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छोटे शहरों के बच्चों की बड़ी छलांग

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आफताब और आंकाक्षा जैसे सैकड़ों नौजवान तमाम दिक्कतों और अवरोधों को पार कर सफलता की बुलंदियों को छू रहे हैं. इनमें अर्जुन-सी दृष्टि है.

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विवेक शुक्ला, वरिष्ठ पत्रकार

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vivekshukladelhi@gmail.com

पिछले दिनों नीट- 2020 परीक्षा के नतीजे आये. नतीजों से पता चलता है कि अब देश के छोटे शहरों और अपेक्षाकृत कम विकसित राज्यों के बच्चे लंबी छलांग लगा रहे हैं. नीट परीक्षा में दो विद्यार्थियों ने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ दिये. ओडिशा के शोएब आफताब और उत्तर प्रदेश के कुशीनगर की आकांक्षा सिंह ने 720 में से 720 अंक हासिल किये. यह महज उदाहरण है कि सफलता महानगर, बड़े या कुछ चुने हुए शहरों की बपौती नहीं है. छोटे तथा मझोले शहरों के युवा भी अब किसी से कमतर नहीं हैं. वे भी आगे बढ़ रहे हैं. उनके भी सपने हैं जिन्हें पूरा करने के लिए उनमें जबरदस्त जुनून है और कुछ कर गुजरने की प्यास भी.

बहुत पुरानी बात नहीं हैं जब दिल्ली, मुंबई और कुछ दूसरे बड़े शहरों के चंद एलिट स्कूलों तथा कॉलेजों के विद्यार्थी ही संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) तथा दूसरी खास परीक्षाओं में टॉप किया करते थे. वर्ष 2020 के यूपीएससी के परिणाम भी बहुत कुछ कहते हैं. इस परीक्षा में सोनीपत, हरियाणा के प्रदीप सिंह ने टॉप किया है. तीसरे स्थान पर सुल्तानपुर, यूपी की प्रतिभा वर्मा हैं.

पहले 25 स्थानों पर रहने वाले सफल परीक्षार्थी 11 राज्यों- दिल्ली, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश से हैं. यानी सफलता अब महानगरों या कुछ राज्यों के बच्चों तक ही सीमित नहीं रही है. आफताब और आंकाक्षा जैसे सैकड़ों नौजवान तमाम दिक्कतों और अवरोधों को पार कर सफलता की बुलंदियों को छू रहे हैं. इनमें अर्जुन-सी दृष्टि है.

ये जो भी सोचते हैं, उसे पूरा करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं. मेट्रो शहरों के बच्चों के विपरीत इन्हें अपने स्कूलों-कॉलेजों का सफर पूरा करने में घंटों नहीं लगते. यानी, मेट्रो या दूसरे बड़े शहरों के बच्चों की तुलना में इनके पास पढ़ने के लिए ज्यादा वक्त होता है. बेहतर अवसर मिलने का परिणाम यह हो रहा है कि वाल्मीकि समाज से आनेवाली डाॅ कौशल पंवार जैसी मेधावी लड़कियां भी दिल्ली विश्वविद्यालय में संस्कृत पढ़ा रही हैं. हरियाणा के कैथल के निर्धन वाल्मीकि परिवार से आनेवाली डाॅ कौशल कहती हैं कि यदि आप लक्ष्य निर्धारित कर लें, तो सफलता अवश्य मिलेगी.

केवल पढ़ाई ही नहीं बल्कि बिजनेस, सिनेमा और खेल में भी छोटे और मंझोले शहरों के बच्चे आगे आ रहे हैं. हो सकता है आपने फ्लिपकार्ट से कुछ सामान मंगवाया हो, पर क्या आपको पता है कि इसे चंडीगढ़ के सचिन बंसल और बिन्नी बंसल ने शुरू किया था. ये भारत की समूची स्टार्टअप बिरादरी के रोलमॉडल रहे हैं. हालांकि अब ये अपनी फर्म को अमेजन को बेच चुके हैं.

