16.1 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 12:56 am
16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

दवा अनुसंधान को प्राथमिकता मिले

Advertisement

पहले एक-दो महीने में स्वास्थ्य मंत्रालय या स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों का उल्लेख होता था. कोरोना महामारी के अनुभव ने इस मंत्रालय और क्षेत्र के बड़े महत्व को हमारे सामने रख दिया है. शोध और अनुसंधान बेहद खर्चीला मामला है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया का कहना बिल्कुल सही है कि दवा क्षेत्र में शोध एवं अनुसंधान को मजबूत किया जाना चाहिए. शोध संस्थानों तथा दवा उद्योग के बीच परस्पर सहयोग बढ़ाने की बात भी स्वागतयोग्य है. इन दोनों लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए सरकार को अग्रणी भूमिका निभानी होगी. हमारे यहां आजादी के बाद से करीब सात दशकों तक स्वास्थ्य क्षेत्र पर ठीक से ध्यान नहीं दिया गया. पिछले कुछ वर्षों से यह सरकार की प्राथमिकताओं में शामिल हुआ है. लंबे समय तक स्वास्थ्य के मद में बजट आवंटन आधा फीसदी से भी कम हुआ करता था.

- Advertisement -

इसमें भी एक बड़ा भाग परिवार नियोजन के लिए खर्च होता था. ऐसे में अनुसंधान बढ़ा पाना संभव नहीं था. आज भी इस क्षेत्र में सकल घरेलू उत्पाद के सवा प्रतिशत के लगभग ही खर्च किया जाता है. हमारी मांग रही है कि यह कम-से-कम दो प्रतिशत होना चाहिए, जबकि कई देश छह प्रतिशत तक खर्च करते हैं. शोध को बढ़ावा देने के लिए समुचित बजट का प्रावधान किया जाना चाहिए.

यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि अगर पहली सरकार के कुछ वर्षों को छोड़ दें, तो विभिन्न सरकारों में स्वास्थ्य मंत्रालय को उचित महत्व नहीं दिया जाता था. किसी नेता या पार्टी को सरकार में समायोजित करना होता था, तो इस मंत्रालय का जिम्मा उनके हवाले कर दिया जाता था. अब इसमें बदलाव दिख रहा है. अब तो मीडिया में भी रोज इस विषय पर चर्चा होती है.

पहले एक-दो महीने में स्वास्थ्य मंत्रालय या स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों का उल्लेख होता था. कोरोना महामारी के अनुभव ने इस मंत्रालय और क्षेत्र के बड़े महत्व को हमारे सामने रख दिया है. शोध और अनुसंधान बेहद खर्चीला मामला है. आप प्रयोगशाला में दस मॉलेक्यूल बनाते हैं, तो उसमें से एक कारगर होता है. शोध की प्रक्रिया के कई चरण होते हैं. इस खर्च को वहन करने की क्षमता न तो किसी फार्मा कंपनी के पास और न ही किसी चिकित्सा संस्था के पास है.

इस कारण इसमें सरकार की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. आम तौर पर ऐसा होता है कि बाहर के शोध को अपने यहां परखते हैं और उसे कम खर्च में बना कर सस्ते दाम पर मुहैया कराते हैं. आज भारत में निर्मित दवाओं की आपूर्ति 190 से अधिक देशों में होती है और इसके लाभान्वितों में बड़ी संख्या में गरीब व निम्न आयवर्गीय लोग हैं. इसी कारण हमें ‘फार्मेसी ऑफ द वर्ल्ड’ की संज्ञा दी गयी है.

पहले विदेशी कंपनियां यह आरोप भी लगाती थीं कि भारत में बनी दवाओं की गुणवत्ता ठीक नहीं है. इस कारण भारत सरकार को दवा निर्माण कंपनियों पर कुछ नियम लागू करने पड़े, ताकि देश की साख पर असर न हो. इस वजह से कई कंपनियों को विश्व स्वास्थ्य संगठन के नियमों के तहत अच्छे उत्पाद बनानेवाली श्रेणी में रखा गया. आज भारत का दवा उद्योग दुनिया के किसी भी अन्य दवा उद्योग के समकक्ष है. अब जो कमी रह गयी है, वह है रिसर्च की, ताकि उत्कृष्ट दवाएं बनायी जा सकें. यदि सरकार पर्याप्त निवेश मुहैया करायेगी, तो फिर फार्मा कंपनियां भी शोध में पैसा लगाने के लिए प्रेरित होंगी. इस क्रम में उन्हें करों और शुल्कों में छूट तथा ऋण उपलब्धता जैसी मदद की दरकार है.

ऐसे प्रोत्साहन अन्य औद्योगिक क्षेत्रों को दिये जाते हैं. अभी स्थिति यह है कि फार्मा कंपनियां अपने स्तर पर कुछ-कुछ करने की कोशिश करती हैं. इसी के आधार पर वे दुनियाभर में अपनी जगह बना सकी हैं. यदि उन्हें सरकार से सहायता मिलती है, तो हमारे दवा उद्योग का दायरा बहुत बढ़ सकता है. अब तो हमारे उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर किसी तरह का सवाल भी नहीं उठाया जाता है.

हमारी कंपनियों की क्षमता की तुलना केवल इस्राइल के दवा उद्योग से की जा सकती है, लेकिन वित्तीय रूप से दुनिया की बड़ी कंपनियों से वे बहुत पीछे हैं. स्वाभाविक रूप से वे शोध एवं अनुसंधान में बहुत निवेश करने की स्थिति में नहीं हैं. भारत सरकार के अधीन भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद है. उसके तहत दो दर्जन से अधिक संस्थान कार्यरत हैं. भारत सरकार का बायो टेक्नोलॉजी का बड़ा विभाग भी है. लेकिन यह अफसोस की बात है कि बीते दशकों में वे उल्लेखनीय शोध कार्य नहीं कर सके हैं.

अब जब सरकारी संस्थाओं की यह स्थिति है, तो फिर हम फार्मा कंपनियों से कैसे उम्मीद रख सकते हैं. इस संबंध में स्वास्थ्य मंत्रालय की जिम्मेदारी बनती है कि वह इन संस्थानों की जवाबदेही सुनिश्चित करे. ऐसे में स्वास्थ्य मंत्री मंडाविया का यह सुझाव बहुत अहम है कि फार्मा शिक्षा एवं शोध का राष्ट्रीय संस्थान दवा उद्योग के साथ सहयोग और सहभागिता बढ़ाने के लिए एक ठोस रूपरेखा तैयार हो. उसके आधार पर विभिन्न शोध संस्थानों और कंपनियों के बीच तालमेल बढ़ सकता है तथा भारत दवा उद्योग के क्षेत्र में अपनी बढ़त कायम रख सकता है.

इस संदर्भ में एक उत्साहजनक पहलू यह है कि पिछले कुछ समय से भारत में चिकित्सा शिक्षा क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति हुई है. मेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ रही है. सरकार इसके निरंतर विस्तार की दिशा में प्रयासरत है. मेडिकल शिक्षा में ऐसे छात्रों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है, जो शोध, विशेषकर दवाइयों के क्षेत्र, में योगदान करें.

इस क्षेत्र में क्लीनिकल शाखा को अधिक महत्व दिया जाता है. अभी फार्मा शाखा में प्रशिक्षित छात्रों के लिए दवा उद्योग में मांग बढ़ी है. इस क्षेत्र की बेहतरी के लिए हमें अभी से एक दीर्घकालिक योजना पर काम शुरू करना होगा ताकि भविष्य में अच्छे शोधकर्ता हमारी संस्थाओं को मिल सकें और अनुसंधान में हम आगे बढ़ सकें. रोगियों पर समुचित शोध के लिए भी सोचा जाना चाहिए.

इसके लिए अस्पतालों और मेडिकल कॉलेजों में संसाधनों की उपलब्धता पर ध्यान देना होगा तथा चिकित्सकों को प्रेरित करना होगा. अस्पतालों में शोध या परीक्षण के लिए अनुमति देने की प्रक्रिया बहुत धीमी है. मान लीजिए, मुझे ऐसी अनुमति चाहिए, पर इसमें अगर बेमतलब देरी होगी, तो मेरे जैसे 65 साल के डॉक्टर की यही प्रतिक्रिया होगी कि इसमें मेहनत करने से क्या फायदा है. सरकार को इन खामियों को सुधारना चाहिए.

आज दुनिया में अधिकतर लोग भारत में बनी दवाइयां और वैक्सीन ले रहे हैं. हमारे देश के भीतर ही इनकी बड़ी मांग है. रिसर्च पर ध्यान देकर हम अपनी अर्थव्यवस्था में भी योगदान कर सकते हैं और दुनिया में भारत का सम्मान भी बढ़ा सकते हैं. उम्मीद है कि स्वास्थ्य मंत्रालय का ध्यान इस पर बना रहेगा.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें