15.1 C
Ranchi
Friday, February 7, 2025 | 07:40 am
15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

भारतीय गणतंत्र की सकारात्मक यात्रा

Advertisement

पहले से चली आ रही सामाजिक मानसिकता और नये परिवर्तनों एवं चाह के साथ कैसे संवाद हो, इस पर सोच-विचार की आवश्यकता है. इसके लिए हमें एक नयी भाषा गढ़नी होगी ताकि इनके बीच एक पुल बन सके.

Audio Book

ऑडियो सुनें

हम आज अपना 74वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं और हमारी स्वतंत्र गणतांत्रिक व्यवस्था के 73 वर्ष पूरे हुए हैं. पिछले वर्ष औपनिवेशिक शासन से भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे हुए थे. आम तौर पर कहा जाता है कि भारत में लोकतंत्र स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आया और उस यात्रा ने सात दशक से अधिक का समय पार कर लिया है. इस अवधि में हमारे देश में लोकतंत्र की पैठ गहरी हुई है

- Advertisement -

समाज की संरचना और उसके प्रमुख ढांचे भी उत्तरोत्तर लोकतांत्रिक होते गये हैं, चाहे वह राजनीतिक ढांचा हो, सामाजिक ढांचा हो, सांस्कृतिक ढांचा हो. लोकतांत्रिक होने की इस प्रक्रिया को लेकर मुख्य रूप से दो तरह के तर्क दिये जाते हैं. एक तर्क यह है कि चूंकि यह प्रक्रिया सामंती पृष्ठभूमि से निकली है, तो लोकतंत्र के नीचे तक पहुंच पाना एक मुश्किल प्रक्रिया है.

दूसरा तर्क यह है कि भारत में लोकतंत्र का इतिहास बहुत प्राचीन काल से प्रारंभ होता है, जब हमारे यहां महाजनपदों या गणराज्यों का विकास हुआ. उस काल में शासक का चुनाव लोकतांत्रिक प्रक्रिया से लोगों द्वारा किया जाता था. इस संबंध में काशी प्रसाद जायसवाल की पुस्तक स्वतंत्रता प्राप्ति से बहुत पहले ही प्रकाशित हो चुकी थी.

इस तर्क के आधार पर ही भारत को ‘मदर ऑफ डेमोक्रेसी’ (लोकतंत्र की जननी) कहा जाता है. ऐसे में भारतीय समाज में एक अंतर्निहित लोकतांत्रिक चेतना उपस्थित है. इस आधारभूत संरचना के कारण स्वतंत्रता के बाद लोकतंत्र का विस्तार होता गया है.

भारत एक गणतांत्रिक राष्ट्र है और बीते सात दशकों में विभिन्न योजनाओं, कार्यक्रमों, नीतियों, गतिविधियों एवं प्रयासों के माध्यम से नीचे तक गणतंत्र को फैलाने का कार्य हुआ है. समाज की आधारभूत संस्थाओं तक लोकतंत्र का प्रसार हुआ है. जहां तक इस यात्रा में कमियों अथवा अपेक्षाओं एवं आकांक्षाओं के फलीभूत होने या न होने का प्रश्न है, तो मेरा मानना है कि देश में लोकतांत्रिक चेतना का तो व्यापक प्रसार हुआ है.

इस प्रसार की प्रक्रिया में संघर्ष होते हैं, निराशा भी होती है, आशा भी जगती है. यह सब भी हो रहा है और इसी के साथ जनतंत्र भी फैलता जा रहा है. दूसरी बात यह है कि जनतांत्रिक राज्य से जो लाभ मिलने चाहिए, आशाएं कितनी पूरी हुईं, तो हमें यह समझना चाहिए कि आशाएं कभी भी पूरी नहीं होतीं.

होता यह है कि हम एक समय में एक लक्ष्य या आशा रखते हैं कि हमें यह मिल जाए. आकांक्षा रखने की भी समुदाय में एक क्षमता होती है. उस आधार पर आशा की जाती है. जब वह पूरी हो जाती है, तो आकांक्षाओं का भी विस्तार हो जाता है. यह प्रक्रिया निरंतर जारी रहती है.

हमें यह समझना चाहिए कि लोकतंत्र की यह भी एक विशेषता है कि वह हमेशा आशाएं जगाता है. इसलिए लोकतांत्रिक राज्य से हर व्यक्ति पाता भी है और अधिक पाने की अपेक्षा भी रखता है. ऐसे में हमें शिकायतें भी सुनायी पड़ती हैं कि यह नहीं मिला, वह नहीं मिला, लेकिन तब तक बहुत कुछ मिल चुका होता है और अधिक की चाहत पनप चुकी होती है. संविधान सभा में अपने अंतिम संबोधन में बाबासाहेब आंबेडकर ने रेखांकित किया था कि राजनीतिक समानता तभी सुनिश्चित हो सकेगी, जब हमारे देश में सामाजिक और आर्थिक समानता स्थापित होगी.

यह सटीक कसौटी है. उस दिशा में हम देखा रहे हैं कि सामाजिक समानता की ओर हम निरंतर अग्रसर हैं. हमारे समाज की जो पिरामिड सरीखी संरचना रही है, अब वह धीरे-धीरे समानता के धरातल पर आ रही है. इस समानता को हासिल करने के लिए हमारा संविधान, हमारा राष्ट्र-राज्य, हमारी संस्थाएं सभी प्रतिबद्ध हैं. उसमें टकराहटें होनी स्वाभाविक है और चाहतें भी बढ़ रही हैं, पर वह प्रक्रिया चल रही है तथा सामाजिक लोकतंत्र मजबूत होता जा रहा है. यह महत्वपूर्ण है.

यहां से भविष्य की ओर की यात्रा का आकलन करें, तो इसमें युवाओं की बड़ी भूमिका होगी क्योंकि हमारी जनसंख्या में उनकी हिस्सेदारी बहुत अधिक है. यह जो युवा वर्ग है, उसमें मुख्य रूप से दो श्रेणियां हैं. एक वह युवा है, जो आधुनिकता में एक प्रकार से डूब गया है और अपनी जड़ों से कहीं-न-कहीं कट गया है. दूसरे प्रकार का युवा वह है, जो लोकतंत्र के लाभ भी प्राप्त कर रहा है और अपनी जड़ों से भी जुड़ा हुआ है.

इनके अलावा भी हम तरह-तरह के युवाओं को रेखांकित कर सकते हैं. भविष्य में साइबरस्पेस, आधुनिकता, वैश्वीकरण, उदार अर्थव्यवस्था आदि अहम होंगे. इन कारकों ने हमारे समाज पर अलग-अलग ढंग से प्रभाव डाला है. अभी हम कोरोना महामारी के साये से बाहर निकले हैं.

इस स्थिति में हमारे युवा को स्वयं को पुनर्निर्मित करना है ताकि वह चुनौतियों और प्रक्रियाओं के साथ सामंजस्य स्थापित कर सके. भविष्य को लेकर मुझे नहीं लगता है कि हमारी राह में कोई बड़ी बाधा है. अगर हमारे पास, हमारे लोकतांत्रिक राज्य में, हमारी संस्थाओं में परिवर्तन को लेकर इच्छाशक्ति है, तो निश्चित ही हम आगे बढ़ते जायेंगे.

जहां तक चुनौतियों की बात है, तो पहले से चली आ रही सामाजिक मानसिकता और नये परिवर्तनों एवं चाह के साथ कैसे संवाद हो, इस पर सोच-विचार की आवश्यकता है. इसके लिए हमें एक नयी भाषा गढ़नी होगी ताकि इनके बीच एक पुल बन सके. यह भाषा ऐसी नहीं होनी चाहिए कि यह ऊपर से थोपी गयी प्रतीत हो.

मेरा मानना है कि इस दिशा में नीति-निर्धारकों, राजनेताओं, प्रशासकों, साहित्यकार, बुद्धिजीवी आदि को मिल-जुलकर प्रयत्नशील होना चाहिए. हमारी गणतांत्रिक यात्रा की एक बड़ी उपलब्धि यह रही है कि सर्वाधिक परिवर्तन और चेतना का प्रसार वंचित समुदायों में ही हुआ है, जो हमारी आबादी का बड़ा हिस्सा हैं. लोकतंत्र और सत्ता में उनकी भागीदारी में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है. ऊपरी तबकों में स्थायित्व के कारण बदलाव को देखना भले मुश्किल हो, पर सबाल्टर्न वर्ग में बड़े बदलाव आये हैं.

यह हमारी गणतांत्रिक व्यवस्था की बड़ी सफलता है. साहित्यिक समुदाय का हिस्सा होने के नाते मैं यह भी जोड़ना चाहूंगा कि हमारा जो साहित्य का क्षेत्र है, जो रचनात्मक स्फीयर है, उसको एक ऐसी भाषा और ऐसे लेखन के विकास के लिए प्रयासरत होना चाहिए, जो हमारी जड़ों की सामाजिक मानसिकता को आधुनिक चाहतों के साथ जोड़ सके तथा एक सामाजिक परिवर्तन के रचना-कर्म का आधार बन सके. गणतांत्रिक यात्रा के अब तक के अनुभव और उपलब्धियां हमें भविष्य के प्रति आश्वस्त करती हैं. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें