18.1 C
Ranchi
Wednesday, February 19, 2025 | 05:40 am
18.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

डॉ लोहिया के ‘उर्वशीयम अभियान’ का स्मरण

Advertisement

डॉ लोहिया ने उर्वशीयम नाम का इस्तेमाल मुख्य रूप से उत्तर-पूर्व के सीमावर्ती इलाकों के लिए किया, जिनकी सीमा चीन, भूटान और म्यांमार (तब बर्मा) से लगती थी. दक्षिण में इसकी सीमा असम और नगालैंड से लगती थी. इसे ही पहले नेफा कहा जाता था. यह आज का अरुणाचल प्रदेश है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

महान समाजवादी चिंतक, स्वतंत्रता सेनानी और दूरद्रष्टा डॉ राममनोहर लोहिया की आज 55वीं पुण्यतिथि है. यह वर्ष डॉ लोहिया के उर्वशीयम अभियान का 64वां वर्ष भी है. इस खास मौके पर हमें उर्वशीयम यानी पूर्वोत्तर के कुछ अनकहे प्रसंगों के बारे में जानना चाहिए. अंग्रेजों ने मौजूदा अरुणाचल प्रदेश और उससे सटे पूर्वोत्तर के इलाकों को नेफा (नॉर्थ ईस्ट फ्रंटियर एजेंसी) नाम दिया था, जो आजादी के बाद भी बना रहा.

भारत का हिस्सा होते हुए भी उन इलाकों में प्रवेश के लिए विशेष अनुमति या परमिट की आवश्यकता होती थी. आजाद भारत में भी यह व्यवस्था बनी रही. नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले अनथक योद्धा डॉ राममनोहर लोहिया को यह गैर-बराबरी वाला कानून भला कैसे मंजूर होता? नेफा नाम में भारतीय संस्कृति व सभ्यता की झलक नहीं थी, जिसकी वजह से उन्होंने इसका नामकरण किया उर्वशीयम. उर्वशीयम सौंदर्य की प्रतिमूर्ति रही अप्सरा उर्वशी से प्रेरित है. पूर्वोत्तर की प्राकृतिक खूबसूरती और मनोरम दृश्यों को ध्यान में रखकर ही उन्होंने यह नाम दिया था.

डॉ लोहिया ने वहां के नागरिकों के अधिकारों को लेकर केवल चिंता ही नहीं जतायी, बल्कि वहां जाकर उन लोगों को अपने अधिकारों की खातिर लड़ने की प्रेरणा भी दी. उन्होंने बिना परमिट के वहां प्रवेश कर गिरफ्तारी दी. इस पर संसद में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से सोशलिस्ट पार्टी के नेताओं ने पूछा, ‘आजाद भारत में जनहित के मुद्दे पर डॉ लोहिया की गिरफ्तारी के क्या मायने हैं?’ प्रधानमंत्री नेहरू ने उत्तर दिया, ‘डॉ राममनोहर लोहिया को परमिट लेकर उर्वशीयम जाना चाहिए था.’ डॉ लोहिया पहली बार 12 नवंबर, 1958 को बिना अनुमति के नेफा में दाखिल हुए.

लोहित डिवीजन के तेजपुर, जयरामपुर, तिनसुकिया, नौगांव, शिलांग, लोहित, मार्गरीटा, बराक घाटी, डिब्रूगढ़ आदि जगहों पर बिना परमिट के गये और जनसभाओं को संबोधित किया. इस वजह से उनकी गिरफ्तारी हुई और उन्हें नेफा की सीमा से लौटा दिया गया. एक साल बाद नवंबर, 1959 में उन्होंने फिर से नेफा में बिना परमिट के प्रवेश किया. कई जनसभाओं को संबोधित कर उन्होंने पूर्वोत्तर के लोगों को नागरिक आजादी और सिविल नाफरमानी का पाठ पढ़ाया.

उर्वशीयम दौरे में महान साहित्यकार व असमी भाषा के पहले ज्ञानपीठ सम्मान से सम्मानित होने वाले डॉ बीरेंद्र कुमार भट्टाचार्य, प्रख्यात असमी लोकगायक भूपेन हजारिका, असम के पूर्व मुख्यमंत्री गोलाप बोरबोरा, पूर्व सांसद अजीत कुमार सरमा, रमणी बर्मन एवं किरण बेजबरुआ जैसे समर्पित समाजवादी साये की तरह उनके साथ रहे. वर्ष 2022 डॉ लोहिया के पूर्वोत्तर में नागरिक आजादी के मुद्दे पर ऐतिहासिक व अप्रतिम संघर्ष का 64वां साल है.

डॉ राममनोहर लोहिया रिसर्च फाउंडेशन ने उनके इस अभियान को अविस्मरणीय बनाने के लिए अपने तृतीय राष्ट्रीय विचार मंथन के लिए गुवाहाटी का चयन किया है. यह चयन इसलिए भी किया गया है कि दूसरी बार नेफा में बिना परमिट के दाखिल होने पर हुई गिरफ्तारी के बाद उन्हें गुवाहाटी लाकर रिहा किया गया था. तब उन्होंने गुवाहाटी कॉटन कॉलेज (अब कॉटन यूनिवर्सिटी) के निर्वाचित छात्र संघ की एक सभा को भाषायी एकता, नागरिक स्वतंत्रता और सिविल नाफरमानी के मुद्दे पर संबोधित किया था.

डॉ लोहिया ने उर्वशीयम नाम का इस्तेमाल मुख्य रूप से उत्तर-पूर्व के सीमावर्ती इलाकों के लिए किया, जिनकी सीमा चीन, भूटान और म्यांमार (तब बर्मा) से लगती थी. दक्षिण में इसकी सीमा असम से लगती थी. इसे ही पहले नेफा कहा जाता था. यह आज का अरुणाचल प्रदेश है. वर्ष 1972 में हुए नामकरण में डॉ लोहिया को श्रद्धांजलि देते हुए इसका नाम उर्वशीयम रखा जा सकता था, पर सरकार ने दो नौकरशाहों- विभाषु दास शास्त्री और केएए राजा- की संस्तुति पर अरुणाचल प्रदेश नाम रखा.

उर्वशीयम के पीछे डॉ लोहिया की दूरगामी सोच थी. इससे अरुणाचल पर चीन का दावा पूरी तरह से निरस्त हो जाता. उर्वशी की कथा यहां की लोक-संस्कृति का हिस्सा है.भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मिणी वास्तव में उसी इलाके की मिश्मी जनजाति से थीं. ये डॉ लोहिया के संघर्षों का ही परिणाम था कि अरुणाचल को नेफा जैसे ब्रिटिश औपनिवेशिक शब्द से मुक्ति मिली. उत्तर-पूर्व के इलाकों के प्रति आत्मीयता प्रकट करने वाले डॉ लोहिया उस दौर के पहले राजनेता थे. सरकारों को चाहिए कि पूर्वोत्तर के सर्वांगीण विकास का मानचित्र डॉ लोहिया के सपनों एवं दूरदृष्टि पर आधारित हो.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें