13.1 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 05:25 am
13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

शिक्षा व्यवस्था में समानुभूति की राह

Advertisement

हमारे यहां ऐसी संस्कृति है, जो सदियों से वंचना झेल रहे लोगों के दर्द को समझने से इनकार करती है. यह ऐसी कठोरता है, जो भारतीय जीवन के सभी अन्य आयामों में दिखती है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

हाल में आइआइटी मुंबई में एक दलित छात्र और पिछले साल नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, ओड़िशा में एक आदिवासी छात्र की आत्महत्या के हवाले से भारत के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. नालसार यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ, हैदराबाद में दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि वंचित समुदायों के छात्रों की आत्महत्या के बढ़ते मामले केवल आंकड़े नहीं है, बल्कि सदियों के संघर्ष की कहानियां हैं.

- Advertisement -

न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने शिक्षा संस्थानों में समानुभूति लाने का आह्वान किया है. इस टिप्पणी के आलोक में वर्तमान भारत में शिक्षा की स्थिति और उसकी भूमिका पर राष्ट्रीय बहस होनी चाहिए. इस पर भी चर्चा होनी चाहिए कि भारतीय शिक्षा व्यवस्था समता, समानता, सेवा, समुदाय एवं मूल्यों के विचारों को छात्रों में भरने में कैसे और क्यों विफल रही है. व्यवस्था में श्रेष्ठता के दावे पर भी शंका है क्योंकि संस्थानों से बड़ी संख्या में निकलने छात्रों की क्षमता पर सवाल उठाये जाते हैं.

छात्रों के बहुत छोटे अभिजन समूह को ही सम्मान से देखा जाता है. एक उदाहरण आइआइटी का है, जिसे लेकर यह समीक्षा नहीं हुई कि उसे देश में वैज्ञानिक चेतना का प्रवाह करना था, पर वह छात्रों के लिए अमेरिका जाने का जहाज का एकतरफा टिकट बन गया. अर्थशास्त्री अशोक मोदी ने लिखा है कि आइआइटी और अन्य अभिजन संस्थाओं ने शर्मनाक गड़बड़ी पैदा कर दी है.

आइआइटी से पढ़े मोदी का कहना है कि धनी भारतीय और नौकरशाह अपने बच्चों को अच्छे स्कूलों में भेजते हैं, जहां से वे या तो विदेश चले जाते हैं या अभिजात्य संस्थानों, आइआइटी और बेहतरीन मेडिकल कॉलेजों में दाखिला लेते हैं. उसके बाद वे सिविल सर्विस में चले जाते हैं, उन्हें निजी क्षेत्र में बड़ी नौकरी मिल जाती है या वे विदेश चले जाते हैं. इसका मतलब है कि लाखों भारतीय प्रतिभाएं गुम हो जाती हैं और हमारे बेहतरीन संस्थानों में शिक्षकों और धन की कमी हो जाती है. इसका एक उदाहरण इलाहाबाद विश्वविद्यालय है, जिसे कभी पूरब का ऑक्सफोर्ड कहा जाता था. यह स्थिति बिगड़ती ही जा रही है.

यह देश का दुर्भाग्य है कि विभिन्न प्रकार के विशेषाधिकारों में जाति विशेष रूप से हानिकारक है और उसे ऐसा सामान्य मान लिया गया है कि हम अपने ही बनाये गर्त में गिरते जा रहे हैं. यही वह व्यवस्था है, जिसके विरुद्ध प्रधान न्यायाधीश ने बोला है. श्रेष्ठ अभिजन का विचार समानुभूति के विचार के प्रतिकूल है. समानुभूति दूसरों के मन-मस्तिष्क के दरवाजे खोलती है, इससे समझ बढ़ती है और मानवता की भावना का संचार होता है तथा वैज्ञानिकता का मूल्य समृद्ध होता है.

इस प्रकार, समानुभूति मशीनी विज्ञान के वर्चस्व का प्रतिकार है. यह वसुधैव कुटुंबकम के भारतीय विचार के केंद्र में है. यह फ्रांसिस बेकन के उस समझ से बहुत अलग है कि प्रकृति के रहस्यों को जानने के लिए उसे प्रताड़ित किया जाना चाहिए. जिस हालिया संदर्भ में प्रधान न्यायाधीश ने बोला है, उसमें समानुभूति सामाजिक न्याय का आधार है. सेज इनसाइक्लोपीडिया ऑफ एक्शन रिसर्च के अनुसार, ‘जो समाज अपने सबसे कमजोर सदस्यों की जरूरतों का ध्यान रखते हैं, वे सभी के लिए अच्छे होते हैं.

आंकड़े बताते हैं कि जब समाज में समानुभूति का स्तर गिरता है, तो हिंसा, आर्थिक विषमता में बढ़ोतरी होती है, सामाजिक संस्थाओं में अस्थिरता आने लगती है, स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है और शिक्षा संस्थान खराब होने लगते हैं, व्यक्तिगत और सामुदायिक प्रगति बाधित हो जाती है.’ दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि ताकत, नियंत्रण, वृद्धि, विश्वास और बड़े होने के बारे में जिस भाषा में आम भारतीय बात करते हैं, उसमें लोगों और उनकी चिंताओं को अनदेखा कर दिया जाता है. इसके बड़े नुकसान हैं.

हमारे यहां ऐसी संस्कृति है, जो सदियों से वंचना झेल रहे लोगों के दर्द को समझने से इनकार करती है. यह ऐसी कठोरता है, जो भारतीय जीवन के सभी अन्य आयामों में दिखती है. ऐसे में हर तरह की हिंसा का खतरा रहता है, जो देश के अहिंसक होने के दावे का खोखलापन जाहिर करता है. ये बड़े मुद्दे हैं, जिन पर अधिक बहस होनी चाहिए. जिन पर चर्चा की जरूरत नहीं है, वे हैं कुछ तात्कालिक उपाय, जो समाज की तात्कालिक समस्याओं का समाधान कर सकते हैं.

जैसा कि न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने अपने संबोधन में रेखांकित किया है, छात्रावास का आवंटन अंकों के आधार पर करने का कोई कारण नहीं है, परिणाम इस तरह नहीं तैयार होने चाहिए, जिससे कुछ छात्रों को बुरा लगे. परिसरों या कार्यालयों में अनादर को बर्दाश्त करने का कोई कारण नहीं है. इस तरह के व्यवहारों को स्पष्ट निर्देश और नेतृत्व से रोका जा सकता है.

जाति और अन्य भेदभावों से संबंधित जो समस्याएं देश के सामने हैं, वे तुरंत तो हल नहीं हो सकती हैं. फिर भी, कठोर और नियमित संदेश अवश्य मददगार हो सकते हैं. इस दृष्टि से न्यायाधीश चंद्रचूड़ का संबोधन एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है और लंबे समय तक इसका हवाला दिया जाता रहेगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें