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सशक्त राष्ट्रवाद के नये प्रतीक

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राष्ट्रीय प्रतीक में शेरों की नयी आक्रामक छवि मोदी के बलवान भारत को प्रतिबिंबित करती है, जहां छद्म विनम्रता के लिए स्थान नहीं है. विभाजक लगने का जोखिम उठाते हुए किसी उद्देश्य के लिए भिड़ जाना अब सामान्य होता जा रहा है.

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कोई राष्ट्र अपने एक मुकाम पर तब पहुंचता है, जब इतिहास भविष्य के दिशानिर्देश के रूप में वर्तमान के साथ अतीत को सरलता से संबंधित करता है. भारत की सामूहिक स्मृति में हमारे इतिहास और उनके इतिहास के बीच युद्ध जारी है. इस संघर्ष ने व्यक्तिपरक राष्ट्रवाद और बलवान राष्ट्रवाद की परस्पर युद्धरत विचारधाराओं को जन्म दिया है. वर्ष 2014 में नरेंद्र मोदी का भारत का 15वां प्रधानमंत्री बनना एक निर्णायक मोड़ था.

तब से वे लगातार भारत की विरासत के व्यक्तिपरक विश्लेषण एवं प्रस्तुति को मिटाने तथा मुगल अत्याचार और औपनिवेशिक दासता के विरुद्ध भारत के संघर्ष को पुनर्स्थापित करने में जुटे हैं. इलियस कनेटी ने जन और अभिजन के अंतर को रेखांकित करते हुए लिखा है कि जन किसी विषय पर सहमत या असहमत होने के लिए एकजुट होते हैं, जबकि अभिजन किसी विषय पर सहमत या असहमत होते हैं, पर भिन्न कारणों से. मोदी युग ने नये भारतीय अभिजन को जन्म दिया है, जो भारत के दास अतीत के स्मृति चिह्नों को बर्दाश्त नहीं करता.

शहरों व संस्थाओं के नाम बदले जा रहे हैं. संस्कृति, कला, धर्म, समाज सेवा, यहां तक कि स्वाधीनता आंदोलन से भी नये प्रतीक निकाले जा रहे हैं, जो वर्तमान आख्यान के अनुरूप हैं. उनका अभियान स्पष्ट है- बहुलतावादी वर्तमान को असम्मानित अतीत में बहिष्कृत करना, ताकि पूर्ण स्थानिक की रचना हो सके.

पंथनिरपेक्षतावादियों के लिए भारत का वर्तमान और कांग्रेस की अवधारणा समांतर परिघटनाएं हैं. राष्ट्रवादी भारत के अतीत को संतों, समाज सुधारकों, कवियों, लेखकों और सदियों पूर्व मातृभूमि के लिए बलिदान देने वाले योद्धाओं के परिवेश के रूप में देखने की भाजपा की दृष्टि को साझा करते हैं. अतीत अब मोदी-प्रभावित प्रतिष्ठान की संपत्ति है, जो ठोस रूप से यह मानता है कि कांग्रेस व उसके सहयोगियों ने भारत को ऐसा क्षुद्र राष्ट्र बना दिया, जो विदेशियों से समर्थन व सहयोग चाहता है.

कांग्रेस की रूढ़ सोच में घातक कमी यह है कि राष्ट्रीय नेतृत्व नेहरू व गांधी परिवार की एकल संपत्ति थी. मोदी इस धारणा को बदलना चाहते हैं. वह मानते हैं कि उनके प्रमुख प्रतिद्वंद्वी ने विभाजन को स्वीकार कर भारत के भूगोल का संकुचन कर दिया है. इतना ही नहीं, उसने कांग्रेस के नेतृत्व में चले स्वतंत्रता संघर्ष की आत्मपरकता से अन्य सहभागियों को बहिष्कृत कर दिया.

बीते सप्ताह मोदी ने भारतीयों को याद दिलाया कि नेहरू-गांधी परिवार ने ब्रिटिश शासन का आक्रामक विरोध करने वाले बलवान राष्ट्रवादियों से स्वतंत्रता का श्रेय छीन लिया. भारत के सर्वाधिक लोकप्रिय सैन्य नेता सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा इंडिया गेट पर स्थापित हुई है. अपने निर्णयों को नेताजी के आदर्शों व सपनों से प्रभावित बताते हुए मोदी ने कहा कि नेताजी अखंड भारत के पहले प्रमुख थे, जिन्होंने 1947 से पूर्व अंडमान को स्वतंत्र कराया था.

