25.1 C
Ranchi
Saturday, February 15, 2025 | 07:36 pm
25.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

विरले होते हैं प्रणब दा जैसे नेता

Advertisement

मनमोहन सरकार के वक्त जब भी कोई संकट आया, प्रणब दा तारणहार बने. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनका उतना ही सम्मान करते हैं, जितना कांग्रेस का कोई अन्य बड़ा नेता.

Audio Book

ऑडियो सुनें

लेकिन वे अपनी स्वतंत्र राय रखते थे. इसलिए कभी कांग्रेस नेतृत्व की पसंद नहीं बन पाये. यहां तक कि राष्ट्रपति पद के लिए भी वे कांग्रेस की पहली पसंद नहीं थे, लेकिन अन्य अनेक दलों ने उनका समर्थन कर दिया, तो कांग्रेस के पास कोई चारा नहीं था. मनमोहन सरकार के कार्यकाल में जब भी कोई राजनीतिक संकट आया, प्रणब दा तारणहार बने. वे यूपीए सरकार के दौरान संकट के हल के लिए गठित लगभग दो दर्जन मंत्रिमंडलीय समितियों के प्रमुख रहे.

हर संकट में कांग्रेस पार्टी उन्हीं की ओर देखती थी और वे अपने कौशल से हर संकट का समाधान निकाल लेते थे. उनका आदर सभी दलों के लोग करते थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उतना ही सम्मान करते हैं, जितना कांग्रेस का कोई अन्य बड़ा नेता. मोदी सरकार के दौरान ही उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया.

उनमें कई अद्भुत गुण थे. राष्ट्रपति भवन के कार्यक्रमों में मुझे अनेक बार जाने का अवसर मिला. मुझे उनके साथ जॉर्डन, इस्राइल, फिलीस्तीन और मॉरीशस की यात्रा का अवसर मिला. मॉरीशस में वे वहां के राष्ट्रीय दिवस के कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे. यात्राओं में वे पत्रकारों से खुल कर बात भी करते थे. ज्यादातर पत्रकार उन्हें प्रणब दा कह कर ही संबोधित करते थे. पत्रकारों से बातचीत में वे कोई प्रतिक्रिया नहीं देते थे, बस सुनते थे.

जॉर्डन, इस्राइल, फिलीस्तीन की यात्रा की कहानी दिलचस्प है. दरअसल, भारत इसके पहले तक इस्राइल के साथ अपने रिश्तों को दबा-छिपा कर रखता आया था. भारत फिलीस्तीनियों का बहुत करीबी दोस्त रहा है और फिलीस्तीनी राष्ट्र निर्माण के संघर्ष में उसने साथ दिया है., लेकिन अब फिलीस्तीनियों के लिए समर्थन लगातार कम होता जा रहा है. मौजूदा सच्चाई यह है कि इस्राइल भारत का सबसे भरोसेमंद साथी है.

भारत इस्राइल के साथ रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में ही नहीं, डेयरी, सिंचाई, ऊर्जा और कई तकनीकी क्षेत्रों में साझेदारी कर रहा है. दरअसल, पीएम मोदी का इस्राइल के प्रति झुकाव जगजाहिर है. वे वहां की यात्रा करना चाहते थे, लेकिन विदेश मंत्रालय मध्य पूर्व के देशों की प्रतिक्रिया को लेकर सशंकित था. काफी विमर्श के बाद यह तय हुआ कि राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी पहले यात्रा करेंगे. इससे प्रतिक्रिया का अंदाजा लगेगा, लेकिन प्रणब बाबू फिलीस्तीनी लोगों का साथ छोड़ने के पक्ष में नहीं थे.

उन्होंने स्पष्ट कर दिया था कि वे इस्राइल जायेंगे, लेकिन साथ ही रमल्ला, फिलीस्तीन भी जायेंगे. विदेश मंत्रालय ने काफी माथापच्ची के बाद जॉर्डन, फिलीस्तीन और इस्राइल का कार्यक्रम बनाया. यात्रा में मध्य पूर्व के एक देश जॉर्डन को भी डाला गया, ताकि यात्रा सभी पक्षों की नजर आए. वहां से चल कर हम लोग तेल अवीव, इस्राइल होते हुए रमल्ला, फिलीस्तीन क्षेत्र पहुंचे.

यह पूरा क्षेत्र अशांत है और आये दिन गोलीबारी होती रहती है, लेकिन प्रणब दा ने एक रात फिलीस्तीन क्षेत्र में गुजारने का कार्यक्रम बनाया. उनके साथ हम सब पत्रकार भी थे. फिलीस्तीन में हम लोग वहां के नेता और राष्ट्रपति महमूद अब्बास के मेहमान थे. किसी बड़े देश का राष्ट्राध्यक्ष पहली बार फिलीस्तीन क्षेत्र में रात गुजार रहा था. हमें बताया गया कि नेता हेलीकॉप्टर से आते हैं और बातचीत कर कुछेक घंटों में तुरंत उस क्षेत्र से निकल जाते हैं.

