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चित्त का शोध

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मन तो रोज बदलता रहता है. पर असल जड़ है चित्त में. अपने ही चित्त का शोध करें और उसका उपाय सिर्फ एक है. वह है सजग होकर ध्यान करना.

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मन तो रोज बदलता रहता है. पर असल जड़ है चित्त में. अपने ही चित्त का शोध करें और उसका उपाय सिर्फ एक है. वह है सजग होकर ध्यान करना. यह उपाय बुद्ध ने दिया- अनापानसति योग. सांस अंदर गयी, सांस बाहर आयी. सांस का अंदर आना अना और बाहर जाना पान. अनापानसति योग, भीतर और बाहर जाती हुई सांसों को देखने का योग.

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सबसे आसान और सबसे सरल विधि. साधारण सांस में तो कुछ करना ही नहीं. वह सहजता से आ रही है. नींद में भी वह अपने आप से चल रही है. बुद्ध एक वैज्ञानिक हैं, और विज्ञान तथ्य को पकड़ता है. हमारी सांस अपने आप से चल रही है, यह भी एक तथ्य है. जब तक मर न जाओ, तब तक चलती है. तो जो सहजता से सांस चल रही है, इसी सहजता से चलती सांस का बुद्ध ने ध्यान में उपयोग किया.

तरीका क्या है? किसी भी आसन में बैठ जाओ, शरीर अडोल रखो. जो सांस भीतर आ रही है, जो बाहर जा रही है, मात्र आती-जाती इस सांस को देखना. हम जब सांस भरते हैं, तो यह श्वास नली और फेफड़ों से गुजरती हुई हमारे पेट तक पहुंचती है. चूंकि पेट का हिस्सा बहुत बड़ा है, सीना बहुत बड़ा है, तो सांस को वहां पकड़ना थोड़ा मुश्किल लगता है. लेकिन नाक के दो छिद्रों द्वारा जब हम सांस लेते हैं, तो यहां पर सांस को पकड़ना कोई मुश्किल नहीं है.

सांस का भीतर आना और नाक से बाहर जाना, बस यहीं नाक पर पूरी चेतना को, पूरे ध्यान को टिका लेना. और कहीं ध्यान नहीं लगाना. ध्यान किस पर? सांस पर. किसको देखना? सांस को. होश कहां टिकी रहे? सांस पर. चेतना कहां हो? सांस पर. एकदम सहज, सांस भीतर गयी या बाहर, बस इसको जानो.

ज्यादा से ज्यादा चाहो, तो आरंभ में अधिक से अधिक तुम यह कर सकते हो कि जब सांस भीतर आए, तो मानसिक रूप से कह सकते हो कि ‘मैने भीतर आती हुई सांस को देखा.’ और सांस बाहर जाए, तो कहो कि ‘मैंने सांस को बाहर जाते हुए जाना.’ अगर लगे कि ठीक से सांस का आना-जाना देख रहे हो, तो फिर अगली कुछ सांस के बारे में कुछ मत कहो.

– आनंदमूर्ति गुरु मां

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