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खाड़ी देशों से संबंधों की अहमियत

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भारतीय वृद्धि के लिए वैश्विक निर्यात बाजारों तक पहुंच जरूरी है और खाड़ी देश सभी क्षेत्रों के लिए एक अहम ठिकाना हैं.

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इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआइसी) के सचिवालय ने पैगंबर मोहम्मद के बारे में सत्ताधारी दल भाजपा के दो प्रवक्ताओं के बयानों की निंदा करते हुए क्षोभ जताया है. संगठन ने भारत में इस्लाम के विरुद्ध घृणा और अवमानना के मामलों का भी हवाला दिया है. वर्ष 1969 में स्थापित ओआइसी में मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी के 57 सदस्य देश हैं. बीस करोड़ से अधिक मुस्लिम आबादी वाला देश भारत न तो इसका सदस्य है और न ही उसे पर्यवेक्षक का दर्जा हासिल है.

इंडोनेशिया के बाद सबसे अधिक मुस्लिम आबादी भारत में ही है. भारत सरकार ने ओआइसी के वक्तव्य को नकारते हुए कहा कि दो लोगों के बयान न तो सरकार और न ही भारत के लोगों के विचारों को प्रतिबिंबित करते हैं. संगठन के संयुक्त वक्तव्य के अलावा कई सदस्य देशों ने भारतीय राजदूतों को बुला कर अपना रोष जताते हुए पैगंबर पर दिये बयानों की निंदा की है. भारतीय दूतावासों ने इस संबंध में सरकार के पक्ष का बचाव किया है.

राजदूतों को बुलानेवाले देशों में कतर और कुवैत भी शामिल हैं, जो छह सदस्यीय खाड़ी संयोजन परिषद (जीसीसी) में भी हैं. उल्लेखनीय है कि इस समूह के दो सदस्यों- बहरीन और ओमान- ने उन दो प्रवक्ताओं के विरुद्ध भारत सरकार और भाजपा की कार्रवाई को सार्वजनिक रूप से सराहा है.

इससे यह तो जाहिर ही होता है कि जीसीसी या ओआइसी के सभी सदस्य समान रूप से भारत को कूटनीतिक रूप से कठोरता से कोसने पर आमादा नहीं हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह प्रकरण भारत सरकार के लिए शर्मिंदगी का कारण बना और इसी कारण दोनों प्रवक्ताओं पर कड़ी कार्रवाई की गयी. अमेरिका समेत अन्य देशों की टिप्पणियों ने भी भारत को असहज किया है.

देश के भीतर विरोधों, हिंसा और पुलिस कार्रवाई (जो अनेक मामलों में बर्बरतापूर्ण थी) भी बड़ी परेशानी और शर्मिंदगी की वजहें हैं. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, चुनींदा रोष, ईशनिंदा और बहुसंख्यक राजनीति के मुद्दों पर दो या शायद तीन हिस्सों में साफ विभाजन होता जा रहा है. संवाद और मसले को बारीकी से समझने की जगह तेजी से सिकुड़ती जा रही है. यह सामाजिक एकता, सद्भाव और सौहार्द के लिए अच्छा संकेत नहीं है.

अब तो यह शब्द भी ऐसे काल्पनिक आदर्श लगने लगे हैं, जिनके साकार होने की कोई आशा नहीं है. निरंतर बातचीत और सत्ता की हिस्सेदारी ही लोकतंत्र है, लेकिन उसमें कुछ लिखित-अलिखित नियमों का पालन जरूरी होता है तथा आदान-प्रदान हमेशा सभ्य, अहिंसक, संविधानवाद के प्रति आदर के साथ होना चाहिए. कोई एक पक्ष दूसरे पक्ष पर विमर्श का स्तर गिराने और संवाद की जगह को खराब करने का आरोप लगा सकता है, पर चाहे जिस पर भी पहले ऐसा करने का आरोप लगे, समाज के लिए उसका परिणाम यही होता है कि माहौल हर किसी के लिए बिगड़ जाता है.

इस्लामिक संगठन और खाड़ी देशों की कूटनीतिक आलोचना का एक और पहलू है, जिसका संज्ञान भारत को अवश्य लेना चाहिए. भू-राजनीति में नैतिकता के मुद्दे में पेंच है और इसका समाधान नहीं हो सकता, लेकिन भारत के अपने हित का मुद्दा बहुत प्रासंगिक है. भारत कूटनीतिक रूप से अलग-थलग पड़ने का जोखिम नहीं उठा सकता है, क्योंकि इसके वास्तविक आर्थिक परिणाम होंगे. ऐसे समय में जब भारत को चीन की चुनौती का सामना करना है, उसे अपने गठबंधन विकल्प खुले रखने चाहिए.

