में डाल देते हैं. हमारे समाज में या शिक्षा व्यवस्था में बच्चों को विपरीत परिस्थितियों के लिए मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया जाता है. खेल-कूद और स्वस्थ मनोरंजन पर ध्यान नहीं दिया जाता है. सब कुछ अधिक अंक लाने और प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने तक सीमित हो गया है.

अंधेरी कोठरियों में बच्चे घुट रहे हैं. मनोवैज्ञानिक सलाहकारों की व्यवस्था न के बराबर है. अभिभावक और शिक्षक सक्षम नहीं हैं कि वे देख सकें कि बच्चे तनाव, चिंता या अवसाद में हैं. बच्चों को बचाने के लिए शासन और समाज के साथ अभिभावकों और शिक्षकों को भी जिम्मेदारी लेनी होगी.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें