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मोदी की यात्रा और भारत-भूटान संबंध

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लोकसभा चुनाव के समय में प्रधानमंत्री मोदी का भूटान दौरा यह दर्शाता है कि भारत भूटान को कितना महत्व देता है. प्रधानमंत्री मोदी को भूटान ने 'ऑर्डर ऑफ द ड्रुक ग्यालपो' पुरस्कार से सम्मानित किया है.

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भूटान एक अनोखा देश है- केवल आठ लाख की आबादी वाला एक संवैधानिक राजतंत्र, जो अपनी बौद्ध परंपरा और पहचान को सर्वोच्च मानता है तथा राज्य की नीति के रूप में ‘नागरिकों की खुशी’ को अपनाता है. भूटान के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध भारत की पड़ोस प्रथम नीति की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि है. यह रिश्ता निरंतरता, आपसी विश्वास और सद्भावना पर आधारित है. दक्षिण एशिया में किसी भी अन्य देश के साथ भारत इस स्तर के भरोसे का दावा नहीं कर सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय यात्रा भूटान को आश्वस्त करने का एक प्रयास है कि भारत उसकी सुरक्षा और भलाई के लिए प्रतिबद्ध है. दो विशिष्ट कारणों से भूटान भारत के विश्व दृष्टिकोण में एक विशेष स्थान रखता है- दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक संबंध तथा चीन से निकटता के कारण भूटान का रणनीतिक महत्व. भारत का ऐतिहासिक संबंध आठवीं सदी की शुरुआत से है, जब पद्मसंभव ने भूटान में बौद्ध धर्म की शुरुआत की थी. बौद्ध धर्म भूटान का राजकीय धर्म है और इसकी 75 प्रतिशत आबादी बौद्ध है. द्विपक्षीय संबंधों की नींव प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और भूटान के राजा जिग्मे दोरजी वांगचुक ने 1949 की भारत-भूटान संधि द्वारा रखी थी. संधि के अनुच्छेद दो में एक विशेष प्रावधान था, जिसमें कहा गया था कि ‘भारत भूटान के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगा, जबकि भूटान बाहरी मामलों में भारत की सलाह लेगा’. इस संधि को 2007 में नवीनीकृत किया गया और नये अनुच्छेद में केवल यह कहा गया है कि दोनों राज्य अपने राष्ट्रीय हितों से संबंधित मुद्दों पर निकटता से सहयोग करेंगे और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरनाक गतिविधियों के लिए अपने क्षेत्रों के उपयोग की अनुमति नहीं देंगे.

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अपनी भौगोलिक स्थिति और चीन से निकटता के कारण भूटान रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है. साल 1950 में चीन द्वारा तिब्बत पर कब्जा और भूटान सीमा के पास चीनी सैनिकों की मौजूदगी ने भूटान को चिंतित कर दिया. चीनी कब्जे के डर से भूटान ने अपनी अलगाववादी विदेश नीति को त्याग दिया और भारत के साथ मजबूत संबंध बनाये. वर्ष 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद भारत ने संचार की लाइनें खोलीं और भूटान से मजबूत राजनयिक संबंध विकसित किये. थिम्पू में भारतीय दूतावास का उद्घाटन 1968 में किया गया और भारत ने 1971 में संयुक्त राष्ट्र में भूटान की सदस्यता का समर्थन किया. जब चीन ने 2014 में अपनी बेल्ट एंड रोड (बीआरआई) शुरू की, तो भारत ने इसे एक भू-रणनीतिक और सुरक्षा उपकरण के रूप में देखा और इससे भारत में चिंताएं पैदा हुईं. सौभाग्य से, भारत के अलावा भूटान दक्षिण एशिया का अकेला देश है, जिसने बीआरआई में शामिल होने से इनकार कर दिया है. प्रधानमंत्री मोदी की थिम्पू यात्रा ऐसे समय में हुई है, जब भूटान चीन से सीमा विवाद का शीघ्र समाधान चाह रहा है. भारत की नजर इस बातचीत पर है क्योंकि इसका भारत के सुरक्षा हितों, खासकर डोकलाम ट्राई-जंक्शन पर, प्रभाव पड़ सकता है.


डोकलाम लगभग 100 वर्ग किलोमीटर वाला भारत, भूटान और चीन के बीच एक क्षेत्र है, जिसमें एक पठार और एक घाटी शामिल है. यह सिलीगुड़ी कॉरिडोर के करीब स्थित है, जो भारत की मुख्य भूमि को उसके उत्तर-पूर्वी क्षेत्र से जोड़ता है. यह गलियारा, जिसे चिकन नेक भी कहा जाता है, भारत के लिए एक संवेदनशील बिंदु है. चीन और भूटान के बीच कई दौर की बातचीत के बावजूद विवाद का समाधान नहीं निकल पाया है. डोकलाम गतिरोध 2017 में हुआ, जब चीन ने इस क्षेत्र में सड़क निर्माण शुरू किया और भारत ने भूटान के समर्थन में अपने सैनिक भेजे. लद्दाख में झड़प के बाद भारत भूटान और अरुणाचल प्रदेश में चीनी गतिविधियों को लेकर और अधिक सतर्क हो गया है. लोकसभा चुनाव के समय में प्रधानमंत्री मोदी का भूटान दौरा यह दर्शाता है कि भारत भूटान को कितना महत्व देता है. प्रधानमंत्री मोदी को भूटान ने ‘ऑर्डर ऑफ द ड्रुक ग्यालपो’ पुरस्कार से सम्मानित किया है. यह पहली बार है कि किसी विदेशी नागरिक को यह पुरस्कार दिया गया है. प्रधानमंत्री मोदी ने सकल राष्ट्रीय खुशहाली परियोजना को लोकप्रिय बनाने में भूटान के योगदान और ‘माइंडफुलनेस सिटी’ विकसित करने की उसकी भावी योजना की सराहना की. उन्होंने यह घोषणा भी की कि भारत अगले पांच वर्षों में भूटान को 10 हजार करोड़ रुपये की सहायता देगा. भूटान की 12वीं पंचवर्षीय योजना के लिए भारत का योगदान 45 सौ करोड़ रुपये था. यह राशि 13वीं योजना में दोगुनी से अधिक हो गयी है.


भूटान के बजट में भारत प्रमुख योगदानकर्ता रहा है. प्रधानमंत्री मोदी ने अगस्त 2019 में हुई यात्रा में चार प्रमुख द्विपक्षीय परियोजनाओं की घोषणा की थी: 720 मेगावाट के मंगदेचू हाइड्रोप्रोजेक्ट, इसरो का ग्राउंड अर्थ स्टेशन, रुपे कार्ड और भारत के राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क और भूटान के अनुसंधान और शिक्षा नेटवर्क के बीच इंटरकनेक्शन. इन परियोजनाओं में उल्लेखनीय प्रगति हुई है. जल-विद्युत सहयोग द्विपक्षीय सहयोग का एक प्रमुख स्तंभ है. कुल 2,136 मेगावाट की चार पनबिजली परियोजनाएं भारत को बिजली की आपूर्ति कर रही हैं. अगस्त 2019 में 720 मेगावाट की मांगदेछू परियोजना को चालू किया गया था. पुनात्सांगछू के दो प्रोजेक्ट कार्यान्वयन के विभिन्न चरणों में हैं. भारत भूटान का सबसे बड़ा व्यापार भागीदार है. व्यापार, वाणिज्य और पारगमन पर 1972 में समझौते हुए थे, जिसे 2016 में संशोधित किया गया. यह एक मुक्त व्यापार व्यवस्था स्थापित करता है और तीसरे देशों में भूटानी निर्यात के शुल्क मुक्त पारगमन का प्रावधान करता है. भारतीय विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, बिजली को छोड़कर, भारत का व्यापारिक व्यापार 2022-23 में 1,606 मिलियन डॉलर पहुंच गया, जो भूटान के कुल व्यापार का लगभग 73 प्रतिशत है. भारत 1,000 से अधिक भूटानी छात्रों को छात्रवृत्ति देता है. भूटानी तीर्थयात्री भारत के बौद्ध स्थलों की यात्रा करते हैं.


दक्षिण एशिया के अशांत क्षेत्र में भूटान ने खुद को शांति, समृद्धि और विकास के द्वीप के रूप में स्थापित किया है. भूटान ने भारत के सद्भावना संकेतों पर सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है और इसके विकास में भागीदार बनने की इच्छा जतायी है. अन्य दक्षिण एशियाई देशों की तरह उसने भारत के खिलाफ चीन का इस्तेमाल करने की कोशिश नहीं की है. इसलिए, यह भारत का दायित्व है कि वह अपने छोटे पड़ोसी की राष्ट्रीय संप्रभुता की रक्षा करे और उसके विकास में पूरी सहायता दे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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