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बचाना होगा शेयर बाजार को

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कई बार सेबी की आंखों में धूल झोंककर कंपनियां नियमों का उल्लंघन करती हैं तथा निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ता है. इसलिए निवेशक को सतर्क रहने की जरूरत है.

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सतीश सिंह, वरिष्ठ अधिकारी, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया

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satish5249@gmail.com

कुछ समय पहले पूंजी बाजार नियामक सेबी ने शेयरों में हेराफेरी के आरोप में 18 लोगों को तीन सालों तक कारोबार करने पर प्रतिबंध लगा दिया था. इन लोगों के म्यूचुअल फंड, इक्विटी बाजार और अन्य होल्डिंग पर भी रोक लगा दी गयी है. ये सभी आरोपी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से ग्रीनक्रेस्ट कंपनी से जुड़े हैं, जो इन्हें शेयरों की खरीद-बिक्री के लिए पैसा मुहैया करा रही थी और वे सभी शेयरों की आपस में बार-बार खरीद-बिक्री कर रहे थे, जो सेबी के नियमों के खिलाफ है.

सेबी के अनुसार, वित्त वर्ष 2013-14 में कंपनी का सालाना राजस्व 8.38 करोड़ रुपये था, लेकिन शुद्ध लाभ महज 70 लाख रुपये था. इसी तरह, वित्त वर्ष 2014-15 में इसका सालाना राजस्व 10.30 करोड़ रुपये था, लेकिन शुद्ध लाभ सिर्फ 1.16 करोड़ रुपये था. यह आंकड़े कंपनी की ईमानदारी पर सवाल खड़े करते हैं, क्योंकि शुद्ध लाभ और राजस्व के बीच 10 गुना का अंतर आम तौर पर नहीं हो सकता है.

इसी तरह कंपनी के शेयर की कीमत और मार्केट कैपिटलाइजेशन के बीच बड़ा अंतर भी कहीं से तार्किक नहीं लगता है. मार्केट कैपिटलाइजेशन किसी कंपनी के आउटस्टैंडिंग शेयरों के मूल्य को बताता है. आउटस्टैंडिंग शेयर का मतलब उन सभी शेयरों से है, जो कंपनी ने जारी किये हैं. इसे कंपनी के कुल आउटस्टैंडिंग शेयरों (बाजार में जारी शेयर) के साथ शेयर के मौजूदा बाजार भाव को गुणा करके निकाला जाता है.

एक अन्य मामले में सेबी ने ग्लोबल डिपॉजिटरी रिसिप्ट (जीडीआर) में नियमों का उल्लंघन करने के आरोप में लायका लैब पर तीन सालों का प्रतिबंध लगाया है. कंपनी ने निवेशकों के साथ ऐसी भ्रामक वित्तीय जानकारी साझा की थी, जिससे बड़ी संख्या में निवेशक गुमराह हुए. भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन रजनीश कुमार ने भी स्टेट बैंक के शेयरों की कीमत को लेकर सवाल उठाये हैं.

उनका मानना है कि स्टेट बैंक के शेयरों की मौजूदा समय में कीमत ज्यादा होनी चाहिए. कोरोना वायरस की वजह से शेयर बाजार में मचे कोहराम को समझने के लिए शेयर और शेयर बाजार के परिचालन को समझना जरुरी है. शेयर का अर्थ होता है हिस्सा. शेयर बाजार में सूचीबद्ध कंपनियों के शेयरों को ब्रोकर की मदद से खरीदा व बेचा जाता है यानी कंपनियों के हिस्सों की खरीद-बिक्री होती है.

भारत में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसइ) और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसइ) नाम के दो प्रमुख शेयर बाजार हैं. शेयर बाजार में बांड, म्यूचुअल फंड और डेरिवेटिव भी खरीदे और बेचे जाते हैं. कोई भी सूचीबद्ध कंपनी पूंजी उगाहने के लिए शेयर जारी करती है. कंपनी के प्रस्ताव के अनुसार निवेशकों को शेयर खरीदना होता है. जितना निवेशक शेयर खरीदते हैं, उतना उसका कंपनी पर मालिकाना हक हो जाता है. निवेशक अपने हिस्से के शेयर को बाजार में कभी भी बेच सकते हैं. ब्रोकर इस काम के एवज में निवेशकों से कुछ शुल्क लेते हैं.

शेयर बाजार में सूचीबद्ध होने के लिए कंपनी को शेयर बाजार से लिखित करारनामा करना होता है. इसके बाद कंपनी सेबी के पास वांछित दस्तावेजों को जमा करती है, जिनकी जांच की जाती है. सूचना सही होने पर आवेदन के आधार पर कंपनी को बीएसइ या एनएसइ में सूचीबद्ध कर लिया जाता है. तदुपरांत, कंपनी को समय-समय पर अपनी आर्थिक गतिविधियों के बारे में सेबी को जानकारी देनी होती है, ताकि निवेशकों का हित प्रभावित नहीं हो.

किसी कंपनी के कामकाज का मूल्यांकन ऑर्डर मिलने या नहीं मिलने, नतीजे बेहतर रहने, मुनाफा बढ़ने या घटने, आयात या निर्यात होने या नहीं होने, कारखाने या फैक्ट्री में कामकाज ठप पड़ने, उत्पादन घटने या बढ़ने, तैयार माल का विपणन नहीं होने आदि जानकारियों के आधार पर किया जाता है. इसलिए, कंपनी पर पड़ने वाले सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव के आधार पर शेयरों की कीमतों में रोज उतार-चढ़ाव आता है.

शेयर बाजार का नियामक सेबी है, जो सूचीबद्ध कंपनियों की गतिविधियों पर नजर रखने का काम करता है. अगर कोई सूचीबद्ध कंपनी करारनामा से इतर काम करती है , तो सेबी उसे बाजार से अलग कर देती है. इसका काम कृत्रिम तरीके से शेयरों की कीमतों को बढ़ाने या गिरानेवाले दलालों पर भी लगाम लगाना होता है. वैसे तो सेबी का काम है सूचीबद्ध कंपनियों की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखना है, लेकिन कई बार सेबी की आंखों में धूल झोंककर कंपनियां नियमों का उल्लंघन करती हैं.

लायका लैब और ग्रीनक्रेस्ट कंपनी ने भी ऐसा ही किया है. ज्यादा फायदे की आस में घरेलू एवं विदेशी निवेशक अर्थतंत्र की समझ नहीं होने, कंपनियों द्वारा गलत जानकारी देने, या हेराफेरी के कारण निवेशकों को नुकसान उठाना पड़ता है. इसलिए निवेशक को सतर्क रहने की जरूरत है. गड़बड़ी से अर्थव्यवस्था पर भी नकारात्मक असर पड़ता है. ऐसे में सेबी को सूचीबद्ध कंपनियों की गतिविधियों पर पैनी नजर रखने की जरूरत है, ताकि देश के आर्थिक वृद्धि की दर इस कारण न गिरे.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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