कोई नेता इस क्षेत्र में रात गुजारने का जोखिम नहीं उठाता. यहां होटल आदि भी कोई खास नहीं थे. हमें एक सामान्य से दो मंजिला होटल में ठहराया गया. ऊपरी मंजिल में राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और उनकी टीम और नीचे की मंजिल में हर सब पत्रकार ठहरे थे. फिलीस्तीन क्षेत्र में प्रणब बाबू गार्ड ऑफ ऑनर में भी शामिल हुए. अपने सम्मान में आयोजित रात्रि भोज में भी उन्होंने शिरकत की. अगले दिन फिलीस्तीन के अल कुद्स विश्वविद्यालय में उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया.

उसके बाद उनका भाषण था, लेकिन एक फिलीस्तीनी छात्र की इस्राइली सैनिकों की गोलीबारी में मौत के कारण वहां हंगामा हो गया. किसी तरह हम सभी यरुशलम, इस्राइल पहुंचे. यहां संसद को संबोधन से लेकर अनेक व्यस्त कार्यक्रमों में प्रणब मुखर्जी ने दमदार उपस्थिति दर्ज करायी. मेरा मानना है कि प्रणब मुखर्जी ने ही एक तरह से प्रधानमंत्री मोदी की इस्राइल यात्रा की नींव रखी थी.

दूसरी महत्वपूर्ण यात्रा मॉरीशस की थी, जिसमें प्रणब दा वहां के राष्ट्रीय दिवस में मुख्य अतिथि थे. मॉरीशस में बड़ी संख्या में भारतवंशी हैं और अधिकांश पूर्वांचली हैं. शिवसागर रामगुलाम एयरपोर्ट पर राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को 21 तोपों की सलामी दी गयी. उनकी अगवानी करने प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम पूरी कैबिनेट के साथ मौजूद थे. मॉरीशस की आबादी लगभग 12 लाख है. इसमें लगभग 70 फीसदी लोग भारतवंशी हैं.

इनमें बड़ी संख्या बिहार और पूर्वी उप्र के लोगों की है, जिन्हें गिरमिटया मजदूर कहा जाता है, लेकिन इन लोगों ने अपने आपको इस देश में स्थापित किया और सत्ता के शिखर तक पहुंचे. मॉरीशस के राष्ट्रपिता कहे जाने वाले सर शिवसागर रामगुलाम सन् 1968 में देश के पहले प्रधानमंत्री बने. मॉरीशस में उस दौरान दोनों महत्वपूर्ण पद भारतवंशियों के पास थे- प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम थे और राष्ट्रपति राजकेश्वर प्रयाग. भारत और मॉरीशस के राष्ट्रपतियों की मौजूदगी में आपसी सहयोग बढ़ाने के समझौतों पर हस्ताक्षर हुए.

भारत की ओर से समझौते पर हस्ताक्षर तत्कालीन केंद्रीय गृह राज्यमंत्री आरपीएन सिंह ने किये. इस दौरान सीमित संख्या में दोनों ओर के पत्रकार मौजूद थे. राष्ट्रपति के दौरे में अमूमन प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं होता है. इसमें भी नहीं थी. उस दौरान मॉरीशस के जरिये भारत में विदेशी निवेश की व्यवस्था पर अनेक सवाल उठ रहे थे. अचानक मॉरीशस का एक पत्रकार उठा और इसको लेकर सवाल पूछ लिया. आरपीएन सिंह आर्थिक विषयों के जानकार नहीं हैं. अचानक पूछे सवाल से अचकचा गये.

तब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी आगे आये. प्रणब बाबू भारत के वित्त मंत्री रहे थे. उन्होंने ऐसा सधा जवाब दिया कि वहां मौजूद लोगों ने उसका जोरदार तालियां से स्वागत किया. प्रणब बाबू के साथ यात्रा की एक और खासियत रहती थी. वे पत्रकारों से उनका हालचाल अवश्य पूछते थे. कई बार वे एक शब्द कहते थे- एन्जाय यानी मस्त रहिए. वे वापसी में प्रेस कॉन्फ्रेंस जरूर करते थे. इसमें किसी भी किस्म के सवाल पूछने की छूट रहती थी. ऐसे थे हमारे प्रणब बाबू, जिनसे हम सब बहुत कुछ सीख सकते हैं.

posted by : sameer oraon

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें