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बढ़ते हृदय रोगी

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हमारे देश में 2012 और 2021 के बीच दिल का दौरा पड़ने से होने वाली मौतों की तादाद में 54 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

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कुछ समय से देश में दिल की बीमारियों के बढ़ते मामले बेहद चिंताजनक हैं. बड़ी संख्या में युवा भी इन बीमारियों की चपेट में आने लगे हैं. पिछले साल सितंबर में प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक बीते तीन वर्षों से दिल का दौरा पड़ने से हुई मौतों की वार्षिक संख्या 28 हजार से अधिक रही है. वर्ष 2021 में मृत 70 प्रतिशत लोगों की आयु 30 से 60 वर्ष के बीच थी. यह आंकड़ा भी परेशान करने वाला है कि 2012 और 2021 के बीच दिल का दौरा पड़ने से होने वाली मौतों की तादाद में 54 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.

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मंडी स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) के नये शोध के निष्कर्ष में बताया गया है कि स्वच्छ ईंधन का इस्तेमाल नहीं करने से घर के भीतर बढ़ता प्रदूषण, सुस्त जीवनशैली तथा फास्ट फूड के सेवन की प्रवृत्ति में वृद्धि दिल के रोगों के बढ़ने के मुख्य कारण हैं. भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद और भारत के महापंजीकार के आंकड़े इंगित करते हैं कि दुनिया में हृदय रोग के भार का लगभग 60 प्रतिशत भारत के हिस्से में है.

चिकित्सक और विशेषज्ञ लंबे समय से प्रदूषण, खान-पान में लापरवाही और शारीरिक निष्क्रियता के खराब नतीजों के बारे में चेताते रहे हैं, लेकिन रोगियों और मृतकों की बढ़ती संख्या से स्पष्ट संकेत मिलता है कि लोग इन बातों पर समुचित ध्यान नहीं दे रहे हैं. आइआइटी, मंडी के शोधार्थियों ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में रह रहे 45 साल की आयु से अधिक के 59 हजार लोगों से संबंधित सूचनाओं के अध्ययन के आधार पर अपना निष्कर्ष निकाला है.

आशा की जानी चाहिए कि लोग इतने विस्तृत शोध का गंभीरता से संज्ञान लेंगे और अपनी जीवनशैली में सुधार के लिए प्रयासरत होंगे. इस रिपोर्ट में मोटापा, रक्तचाप, कुपोषण, परिवार का इतिहास, शराब का सेवन, धूम्रपान आदि को भी उल्लेखनीय कारणों में रेखांकित किया है. अधिक आयु के लोगों पर ऐसे कारणों का असर ज्यादा होता है. बढ़ते शहरीकरण और जीवन की आपाधापी ने हमारे रहन-सहन को बदल दिया है. इस असर से अपने स्वास्थ्य को बचाना हमारे हाथ में है. सबसे महत्वपूर्ण है पौष्टिक भोजन, नशे से परहेज तथा नियमित टहलने-दौड़ने को दिनचर्या में शामिल करना.

शोध में बताया गया है कि मध्य और अधिक आयु में शारीरिक सक्रियता से हृदय रोगों से बचने में बड़ी मदद मिलती है. हालांकि सरकारी स्तर पर तथा मीडिया के माध्यम से जागरूकता बढ़ाने की कोशिश होती है, लेकिन इसे अधिक सघन बनाने की आवश्यकता है. यदि हम थोड़ा सचेत रहें, तो स्वयं को न केवल दिल की बीमारियों से बचा सकते हैं, बल्कि बहुत से रोगों को दूर रख सकते हैं.

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