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ध्वस्त दुनिया का पुनर्निर्माण

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आज उत्तर अमेरिका और यूरोप के देश तथा चीन अपने ‘हार्ड पावर’ (सैन्य शक्ति) के बल पर नहीं, ज्ञान पर आधारित अपने ‘सॉफ्ट पावर’ के आधार पर शीर्ष पर हैं. यह सॉफ्ट पावर ज्ञान के अवदान के अलावा संस्कृति, कला, संगीत, फिल्म आदि को भी समाहित करता है.

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शैबाल गुप्ता, सदस्य सचिव, एशियन डेवलपमेंट रिसर्च इंस्टीट्यूट (आद्री), पटना

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shaibalgupta@yahoo.co.uk

कोविड-19 महामारी ने उस समय धावा बोला, जब हम कृत्रिम मेधा पर आधारित चतुर्थ औद्योगिक क्रांति की दहलीज पर खड़े थे. पहली औद्योगिक क्रांति (18वीं-19वीं सदी, अनिवार्यतः कारखाना प्रणाली) और दूसरी औद्योगिक क्रांति (1870-1914, अनिवार्यतः ‘एसेंबली लाइन आधारित उत्पादन’) के सफलतापूर्वक संपन्न होने के बाद अभी हम उत्तरोत्तर उन्नत होती डिजिटल प्रौद्योगिकी आधारित तीसरी क्रांति के दौर में हैं. गुणवत्ता और ज्ञान का फैलाव इन क्रांतियों की नींव रहा है, लेकिन चौथी औद्योगिक क्रांति के बारे में ये चीजें और भी अधिक जरूरी हैं. ज्ञान का उद्भव इसकी सशक्त अग्रवर्ती और पृष्ठवर्ती कड़ियों पर आधारित होता है. लेकिन प्राकृतिक विज्ञानों और सामाजिक विज्ञानों में संकीर्ण विशेषज्ञता शिक्षा प्रणाली के एक संकट के रूप में सामने आयी है. मजाक में ही सही, लेकिन अक्सर कहा जाता है कि बायें हाथ के विशेषज्ञ डॉक्टर दायें हाथ के बारे में नहीं जानते हैं.

यह गलत समझ भी बनी हुई है कि डिजिटल उपयोगों का फैलाव किसी को ‘ज्ञानमूलक समाज’ में पहुंचा देगा. इसके बजाय संकीर्ण विशेषज्ञता को छोड़कर बहुमुखी एजेंडा की दिशा में बढ़ने के लिए एक बार फिर से नवजागरण जैसा आंदोलन शुरू करना होगा. लियोनार्दो द विंची हों या माइकल एंजेलो, नवजागरण के पहले के आंदोलन को आधार अनेक विशेषज्ञताओं वाले प्रतिभावान लोगों ने उपलब्ध कराया था. नवजागरण के साथ आत्मसात किये गये ज्ञान के आधार के अलावा समता को चौथी औद्योगिक क्रांति की सामाजिक संरचना का अभिन्न अंग बनाया जाना चाहिए. किसी समाज में ज्ञान की अवस्था को मापना मुश्किल होता है, लेकिन विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर निवेश के साथ यह निश्चित तौर पर काफी अधिक जुड़ा होता है.

ज्ञान के संज्ञानात्मक जगत का विस्तार करके सोवियत संघ ने अक्तूबर, 1957 में अपने पहले कृत्रिम उपग्रह स्पुतनिक को अंतरिक्ष में भेजा था. तत्काल प्रतिक्रिया करते हुए अमेरिका में नासा की स्थापना के साथ उच्च शिक्षा के लिए विद्यार्थियों को कम ब्याज पर ऋण मुहैया कर अरबों डॉलर का निवेश किया गया था. आप्रवासन के खिलाफ विस्फोटक बयानों के बावजूद वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पूरी दुनिया के पेशेवरों के अमेरिकी विश्वविद्यालयों और कॉरपोरेट क्षेत्र में भर्ती होने की नीति को स्वीकृति दी है. ब्रिटेन में भी टोरी सरकार ने वैज्ञानिक ज्ञान के मामले में मौजूद कमियों को दूर करने के लिए आठ विश्वविद्यालयों की स्थापना की है.

विकसित दुनिया इस बात को लेकर पूरी तरह जागरूक है कि शिक्षा की अग्रवर्ती (उच्च शिक्षा संबंधी) कड़ियां पृष्ठवर्ती (विद्यालयों की) कड़ियों के ढांचे पर टिकी हों. उन देशों में शिक्षा पर परिव्यय अक्सर चुनावी मुद्दा होता है. नब्बे के दशक के उत्तरार्ध में टोनी ब्लेयर ने विद्यालय व्यवस्था को मजबूत करने के मुद्दे पर चुनाव लड़ा था. अपने दूसरे कार्यकाल में उन्होंने घोषणा की कि उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता शिक्षा होगी. इसका मकसद संकीर्ण विशेषज्ञता को छोड़कर अनिवार्य रूप से नवजागरण की नींव के आधार पर बच्चों का पालन-पोषण करना था. पश्चिमी विश्वविद्यालयों में उपाधि देने के लिए आयोजित समारोहों में शिक्षा के प्रति सामाजिक प्रतिबद्धता पर हमेशा बल दिया जाता है.

भारत में व्यापक शैक्षिक लक्ष्यों के अतिरिक्त बच्चों को देश की गौरवपूर्ण परंपरा से भी परिचित कराया जाना चाहिए. इससे सुनिश्चित होगा कि नवजागरण के भारतीय स्वरूप की जड़ें इसके इतिहास में गहराई से जमी हैं. बच्चों की शिक्षा के प्रति समाज की प्रतिबद्धता के दो उदाहरण देखें. जापान में एक द्वीप पर स्थित एक स्टेशन पर एकमात्र यात्री- उच्च विद्यालय की एक छात्रा- के लिए वर्षों तक ट्रेन चलती थी. हाल में, केरल में एक लड़की के लिए एक बड़ी सरकारी नौका अलप्पुजा से कांजीरम के जलमग्न खंड में इसलिए कई दिनों तक चलती रही कि वह अपनी ग्यारहवीं कक्षा की परीक्षा देने से चूक नहीं जाये.

आज उत्तर अमेरिका और यूरोप के देश तथा चीन अपने ‘हार्ड पावर’ (सैन्य शक्ति) के बल पर नहीं, ज्ञान पर आधारित अपने ‘सॉफ्ट पावर’ के आधार पर शीर्ष पर हैं. यह सॉफ्ट पावर ज्ञान के अवदान के अलावा संस्कृति, कला, संगीत, फिल्म आदि को भी समाहित करता है. बिस्मार्क सिर्फ ‘कोयला और लोहा’ के जरिये जर्मनी का वर्चस्व नहीं स्थापित कर सके थे. मार्क्स, फ्रायड, मैक्स बेवर, बीथोवन या आइंस्टीन का सॉफ्ट पावर भी उनके पास था. भारत के संदर्भ में होमी भाभा, श्रीनिवास रामानुजन, अमर्त्य सेन, रवि शंकर, सत्यजीत राय, जुबिन मेहता और अन्य लोगों का उल्लेख किया जा सकता है.

ज्ञानमूलक समाज के संदर्भ में 1996 की यूनेस्को शिक्षा रिपोर्ट लिखनेवाले जैक देलर की बातें विचारणीय हैं. रिपोर्ट में ‘वैश्विक और स्थानीय, आम और खास, परंपरा और आधुनिकता, आध्यात्मिक और भौतिक, प्रतिस्पर्धा की आवश्यकता तथा अवसर की समानता के आदर्श’ के बीच प्रौद्योगिकीय, आर्थिक और सामाजिक परिवर्तनों से उत्पन्न अनेक प्रकार के तनावों की पहचान की गयी है. शिक्षा संबंधी समग्रतापूर्ण दृष्टिकोण के लिए इसमें ‘जीवनपर्यंत शिक्षा’ की नवाचारी अवधारणा का सुझाव है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

Posted by: Pritish Sahay

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