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राफेल से बढ़ेगी सैन्य ताकत

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कई बेबुनियाद आरोपों और अड़चनों के बावजूद सरकार ने एक जरूरी फैसला किया है, उसकी सराहना करने की जरूरत है. यह एक अहम और स्वागतयोग्य कदम है.

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सुशांत सरीन, रक्षा विशेषज्ञ

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delhi@prabhatkhabar.in

काफी समय से भारत को ऐसे विमान की जरूरत थी. वायुशक्ति के तकनीकी सुधार या आधुनिकीकरण की आवश्यकता महसूस की जा रही थी. हालांकि, कई अड़चनों के बावजूद राफेल का चुनाव कर लिया गया था. पिछली सरकार निर्णय लेने के मामले में असमर्थ थी. किसी न किसी बहाने से उसने इस सौदे को आगे नहीं बढ़ाया. लेकिन, हमारे इलाके में सुरक्षा से जुड़े मुद्दे लगातार गंभीर होते जा रहे थे. एक उदाहरण हमने पिछले साल देखा, जब हमने बालाकोट में एयर स्ट्राइक की थी. उसके अगले दिन पाकिस्तान ने हमारे ऊपर हमला किया. उस वक्त महसूस किया गया कि जो साजो-सामान दुश्मनों के पास था, वह हमारे पास नहीं है.

हालांकि, राफेल डील उससे पहले हो चुकी थी, लेकिन यह बाजार में जाकर सौदा खरीदने जैसी प्रक्रिया नहीं है. इसमें वक्त लगता है. अभी पांच जहाज आये हैं और 31 आने बाकी हैं. इससे कुछ हद तक गैप को भरने में हम कामयाब हो जायेंगे. शुरुआत में सवा सौ जहाजों की योजना थी. अभी सिर्फ 36 ही आ रहे हैं, हो सकता है कि आगे भी कुछ और जहाज लिये जायें. हम ढोल बजा रहे हैं, जैसे हमने दुनिया का फतह कर लिया. हमें थोड़ा संयम रखना चाहिए.

हर लिहाज से आधुनिक इस जहाज पर खर्च थोड़ा ज्यादा हुआ है. जब किसी बात पर विवाद होता है, तो उसके पीछे कई कारण होते हैं. पर्याप्त जानकारी के अभाव में एक नजरिया बना लेना ठीक नहीं है. भारत ने जिन जहाजों को लिया है, उसमें कई सारी आधुनिक खूबियों को शामिल किया गया, जो आमतौर पर नहीं होती हैं. केवल जहाज उड़ाना ही काफी नहीं होता है, उसकी मारक क्षमता भी होनी चाहिए. दुश्मन देश की ताकत के मद्देनजर आपको अन्य जरूरतों का भी ध्यान रखना होता है.

पिछले वर्ष पाकिस्तानियों के साथ जो झड़प हुई, हमने देखा कि उनके पास बियॉन्ड विजुअल रेंज (वीवीआर) जैसी खूबियां थीं, जो हमारे जहाजों में नहीं थीं. इससे हम थोड़े रक्षात्मक थे. राफेल ऐसे सभी गैप को पूरा करता है. जब जहाजों का काफी करीबी से मुकाबला होता है, तो बियॉन्ड विजुअल रेंज यानी जब आप 100 किलोमीटर की दूरी से राडार पर जहाज को पकड़ लेते हैं और उसे टारगेट कर देते हैं. दूसरी स्थिति में आप देखने के बाद अटैक करते हैं, उसे डॉग-फाइट कहते हैं.

उसमें भी आपको आधुनिक मिसाइल की जरूरत होती है. यह जहाज में लैस है. बालाकोट हमले वाले जहाज का एक एडवांस्ड वर्जन हैमर मिसाइल के तहत आया है. वह महंगा तो पड़ेगा. पैसा बचाने के लिए हम जुगाड़ वाला सिस्टम करते हैं. जहाज कहीं और से ले लिया, राडार और उसके एवियानिक्स कहीं और से लिया. मिसाइल सिस्टम कहीं तीसरी जगह से ले लिये. इससे इंटीग्रेशन में समय लगता है. इस बार सरकार ने संवेदनशीलता बरती है.

चीन के साथ संबंध खराब हो रहे थे. दो मोर्चों पर संघर्ष की बात हो रही थी. इससे महसूस किया गया कि हमारे पास समय नहीं है कि जहाज पर इस्राइली मिसाइल लगायें. बेहतर होगा कि हम फ्रांस से मिसाइल सिस्टम खरीद लें. सबसे महत्वपूर्ण है कि यह न्यूक्लियर कैपेबल जहाज है. इसमें न्यूक्लियर बम के इस्तेमाल की क्षमता है. अगर आपको ऐसी जरूरत को पूरा करने में 15-20 वर्ष लग जाते हैं, तो यह बड़ी समस्या है. क्योंकि, हमारे यहां राजनीति और पूरी प्रक्रिया काफी पेचीदा है. इतना समय लगना फिक्र की बात है. हम सैन्य तकनीकी सुधार के मामले में काफी पीछे चल रहे हैं.

सीमा पर दो दुश्मन और जिस तरह से तनावपूर्ण हालात हैं, हमें अपनी क्षमता बढ़ाने की जरूरत है. अगर वह आप नहीं करते, तो आप सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं. चीन के साथ हालात बिगड़ने के बाद आकस्मिक सैन्य खरीद शुरू हो गयी. रक्षा के मामले ऐसे नहीं चलते. हर बजट में इसका जिक्र जरूर किया जाता है कि हमने राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए इतना पैसा आवंटित किया है और जरूरत पड़ी, तो और व्यवस्था की जायेगी.

यह इस मानसिकता को दर्शाता है कि काम चला लो, बाकी जरूरत पड़ी तो फिर कुछ कर लेंगे. यह कोई किराने की दुकान नहीं है. हमें गंभीरता से सोचने की जरूरत है कि हमें राष्ट्रीय सुरक्षा को कैसे चलाना है. दुनिया में ऐसी कोई फौज नहीं है, जिसे जो चाहिए, वह मुहैया करा दिया जाये. हमें यह भी देखना है कि कम खर्च में सुरक्षा के लिए कैसे बेहतर उपाय कर सकते हैं. राफेल के साथ हमें अन्य आधुनिक जहाजों की जरूरत है. हमें अपने डेवलपमेंट को आगे बढ़ाना है, जैसे तेजस आदि जहाज, जो दुनिया के सबसे बेहतरीन तो नहीं हैं, लेकिन खराब जहाज भी नहीं हैं. उसकी क्षमता और भी बढ़ाने की जरूरत है.

हालांकि, सरकार इस दिशा में सकारात्मक प्रयास कर रही है. समय के साथ आवश्यकताएं बढ़ रही हैं और तकनीक के स्तर पर काफी सुधार हो रहा है. राफेल अभी आया है, आगे देखना है कि हम अपने सिस्टम के साथ इसे कैसे इंटीग्रेट करते हैं. कई लोगों को फ्रांस में इसे उड़ाने और मेंटेन करने का प्रशिक्षण भी मिल चुका है. अन्य लोगों को भी प्रशिक्षित किये जाने की जरूरत है. इसके अलावा राडार, एयर सिस्टम, कम्युनिकेशन सिस्टम होंगे, उन सभी बिंदुओं पर काम करना होगा. क्योंकि, हमारे पास कम से कम पांच प्रकार के जहाज हैं, उनके साथ इसका तालमेल कैसे बिठाया जायेगा, इसमें भी समय लगेगा.

किसी चुनौती से निबटने के लिए बाकी जहाजों के साथ इसका कैसे इस्तेमाल करेंगे. उन सब चीजों को पूरा करने में वक्त लगेगा. केवल यह मान लेना कि जहाज आ गया और काम पूरा हो गया, तो मेरे ख्याल से वह थोड़ी नासमझी वाली बात होगी. निश्चित ही यह एक अहम और स्वागतयोग्य कदम है. कई बेबुनियाद आरोपों और अड़चनों के बावजूद सरकार ने एक जरूरी फैसला किया है, उसकी सराहना करने की जरूरत है.

(बातचीत पर आधारित)

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