26.1 C
Ranchi
Wednesday, February 12, 2025 | 06:53 pm
26.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

कांग्रेस अध्यक्ष की राह आसान नहीं

Advertisement

पार्टी के भीतर आंतरिक चुनाव होना अच्छी बात है. इस कदम से कांग्रेस वंशवाद के भाजपा के आरोप से कुछ राहत मिलने की उम्मीद कर सकती है. हालांकि भाजपा की ओर से अभी भी यह कहा जायेगा कि खरगे को भी गांधी परिवार रिमोट कंट्रोल से चलायेगा. पर खरगे का व्यक्तित्व ऐसा नहीं है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

दो दशकों से भी अधिक समय बाद कांग्रेस का अध्यक्ष गांधी परिवार से बाहर का व्यक्ति बना है. नामांकन के बाद से ही यह लगभग तय था कि मल्लिकार्जुन खरगे जीतेंगे, लेकिन इस परिणाम का विश्लेषण गंभीरता से किया जाना चाहिए. खरगे को 7897 तथा शशि थरूर को 1072 वोट मिले हैं. इससे यह भले लगे कि यह एकतरफा जीत है, लेकिन मुझे ऐसा नहीं लगता. थरूर को 1072 वोट मिलने का मतलब है कि इसी तरह की भावनाएं कई कांग्रेस प्रतिनिधियों में भी होंगी, पर वे उसे अपने मतपत्र पर व्यक्त नहीं कर पाये होंगे.

इसकी वजह पार्टी अनुशासन का पालन करना और आलाकमान को सम्मान देने वाली कांग्रेसी सभ्यता है. इससे इंगित होता है कि इस संख्या को 11 प्रतिशत नहीं, बल्कि 25-30 प्रतिशत मानकर चलना चाहिए. इसी ढर्रे पर अगर पार्टी चलती रही, तो तीन या पांच साल बाद जब अलग चुनाव होगा, तब यह हो सकता है कि गांधी परिवार को आज के विपरीत परिणाम मिले.

पार्टी के भीतर आंतरिक चुनाव होना अच्छी बात है. इस कदम से कांग्रेस वंशवाद के भाजपा के आरोप से कुछ राहत मिलने की उम्मीद कर सकती है. हालांकि भाजपा की ओर से अभी भी यह कहा जायेगा कि खरगे को भी गांधी परिवार रिमोट कंट्रोल से चलायेगा. पर खरगे का व्यक्तित्व ऐसा नहीं है. दरअसल, किसी भी राजनीतिक पार्टी की असली परीक्षा चुनावी मैदान में होती है. हिमाचल प्रदेश में अगले महीने वोट डाले जायेंगे. मैं यहां गुजरात की चर्चा नहीं करूंगा क्योंकि वहां कांग्रेस के लिए बहुत विषम परिस्थितियां हैं.

हिमाचल में कांग्रेस को जीत दर्ज करनी चाहिए और अगले साल के शुरू में कर्नाटक भी जीतना चाहिए. तभी अध्यक्ष के चुनाव या भारत जोड़ो यात्रा जैसे प्रयासों की सार्थकता साबित हो सकती है. यह सवाल भी है कि नया अध्यक्ष काम कैसे करता है. यह देखना होगा कि क्या वह अपना राजनीतिक सचिव चुन पायेगा, कांग्रेस कार्यसमिति में अपनी इच्छा से 12 नामित सदस्य रख पायेगा, क्या वह संगठन महासचिव को बदल सकेगा, क्या अपनी मर्जी से पदाधिकारियों की नियुक्ति कर सकेगा.

यह सवाल भी है कि क्या खरगे शशि थरूर को अपनी टीम में शामिल करेंगे. याद करें, 2008 में अमेरिका में राष्ट्रपति की उम्मीदवारी के लिए डेमोक्रेटिक पार्टी के अंदर हुए चुनाव में बराक ओबामा ने हिलेरी क्लिंटन को हरा दिया था, पर राष्ट्रपति बनने के बाद उन्होंने हिलेरी क्लिंटन को विदेश सचिव जैसा बहुत महत्वपूर्ण पद दिया था. इसी तरह क्या कांग्रेस थरूर को लोकसभा में पार्टी नेता या कार्यसमिति का सदस्य बनायेगी, यह एक बड़ा सवाल है.

चुनाव प्रक्रिया में कुछ धांधली होने का थरूर का आरोप राजनीतिक जुमलेबाजी है. यह एक अनूठा चुनाव था और इस तरह कभी पहले नहीं हुआ है. पहले जब चुनौती दी गयी, तो सीताराम केसरी या सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा गया. इस बार सोनिया गांधी या राहुल गांधी दावेदार नहीं थे. ऐसा जरूर कहा जा रहा है कि खरगे को गांधी परिवार की सरपरस्ती हासिल थी. इस चुनाव में जो मुख्य अधिकारी थे मधुसूदन मिस्त्री, उनकी नियुक्ति अंतरिम अध्यक्ष होने के नाते सोनिया गांधी ने की थी.

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सार्वजनिक रूप से खरगे का समर्थन कर अनुचित कार्य किया था, पर उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गयी. इस पर सवाल उठाकर थरूर ने अच्छा किया है. पर अब आगे इन बातों का कोई मतलब नहीं रहेगा. चुनाव के दौरान खरगे ने कहा था कि वे अध्यक्ष के रूप में गांधी परिवार के मार्गदर्शन में काम करेंगे. राजनीति में ऐसी बातें की जाती हैं. पंडित जवाहरलाल नेहरू हमेशा कहते थे कि महात्मा गांधी उनके राजनीतिक गुरु हैं, लेकिन उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में अनेक ऐसे निर्णय लिये, जो गांधी के आदर्शों से मेल नहीं खाता था.

सीताराम केसरी ने तो बिना वर्किंग कमिटी की बैठक बुलाये या पार्टी के वरिष्ठ नेताओं से राय-सलाह किये देवगौड़ा सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी थी. इस तरह का मनमानापन पार्टी के लिए बचपना हो जाता है और उसके नतीजे नुकसानदेह होते हैं. मल्लिकार्जुन खरगे लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता थे, पर 2019 में वे खुद भी चुनाव हार गये थे. उनकी राजनीतिक क्षमता और सीमा से सभी परिचित हैं. लेकिन अध्यक्ष के रूप में ऐसा न बनें कि यह लगे कि उन्हें रिमोट कंट्रोल से चलाया जा रहा है. वे अपने विवेक से काम करें. हर राज्य में कांग्रेस पार्टी के भीतर एक से अधिक नेता हैं और उनके अपने-अपने गुट हैं.

उन्हें संभालना बड़ी चुनौती है. राजस्थान का राजनीतिक बवाल अभी हल नहीं हुआ और फिर एक राजनीतिक संकट के रूप में सामने आ सकता है. वहां पार्टी विधायकों की बैठक तक नहीं हो सकी और आलाकमान जो बदलाव चाह रहा था, वह भी नहीं हो पाया. कर्नाटक में सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार की आपस में नहीं बनती है. यह राज्य खरगे का गृह राज्य भी है.

क्या वे सभी को एकजुट कर चुनाव में जीत हासिल कर सकेंगे? छत्तीसगढ़ में भी पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. हिमाचल प्रदेश के चुनाव की तो घोषणा हो ही चुकी है. मुझे लगता है कि खरगे के साथ एक सकारात्मक पक्ष यह है कि मीडिया में उनके बाबत ऐसी खबरें नहीं आयेंगी कि उनसे मिलने का समय नहीं मिलता, वे अपने मन की नहीं कर पा रहे हैं या फैसले ऊपर से थोपे जा रहे हैं. उनकी जगह कोई और अध्यक्ष बनता, तो ऐसी बातें करना आसान होता, जिससे पार्टी की किरकिरी होती.

जैसा मैंने पहले कहा, चाहे अध्यक्ष का चुनाव हो या राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा हो, ऐसी पहलें बहुत अच्छी हैं, लेकिन उनके प्रभाव एवं सार्थकता का परीक्षण चुनाव में ही हो सकता है. भारत जोड़ो यात्रा से यह जरूर हुआ है कि राहुल गांधी पर पहले की तरह व्यंग्य करने या उन्हें राजनीतिक रूप से सक्षम नहीं मानने की प्रवृत्तियों पर लगाम लग जायेगा.

जो कांग्रेस के समर्थक नहीं भी हैं, वे भी यह देख रहे हैं कि राहुल गांधी रोज कई किलोमीटर पैदल चल रहे हैं तथा सकारात्मक संदेश देने का प्रयास कर रहे हैं. अब उन पर न तो आपत्तिजनक और अमर्यादित टिप्पणियां की जा सकेंगी और न ही उनकी क्षमता पर सवाल उठाया जा सकेगा. लेकिन यह तो आगामी विधानसभा चुनाव के नतीजे ही बता सकेंगे कि कांग्रेस की इन कवायदों का राजनीतिक लाभ किस हद तक मिला.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें