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उड़ान में लापरवाही

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सर्वेक्षण में शामिल 66 फीसदी पायलटों ने बताया है कि वे सहयोगी चालक को जगाये बिना झपकी ले लेते हैं.

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चालक को नींद आने के कारण हुए सड़क हादसों की खबरें हम अक्सर सुनते-पढ़ते हैं. अगर हवाई जहाज के चालक को उड़ान के दौरान नींद आ जाए या वह झपकी ले ले, तब क्या हो सकता है? सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन के एक ताजा अध्ययन में बताया गया है कि भारत में दो-तिहाई पायलट झपकी लेते हैं. सर्वेक्षण में शामिल 66 फीसदी पायलटों ने बताया है कि वे सहयोगी चालक को जगाये बिना झपकी ले लेते हैं.

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भारत में उड़ान सेवाओं के लगातार विस्तार के कारण डेढ़ हजार तक नये पायलटों की दरकार होती है, लेकिन प्रशिक्षण केंद्रों की संख्या बहुत कम होने से यह मांग पूरी कर पाना संभव नहीं होता. इसके साथ ही, यह समस्या भी है कि जो 200 से 300 नये पायलट उपलब्ध होते हैं, वे समुचित रूप से प्रशिक्षित नहीं होते. ऐसी स्थिति में पायलटों को लगातार उड़ान भरना पड़ता है और वे थके होने के कारण झपकी लेने लगते हैं.

वैश्विक स्तर पर यह एक स्थापित तथ्य है कि पायलटों की थकान विमान दुर्घटनाओं के सबसे प्रमुख कारणों में एक है. वर्ष 1959 से 2016 के बीच जहाज के उतरने के दौरान 48 फीसदी घातक हादसे हुए थे. साल 2011 और 2015 के बीच यह आंकड़ा 65 फीसदी रहा था. इनमें से अधिकतर की वजह अस्थिर संचालन रही थी. बड़ी संख्या में पायलटों ने बताया है कि रात में ठीक से नहीं सो पाने के कारण दिन में वे ऊंघते रहते हैं. यदि इस समस्या पर त्वरित ध्यान नहीं दिया गया, तो कभी भी कोई हादसा हो सकता है.

सर्वेक्षण में शामिल लगभग एक-तिहाई पायलटों ने माना है कि थकान के कारण उनका जहाज दुर्घटनाग्रस्त होते-होते बचा है. पिछले कुछ महीनों में भारत में घरेलू उड़ानों को आपात स्थिति में उतारने के कई मामले सामने आये हैं. तकनीकी कारणों से उड़ान रद्द होने की कई घटनाएं हुई हैं. ऐसा भी हुआ है कि जहाज से उतरने के बाद निकास द्वार तक लोगों को पैदल आना पड़ा क्योंकि संबंधित एयरलाइन वहां बस नहीं भेज सकी.

नागरिक उड्डयन महानिदेशालय और केंद्रीय उड्डयन मंत्रालय की तरफ से कार्रवाई का आश्वासन तो दिया जाता है, पर कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आता है. कोरोना महामारी के दौरान उड्डयन सेवाएं ठप होने के कारण उड़ान कंपनियों को भारी घाटा हुआ है. ईंधन की कीमतों ने भी उन पर दबाव बढ़ाया है. ऐसे में वे जरूरी खर्चों में कटौती करने का आसान तरीका अपनाते हैं. विमानों के रखरखाव पर कम ध्यान दिया जाता है. दो उड़ानों के बीच ठीक से अंतराल नहीं रखा जाता. सरकार को समुचित निगरानी की नियमित व्यवस्था पर ध्यान देना चाहिए, अन्यथा कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है.

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