इसके पीछे भू-आर्थिक और भू-राजनीतिक दोनों कारण हैं. खाड़ी देशों के साथ संबंधों के कई आयाम हैं. इनमें सबसे प्रमुख है व्यापारिक निर्भरता. वर्ष 2020-21 से एक साल में ही खाड़ी देशों से भारत का व्यापार लगभग दोगुना हो गया है और यह अभी 155 अरब डॉलर के आसपास है. खाड़ी देशों को भारतीय निर्यात अभी 10 प्रतिशत से अधिक है और इसमें वृद्धि हो सकती है.

भारतीय वृद्धि के लिए वैश्विक निर्यात बाजारों तक पहुंच जरूरी है और खाड़ी देश सभी क्षेत्रों के लिए एक अहम ठिकाना हैं. उन देशों से आयात भी महत्वपूर्ण है और एक साल में उसमें 86 फीसदी की बढ़त हुई है. आयात में ऊर्जा स्रोत भी शामिल हैं. पश्चिम एशिया से तेल आयात केवल भारत के अपने उपभोग के लिए ही जरूरी नहीं है, बल्कि निजी क्षेत्र द्वारा बड़ी मात्रा में निर्यात किये जानेवाले पेट्रोलियम पदार्थों के लिए भी अहम है. डॉलर के हिसाब से भारत के कुल मैनुफैक्चरिंग निर्यात में पेट्रो निर्यात का हिस्सा लगभग 20 फीसदी है.

जीसीसी के सदस्य देशों को सॉफ्टवेयर और अन्य सेवाओं का निर्यात भी होता है. इस साल मई में भारत ने संयुक्त अरब अमीरात, जो जीसीसी का सदस्य है, के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया है और केवल इस देश के साथ ही अगले कुछ साल में व्यापार को सौ अरब डॉलर पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है. इस मजबूत वाणिज्य-व्यापार संबंध को देखते हुए किसी प्रकार की अप्रिय कूटनीतिक अवरोध से बचा जाना चाहिए.

दूसरा पहलू खाड़ी देशों में कार्यरत भारतीयों से जुड़ा हुआ है. संयुक्त अरब अमीरात में ही भारतीय मूल के लोगों की आबादी लगभग 40 फीसदी है, जिसमें एक बड़ा हिस्सा भारतीय मुस्लिम समुदाय का है. अन्य खाड़ी देशों में भी भारतीयों का अनुपात बहुत अधिक है. भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बाहर से भेजी जानेवाली आय के ये बड़े स्रोत हैं. ऐसी आय पानेवाले देशों में भारत पहले स्थान पर है. यह लगभग 90 अरब डॉलर है. यदि प्रवासियों के साथ संबंधों को बेहतर किया जाए, तो यह राशि आसानी से 200 अरब डॉलर तक जा सकती है.

एक तरह से यह भारत के पास सर्वाधिक उपलब्ध संसाधन- श्रम- के ‘निर्यात’ को इंगित करता है. यह आय आसानी से सॉफ्टवेयर आय की बराबरी कर सकती है. खाड़ी देशों में ऐसे ब्लू-कॉलर नौकरियों की बहुतायत है, जो भारतीय मूल के लोगों को मिलती है.

इन दो आयामों के अलावा तीसरा कारक सभ्यतागत संबंध का हो सकता है. लोगों के बहुत पुराने परस्पर संबंधों के कारण संयुक्त अरब अमीरात और ओमान जैसे देश भारत के स्वाभाविक साथी हो सकते हैं. जब हम मध्य एशिया के साथ सड़क मार्ग तथा ऊर्जा पाइपलाइन की संभावना तलाश रहे हैं, तो इन संबंधों का भू-रणनीतिक आयाम भी भारत के लिए अहम हो जाता है. इसलिए अन्य बुनियादी कारणों को छोड़ भी दें, तो केवल इन कारणों को देखते हुए भारत को खाड़ी देशों के साथ मजबूत और मित्रतापूर्ण संबंध बनाने की जरूरत है. इनमें से कुछ तर्क इस्लामिक संगठन के सदस्यों के साथ संबंधों पर भी लागू होते हैं.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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