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विलुप्त चीतों की वापसी

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मोदी सरकार द्वारा इस वर्ष जनवरी में तैयार हुए मास्टर प्लान के तहत अगले पांच साल में कुल 30 चीते भारत में लाये जाने की योजना है.

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दुनिया में सबसे तेज दौड़ने वाला जानवर चीता है, लेकिन बमुश्किल ही किसी ने चीते को अपनी आंखों से दौड़ते हुए देखा होगा, क्योंकि भारत में अब चीते बचे ही नहीं हैं. चीते 74 साल पहले ही हमारे देश से विलुप्त हो चुके थे और तब से यह जानवर भारत में सिर्फ किताबों में रह गया है. एशिया में फिलहाल सिर्फ ईरान में ही चीते पाये जाते हैं, लेकिन अब 74 साल बाद एक बार फिर से भारत में चीतों की वापसी हो रही है. भारत और अफ्रीकी देश नामीबिया ने हाल ही में इस संबंध में एक समझौता किया है.

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दुनियाभर में इस समय करीब सात हजार चीते ही बचे हैं और उनमें से आधे अकेले नामीबिया में पाये जाते हैं. नामीबिया ने भारत को मुफ्त में आठ चीतों को देने पर रजामंदी दे दी है. भारत को इन चीतों को लाने का, यानी सिर्फ आवागमन का खर्च उठाना है. इन चीतों को भारत में एक विशेष जहाज से लाया जायेगा. उल्लेखनीय है कि यह चीतों का पहला ऐसा हस्तांतरण है, जो एक महाद्वीप से दूसरे महाद्वीप के बीच होगा.

इसी महीने 15 अगस्त से पहले मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में आठ चीते फर्राटा भरते हुए दिखायी देंगे. इनमें से चार नर और चार मादा चीते हैं. जनवरी, 2022 में चीतों की वापसी का एक मास्टर प्लान मोदी सरकार ने तैयार किया था और इसके तहत अगले पांच साल में कुल 30 चीते भारत में लाये जाने की योजना है. सात वर्ष पहले भारतीय वन्यजीव संस्थान ने चीतों के पुनर्वास के लिए 260 करोड़ रुपये की लागत की योजना बनायी थी.

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की 19वीं बैठक में कार्ययोजना की घोषणा की गयी थी. मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में सबसे तेज दौड़ने वाले जानवर के स्वागत की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं. कुनो राष्ट्रीय उद्यान में बड़ी संख्या में नीलगाय, जंगली सूअर, चीतल तथा अन्य पशु हैं. मांसाहारी जानवरों में तेंदुआ और लकड़बग्घा ही हैं. ऐसे में आगंतुक चीतों के लिए समुचित आहार की उपलब्धता रहेगी. एक वैज्ञानिक अनुमान के मुताबिक, चीते 50 लाख वर्ष से धरती पर मौजूद हैं तथा पहली बार इन्हें भारत में ही देखा गया था.

चीता शब्द की उत्पत्ति भी संस्कृत शब्द ‘चित्राका’ से हुई है, जिसका हिंदी में मतलब होता है, चितकबरा या धब्बेदार. लेकिन यह हमारे देश के लिए एक विडंबना ही मानी जानी चाहिए कि कई दशकों से भारत में एक भी चीता मौजूद नहीं है. आजादी से पहले भारत में बड़ी संख्या में चीते पाये जाते थे, लेकिन फिर इनकी आबादी धीरे धीरे घटती चली गयी. इसकी सबसे बड़ी वजह राजाओं-महाराजाओं का बेहिसाब शिकार का शौक और नकली वीरता के प्रदर्शन की होड़ थी.

जनता के बीच खुद को बहादुर दिखाने के लिए जंगल में सबसे ज्यादा शेरों, बाघों और चीतों का शिकार किया जाता था तथा अपनी नकली वीरता को सभी के सामने प्रदर्शित किया जाता था. उस जमाने में राजाओं-महाराजाओं के चाटुकार और दरबारी भी उनकी झूठी वीरता का बखान किया करते थे एवं उनके बारे में लिखा करते थे. वर्ष 1948 में सरगुजा रियासत के महाराजा रामानुज प्रताप सिंह देव ने छत्तीसगढ़ के जंगलों में भारत के आखिरी बचे तीन चीतों का शिकार किया था. इसके बाद भारत में कभी कोई चीता नहीं देखा गया. वर्ष 1952 में सरकार ने भारत में चीतों के खत्म होने की आधिकारिक घोषणा कर दी.

भारत में शिकार के अलावा चीतों को पालने का भी चलन है क्योंकि शेर और बाघ की तुलना में चीता कम हिंसक होता है, इसलिए उसे पालतू बनाना आसान है. दुनिया में पहली बार चीतों को पालने का चलन भी भारत में ही शुरू हुआ था. इतिहास में पहली बार चीता पालने का सबूत संस्कृत ग्रंथ ‘मानसोल्लास’ में मिलता है, जो छठी शताब्दी में लिखा गया था.

कहा जाता है कि मुगल शासक अकबर के समय में भी 10 हजार से ज्यादा चीते पले हुए थे, और इनमें से करीब एक हजार चीते उनके दरबार में थे. इन्हें शिकार के लिए प्रशिक्षित किया जाता था. मुगल बादशाह जहांगीर ने भी अपनी जीवनी “तुजुक-ए-जहांगीरी’ में कैद में रखी गयी एक मादा चीता द्वारा शावक को जन्म देने का एक किस्सा बताया है. पहले राजा और जमींदार फिर अंग्रेजों के जमाने में भी चीतों के शिकार और उनके पालतू बनाने का प्रचलन जारी रहा.

उल्लेखनीय है कि 18वीं शताब्दी में एक प्रशिक्षित चीते की कीमत 15 से 20 हजार रूपये तक होती थी, जबकि जंगल से पकड़ कर लाये गये चीते की कीमत 10 हजार रूपये के आस पास होती थी. वर्ष 1880 में पहली बार भारत में एक चीते के हमले में किसी इंसान की जान जाने का सबूत मिलता है. तब विशाखापट्टनम के तत्कालीन गवर्नर के एजेंट ओबी इरविन शिकार के दौरान चीते के एक हमले में मारे गये थे. चीता विजयानगरम के राजा का पालतू था. इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने चीते को हिंसक जानवर घोषित कर दिया तथा चीते को मारने वालों को बाद में इनाम दिया जाने लगा.

विशेषज्ञ कहते हैं कि चीते 20वीं शताब्दी की शुरुआत तक बेहद कम हो गये क्योंकि चीते राजाओं-महाराजाओं के शिकार और ब्रिटिश साम्राज्य के शौकिया खेलों की भेंट चढ़ चुके थे. साल 1918 से 1945 के बीच राजा-महाराजा एवं ब्रिटिश अधिकारी अफ्रीका से ही चीते मंगवाकर उन्हें शिकार के लिए इस्तेमाल किया करते थे. अब जब भारत में चीते फिर से वापसी कर रहे हैं, तब केंद्र सरकार द्वारा उनकी सुरक्षा के लिए सख्त कानून बनाने की आवश्यकता है.

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