गुजरे कुछ वर्षों में आयुष्मान खुराना (चंडीगढ़), कपिल शर्मा (अमृतसर), प्रसून जोशी (अल्मोड़ा), महेंद्र्र सिंह धोनी (रांची), नवाजुद्दीन सिद्दीकी (मुजफ्फरनगर), रानी रामपाल (शाहबाद मारकंडा) समेत बीसियों छोटे और मझोले शहरों से संबंध रखने वाले नौजवानों ने बुलंदियों को छुआ है. खेलों की बात करें तो पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर के नौजवान सफलता की नयी इबारत लिख रहे हैं. मैरी कॉम ( मुक्केबाजी), मीराबाई चानू व संजीता चानू (भारोत्तोलन) देश-विदेश में उम्दा प्रदर्शन कर रही हैं. क्रिकेट से इतर खेलों जैसे फुटबॉल, मुक्केबाजी, हॉकी, वेटलिफ्टिंग में मणिपुर के खिलाड़ी देश को झोली भरकर पदक दिलवा रहे हैं.

कुछ वर्ष पहले भारत में खेली गयी फीफा अंडर-17 विश्वकप फुटबॉल चैंपियनशिप में 21 सदस्यीय भारतीय टीम में मणिपुर के आठ खिलाड़ी शामिल थे. ये सभी खिलाड़ी गरीब परिवारों से थे. इनमें से कइयों के माता-पिता के पास जूते खरीदने तक के पैसे नहीं थे. निर्धनता के बावजूद ये प्रतिभाशाली किशोर भारतीय टीम में जगह बना पाये. निश्चित रूप से रंग-बिरंगे फूलों वाले पौधों, दुर्लभ वनस्पतियों और हमेशा बहने वाली नदियों वाला मणिपुर खेल में देश के बाकी राज्यों के सामने उदाहरण प्रस्तुत कर रहा है.

आप मेरठ से लेकर ग्वालियर और बोकारो से लेकर धनबाद, पटना तक हो आइए, सभी जगह सुबह-शाम लड़के-लड़कियों को बैग उठाकर कॉलेज या कोचिंग सेंटरों में जाते हुए देखेंगे. इनके बीच बातें हो रही होती हैं आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं की, नयी किताबों की. सबसे खास बात, ये युवा अपने लक्ष्य को लेकर पूरी तरह केंद्रित हैं. इनके भीतर सफल होने की जिद है, आप देखेंगे कि आर्थिक उदारीकरण के बाद कोच्चि से लेकर सांगली तक में आर्थिक हलचल बढ़ी है. रोजगार के लिए यहां से लोग खाड़ी देशों और फिर यूरोप जाने लगे.

वहां से कमाकर वे अपने घर पैसे भेजने लगे. इसके चलते छोटे-मझोले शहरों में पैसा पहुंचने लगा. वहां कोचिंग सेंटर खुलने लगे. इससे वहां के नौजवानों को अपनी मंजिल को पाने के रास्ते मिलने लगे. एक बार भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान रानी रामपाल ने कहा था कि यदि वे छोटे शहर से ना होतीं तो शायद उनके भीतर कुछ कर गुजरने का इस तरह का जज्बा न होता. हरियाणा के छोटे से शहर शाहबाद मारकंडा ने उनमें कुछ कर गुजरने की आग पैदा की.

यहां बहस छोटे शहर बनाम बड़े या मेट्रो के बीच नहीं है. पर, इतना जरूर है कि अब छोटे शहरों के सपने छोटे नहीं रहे. इन बच्चों के सपनों को हकीकत में बदलने में माता-पिता, अभिभावक भी दिन-रात एक कर रहे हैं. वे अपने सारे संसाधन और सुख अपने बच्चों के लिए कुर्बान कर रहे हैं. नीट टॉपर आफताब की मां उनके साथ कोटा में रहती थीं, ताकि वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे सके. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

postes by : pritish sahay

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