अखंड भारत का उल्लेख ध्यान देने योग्य है, क्योंकि यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के व्यापक एशिया का विचार है. संघ परिवार देश के एकमात्र रक्षक होने के कांग्रेस के प्रचार के विरुद्ध लगा रहा है. सात दशकों पुराना रोष उस आख्यान के विरुद्ध है, जो छद्म उदारवाद, दासतापूर्ण पंथनिरपेक्षता और परिवार पूजा को बढ़ावा देता रहा है. भाजपा राजनीति व शासन के नेहरूवादी मॉडल को राष्ट्रीय मुख्यधारा से मिटाने में लगी है.

यह पटेल, सावरकर, आंबेडकर जैसे नेताओं को स्वीकार करने और बढ़ावा देने में जुटी है, ताकि वंशवादी राजनीतिक महामारी की रोकथाम हो सके. इसका जोर उन व्यक्तियों पर है, जिन्होंने कांग्रेस और मुगलों का विरोध किया था. बोस ऐसे ही एक विश्वसनीय प्रतीक हैं. आजाद हिंद फौज के संस्थापक को प्रतिष्ठित करना राजनीतिक रूप से सही कदम है, जो सैन्य राष्ट्रवाद को एक अर्थ देता है, जो विभाजन को रोक सकता था.

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी को चुनौती देने के लिए भाजपा को एक विचारधारात्मक प्रतीक चाहिए. मोदी ने 2018 से बोस को आक्रामक रूप से आगे रखना शुरू कर दिया था. अंतरिम आजाद हिंद सरकार की घोषणा की 75वीं वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री ने लाल किले पर तिरंगा फहराया था. आजाद हिंद फौज की टोपी पहने उन्होंने कांग्रेस पर तंज किया कि एक परिवार की भूमिका को आगे दिखाने के प्रयास में स्वतंत्रता आंदोलन में दूसरों के योगदान की अनदेखी की गयी, पर उनकी सरकार इसे बदल रही है.

सरकार ने बोस से जुड़े कई दस्तावेजों को सार्वजनिक भी किया. ये कदम संघ के इस विश्वास के अनुरूप है कि बोस उपनिवेशवाद के विरुद्ध सैन्य संघर्ष के सबसे शक्तिशाली अग्रदूत थे. बीते एक दशक में भाजपा ने कांग्रेस-पूर्व और मुगल युग के नायकों को आगे किया है, जो अब तक इतिहास की पाठ्य-पुस्तकों में कोने में उल्लिखित थे. शिवाजी ऐसे ही एक प्रमुख राष्ट्रीय आदर्श हैं. मोदी सरकार ने उन्हें राष्ट्रीय नायकों के साथ स्थापित किया और संस्थानों का नामकरण उनके नाम पर किया.

मार्च में पुणे में मोदी ने उनकी एक प्रतिमा का अनावरण किया. प्रधानमंत्री ने विमानवाहक युद्धपोत विक्रांत, जो आत्मनिर्भर भारत का रूपक है, के उद्घाटन के अवसर पर भारतीय नौसेना के नये प्रतीक चिह्न का भी उद्घाटन किया, जिसमें तत्कालीन मराठा राजशाही की अष्टकोणीय मुहर है. भारतीय नौसेना ने एक बयान में कहा है कि शिवाजी महाराज की राजमुद्रा इसलिए प्रेरक है, क्योंकि उन्होंने दूरदृष्टि के साथ ताकतवर नौसैनिक बेड़ा बनाया था. मोदी शिवाजी के अलावा झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को भी आगे कर रहे हैं. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले वह झांसी गये और वहां घोषणा की कि रानी की कर्मभूमि बुंदेलखंड को देश का एकमात्र रक्षा गलियारा बनाया जायेगा.

बिसरा दिये गये नायकों के वीरतापूर्ण बलिदान का कीर्तिगान कर भाजपा एक ऐसे भारत की छवि प्रस्तुत कर रही है, जो न तो झुकेगा और न ही रक्षात्मक है. सांस्कृतिक संस्थाओं और फिल्म उद्योग को भारतीय विरासत और नायकों को गौरवान्वित करने के लिए कहा जा रहा है. वृतचित्रों, किताबों और फिल्मों को सत्ता और इनके प्रशंसकों द्वारा उदारता से वित्तपोषित किया जा रहा है. राष्ट्रीय प्रतीक में शेरों की नयी आक्रामक छवि मोदी के बलवान भारत को प्रतिबिंबित करती है, जहां छद्म विनम्रता के लिए स्थान नहीं है.

विभाजक लगने का जोखिम उठाते हुए किसी उद्देश्य के लिए भिड़ जाना अब सामान्य होता जा रहा है. जब कांग्रेसी अपनी ढोल बजाते हुए देशभर में पदयात्रा कर रहे हैं, तब मोदी अपने युद्ध का नगाड़ा बजा रहे हैं, जो वे अभिलेखागारों और संग्रहालयों में कलात्मक रूप से संजो कर रखी गयीं इतिहास की भूलों के विरुद्ध लड़ रहे हैं.

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