19.3 C
Ranchi
Thursday, March 6, 2025 | 08:22 am
19.3 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

जीवंत साधक थे रामकृष्ण परमहंस

Advertisement

रामकृष्ण ने दुनिया को यह सिद्धांत दिया कि 'उस एक ईश्वर को पहचानो, उससे तुम सब कुछ जान जाओगे. यह समझो कि एक के बाद शून्य लगाते हुए सैकड़ों–हजारों की संख्या प्राप्त होती है, परंतु एक को मिटाने से शून्यों का कोई मूल्य नहीं होता.

Audio Book

ऑडियो सुनें

स्वामी विवेकानंद ने कहा है कि ‘रामकृष्ण क्या हैं, वे कितने पूर्व अवतारों के जमे हुए भाव राज्य के अधिराज्य हैं, इस बात को प्राणप्रण से तपस्या करके भी मैं रत्तीभर भी न समझ सका.’ रामकृष्ण परमहंस का जीवन अनोखी साधनाओं का एक ऐसा अमूल्य, अद्भुत कोश है, जिसके हर पृष्ठ पर अस्तित्ववादी अवधारणा विशेषकर मनुष्य और उसके मूल्यों, मनुष्यता को पहचानने और उसका सम्मान किये जाने से संबंधित असंख्य उदाहरण मिलते हैं. जिस सत्य की प्राप्ति के लिए मानव जीवनभर व्याकुल रहता है, वह सत्य तो उन्हें विरासत में मिला.

‘सत्य वचन कलिकाल की तपस्या है’ की परिभाषा गढ़ने और ज्ञान व अध्यात्म की नयी अवधारणा देनेवाले रामकृष्ण परमहंस का जन्म खुदीराम चट्टोपाध्याय के घर कुमारपुर में फाल्गुन शुक्ल द्वितीया को हुआ था. खुदीराम को सत्य की खातिर बंगाल में हुगली जिले के कुमारपुर से पांच किलोमीटर दूर स्थित देरे ग्राम से जमींदार के आदेश से 18वीं सदी की शुरुआत में ग्राम निष्कासन का दंड भुगतना पड़ा था. खुदीराम को उनके बालसखा सुखलाल गोस्वामी ने उन्हें पत्नी चंद्रमणी देवी, पुत्र रामकुमार और पुत्री कात्यायनी सहित आश्रय दिया.

कुमारपुर में सन् 1836 में रामकृष्ण का जन्म हुआ. इनका नाम रखा गया गदाधर यानी विष्णु. बालक गदाधर प्रभु स्मरण में लीन रहते. एक दिन बड़े भाई रामकुमार के पूछने पर कि ऐसा कब तक चलेगा, के जवाब में गदाधर ने कह दिया कि ‘मैं ऐसी विद्या सीखना चाहता हूं जो केवल दाल, चावल इकट्ठा करने तक ही सीमित न हो, बल्कि जिससे मैं सच्चा ज्ञान पा सकूं.’

इक्कीस वर्ष की आयु तक गदाधर रामकृष्ण के नाम से विख्यात हो गये थे. उनकी प्रभु भक्ति और ज्ञान प्राप्ति की चाह देखकर लोग उन्हें विक्षिप्त तक कहने लगे थे. जवाब में वे कहते थे कि ‘जो इस दुर्लभ मनुष्य जीवन को पाकर भी जीवन में ईश्वर प्राप्ति के लिए प्रयास नहीं करता, उसका जीवन ही निरर्थक है.’ कलकत्ता निवासी रानी रासमणि द्वारा साठ बीघे जमीन खरीदकर उसमें बनवाये गये भव्य एवं विशाल काली मंदिर, जिसमें उनके बड़े भाई रामकुमार पुजारी थे, वहां मां की मूर्ति के समक्ष पूजा करते हुए मां के दर्शन की अभिलाषा व्याकुलता का रूप ले चुकी थी.

वे कहने लग गये थे कि मां पाषाणमयी नहीं, चिन्मयी हैं. एक दिन उनकी वह अभिलाषा भी पूर्ण हुई, जब वह मंदिर में दीवार पर लटक रही तलवार से आत्मसात होने का प्रयास कर रहे थे, उन्हें मां के ज्योर्तिमयी स्वरूप के भव्य दर्शन हुए. उस अप्रतिम क्षण का वर्णन उन्होंने किया है कि उसके बाद तो घर, द्वार, मंदिर सब पता नहीं कहां विलुप्त हो गये. केवल एक असीम अनंत, चेतन ज्योति का समुद्र लहरा रहा था…और अंतत: रामकृष्ण को जीवन में ‘सतत बोधं केवलानंद रूपम्’ की अवस्था में पहुंचकर मां के साथ एकत्व की अनुभूति हुई.

मां के साथ एकत्व की अनुभूति के पश्चात रामकृष्ण ने दास्यभाव, फिर वैष्णव तंत्र में वर्णित पंचभाव, उसके बाद मधुर भाव की साधना की. आखिर में उन्होंने अति महत्वपूर्ण उन्माद प्रेम की साधना की, जिसमें वह लगातार घिरते चले गये. ‘उन्होंने स्पष्ट किया कि ‘प्रभु से साक्षात्कार किसी भी अवस्था में असंभव नहीं है. इसके लिए जरूरी है- सारी दुनियादारी, राग-द्वेष, विषय-भोग वादी बुद्धि को तिलांजलि देकर एक अबोध बालक जैसे बन जाने की. उस अवस्था में तुम्हें ईश्वर प्राप्ति, ज्ञान प्राप्ति से कोई रोक नहीं सकता.’

1866 में उन्होंने आस्थाओं को जानने के क्रम में पहला प्रयोग इस्लाम से किया. उन्होंने दक्षिणेश्वर के कालीमंदिर में एक सीधे सरल और सच्चे हृदय वाले मुसलमान को प्रार्थना में रत देखा, तो उससे इस्लाम की दीक्षा की प्रार्थना की. इस दौरान वह खुद और अपने ईश्वर को भूलकर अल्लाह-अल्लाह जपते रहते. एक दिन उन्हें गंभीर मुद्रा वाले सफेद वस्त्र और दाढ़ी वाले दैदीप्यमान व्यक्ति के के दर्शन हुए. सात वर्ष बाद इसी तरह से उन्हें यीशु रूप से साक्षात्कार हुआ.

दरअसल हिंदू, मुस्लिम और ईसाई धर्म और वैष्णव वेदांत जैसी सभी धाराओं का रामकृष्ण ने अनुशीलन किया. उन्होंने दुनिया को यह सिद्धांत दिया कि ‘उस एक ईश्वर को पहचानो, उससे तुम सब कुछ जान जाओगे. यह समझो कि एक के बाद शून्य लगाते हुए सैकड़ों–हजारों की संख्या प्राप्त होती है, परंतु एक को मिटाने से शून्यों का कोई मूल्य नहीं होता.

पहले ईश्वर फिर जीव जगत.’ रामकृष्ण के प्रयोग-दर-प्रयोग ईश्वर प्राप्ति के निमित्त ही किये गये थे. संपूर्ण आध्यात्मिक आदर्श के प्रतीक या परिचायक, धन यौवन के नहीं, आत्मशक्ति के पुजारी स्वामी रामकृष्ण ने अपने प्रयोगों और धर्मों के ऊपरी फर्क को पहचानने के बाद यह साबित किया कि धर्म कोई भी क्यों न हो, वह विभिन्न मार्गों के जरिये एक ही ईश्वर के पास ले जाता है. यही सत्य है जो अंतिम है.

Posted By : Sameer Oraon

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें
Home होम Videos वीडियो
News Snaps NewsSnap
News Reels News Reels Your City आप का शहर