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घटती मांग चिंताजनक

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मार्च के पहले पखवाड़े की तुलना में अप्रैल में इसी अवधि में पेट्रोल की बिक्री लगभग 10 प्रतिशत और डीजल की बिक्री 15.6 प्रतिशत घट गयी.

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पेट्रोल और डीजल की मांग में कमी चिंताजनक संकेत है क्योंकि ऊर्जा स्रोत अर्थव्यवस्था के आधार होते हैं. विभिन्न कारणों से अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम बढ़े हुए हैं. ऐसे में घरेलू बाजार पर भी दबाव है. पिछले दिनों 22 मार्च और छह अप्रैल के बीच पेट्रोल और डीजल के खुदरा मूल्य में 10 रुपये की बढ़त हुई, जो कि दो दशकों में एक पखवाड़े में हुई सबसे बड़ी वृद्धि है.

इसका असर यह हुआ है कि मार्च के पहले 15 दिनों की तुलना में अप्रैल के पहले 15 दिनों में पेट्रोल की बिक्री लगभग 10 प्रतिशत और डीजल की बिक्री 15.6 प्रतिशत घट गयी. थोक और खुदरा मुद्रास्फीति की दर भी बहुत अधिक है. मार्च में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 6.95 फीसदी तक पहुंच गया. पेट्रोल व डीजल की मांग घटने से वस्तुओं की ढुलाई में कमी आ सकती है. इससे भी महंगाई बढ़ेगी. जानकार पहले से ही आगाह कर रहे हैं कि महंगाई की दर सितंबर तक छह फीसदी से ऊपर रह सकती है.

देश के कई हिस्सों में बिजली की आपूर्ति बाधित होने के आसार हैं क्योंकि कोयले की कमी हो रही है. गर्मी की वजह से बिजली की जरूरत बढ़ी हुई है. प्राकृतिक गैसों की कीमतों में भी बढ़त की गयी है. महामारी के इस काल में अभी तक रसोई गैस की मांग लगातार बढ़ती रही है, लेकिन अप्रैल के पहले पखवाड़े में इसमें 1.7 प्रतिशत की कमी आयी है. आपूर्ति शृंखला के अवरोधों तथा भू-राजनीतिक हलचलों के कारण औद्योगिक और उपभोक्ता वस्तुओं की लागत बढ़ रही है.

उसकी भरपाई भी मुद्रास्फीति की एक वजह है. यदि अंतरराष्ट्रीय और घरेलू कारणों से पैदा हुई यह स्थिति अधिक समय तक बनी रही, तो बाजार में मांग में कमी का स्तर अधिक हो सकता है. इससे वर्तमान वित्त वर्ष में वृद्धि दर के अनुमानों को झटका लग सकता है. घटती मांग अर्थव्यवस्था में कुछ समय से हासिल उपलब्धियों पर पानी फेर सकती है. ध्यान रहे, मुद्रास्फीति की चुनौतियों के साथ-साथ अभी भी महामारी के नकारात्मक प्रभाव से हम उबर नहीं सके हैं.

यह भी हमारे संज्ञान में रहना चाहिए कि देश और दुनिया के हालात में बहुत जल्दी कोई चमत्कारिक बदलाव नहीं होगा तथा आर्थिक एवं राजनीतिक स्तर पर अस्थिरता बनी रहेगी. केंद्रीय वित्त मंत्रालय और रिजर्व बैंक की ओर से भरोसा दिलाया गया है कि मुद्रास्फीति की बढ़ती दर पर उनकी निगाह है.

सरकार ने भी रिजर्व बैंक से ठोस पहल करने को कहा है. जानकारों का मानना है कि रेपो रेट में बदलाव किया जा सकता है. सरकार भी पहले की तरह कीमतों में राहत देने के लिए कुछ कदम उठा सकती है. कृषि उत्पादों के बाजार में आने भी लोगों की जेब को आराम मिल सकता है. अगर मांग नहीं बढ़ेगी, तो उत्पादन भी प्रभावित होगा और रोजगार में भी कमी आ सकती है. इसलिए सुधार के प्रयास जल्दी किये जाने चाहिए.

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