28.1 C
Ranchi
Wednesday, February 12, 2025 | 02:46 pm
28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

शासन संरचना में बदलाव की जरूरत

Advertisement

नयी दिल्ली नगर निगम लुटियन सत्ता केंद्र का प्रबंधन करता है, जहां प्रधानमंत्री, शीर्षस्थ नौकरशाह, धनिक और विख्यात लोग रहते हैं.

Audio Book

ऑडियो सुनें

प्रभु चावला, एडिटोरियल डायरेक्टर, द न्यू इंडियन एक्सप्रेस

prabhuchawla@newindianexpress.com

सत्रहवीं सदी के नाटककार जॉर्ज चैपमैन ने कानून को गदहे की उपमा दी थी, लेकिन भारतीय लोकतंत्र के बेतुके रंगमंच पर कानून को आप कोई भी संज्ञा दे सकते हैं. कुछ दिन पहले संसद द्वारा पारित दिल्ली के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार कानून में संशोधन ने कानून के अर्थ और उसकी भावना से संबंधित पुरानी बहस को फिर चर्चा में ला दिया है. भाजपा के नेतृत्ववाली केंद्र सरकार ने दिल्ली सरकार की परिभाषा में गड़बड़ी को ठीक करने का दावा किया है.

छह साल से इस केंद्रशासित प्रदेश पर शासन कर रही आप ने अपने चिर शत्रु पर निर्वाचित सरकार को पंगु करने का आरोप लगाया है. अभी तक यह खींचतान संचिकाओं और अदालतों तक सीमित रही है. कानून के अर्थ और उसकी भावना के बीच तनातनी का दिल्ली विशिष्ट उदाहरण है. निर्वाचित शासक लिखित संविधान की शपथ लेते हैं, पर अक्सर उसकी भावना की अवहेलना करते हैं. लिखित की व्याख्या पर सामाजिक, राजनीतिक और नैतिक आम सहमति के निर्माण में ही भावना निहित होती है.

किसी भी कानूनी आधार पर दिल्ली के मुख्यमंंत्री के पास वैसी शक्तियां नहीं हो सकती हैं, जो दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों को प्राप्त हैं. यह एक केंद्रशासित प्रदेश से संबंधित कानून की भावना है. भाजपा के अनुसार, महत्वपूर्ण मामलों में उपराज्यपाल को नजरअंदाज कर केजरीवाल को उनके अधिकारों की परवाह न करने की आदत है. यह लड़ाई सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंची थी, जिसने यह कहते हुए मुख्यमंत्री के पक्ष में निर्णय दिया था कि उपराज्यपाल को आवंटित विषयों के अलावा अलग से शक्तियां हासिल नहीं हैं.

अदालत ने स्पष्ट किया था कि मंत्रिपरिषद के निर्णय से उपराज्यपाल को अवश्य अवगत कराया जाना चाहिए, लेकिन उनकी अग्रिम मंजूरी आवश्यक नहीं है. अब नये कानून के तहत दिल्ली सरकार को यह बाध्यता होगी. प्रभुता की यह लड़ाई फिर अदालत पहुंचेगी. चूंकि दिल्ली की प्रशासनिक संरचना का निर्धारण पचास साल के बाद भी होना बाकी है, सो यह तनातनी जल्दी समाप्त भी नहीं होगी क्योंकि दांव पर राजनीति है, बेहतर शासन नहीं.

दिल्ली देश का सबसे बड़ा शहर है. प्रति व्यक्ति आय के मामले में यह दूसरे स्थान पर है. यह सर्वाधिक प्रदूषित महानगरों में भी शुमार है. इसकी दो-तिहाई आबादी समुचित जल और स्वच्छता के बिना अनधिकृत बस्तियों और झुग्गियों में बसती है. प्रशासकीय निकायों की बहुलता ने शहर को अनाथ बना दिया है. नगर प्रशासन की जिम्मेदारी तीन नगर निगमों की है. उपराज्यपाल के जरिये कानून-व्यवस्था गृह मंत्रालय के अधीन है. जमीन का प्रबंधन दिल्ली विकास प्राधिकरण के द्वारा होता है, जो केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय से नियंत्रित है.

प्राधिकरण को दो दशक की योजना के बीस फीसदी हिस्से को पूरा करने में चालीस साल लगते हैं. नयी दिल्ली नगर निगम लुटियन सत्ता केंद्र का प्रबंधन करता है, जहां प्रधानमंत्री, शीर्षस्थ नौकरशाह, धनिक और विख्यात लोग रहते हैं. दिल्ली को एक जवाबदेह और पारदर्शी शासन व्यवस्था की आवश्यकता है. नयी और अलग स्थितियां कानून और उसकी भावना में न्यायपूर्ण संतुलन साध सकती हैं.

एक स्थिति यह हो सकती है कि केंद्र दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का जोखिम ले, जहां मुख्यमंत्री का पूरा नियंत्रण हो. राज्य सरकार का जमीन, पुलिस और अखिल भारतीय सेवाओं पर पूरा अधिकार हो. महत्वपूर्ण विभागों में कार्यरत आइएएस और आइपीएस अभी मुख्यमंत्री के प्रति जवाबदेह नहीं हैं. संघीय स्वायत्तता के बाद राज्य सरकार किसी और को अपनी असफलताओं के लिए दोष नहीं दे सकेगी. यदि विकास प्राधिकरण जमीन न दे, तो दिल्ली सरकार नये अस्पताल, कॉलेज या स्कूल भी नहीं खोल सकती है.

केंद्र भारी खर्च से सेंट्रल विस्टा बना सकता है, पर शहर को राहत देने के लिए राज्य सरकार एक नयी सड़क भी नहीं बना सकती है. यदि राज्य सरकार को पुलिस का जिम्मा देने में सुरक्षा का जोखिम हो, तो उसे कम-से-कम यातायात और भूमि प्रबंधन का काम दिया जा सकता है. यदि दिल्ली को टोक्यो, वाशिंग्टन, लंदन आदि राजधानियों की तरह विकसित होना है, तो उसे वैसे अधिकार भी मिलने चाहिए. हठी सरकार को नियंत्रित करने के लिए केंद्र के पास राज्यपाल के इस्तेमाल का विकल्प होगा ही.

दूसरी स्थिति यह हो सकती है कि एक निर्वाचित सरकार को पंगु बनाने की जगह केंद्र सीधे दिल्ली का शासन चलाये और विधानसभा और नगर निगमों को भंग कर दे, जो भ्रष्टाचार के अड्डे हैं. गृह मंत्रालय लाल फीताशाही रोकने, जिम्मेदारी बांटने, बहुत सारे प्रशासकों को हटाने तथा जवाबदेही और स्पष्टता सुनिश्चित करने के लिए एक स्थायी प्रशासक की नियुक्ति कर सकता है. केंद्र द्वारा मुहैया कराये गये उदार वित्तीय सहयोग से राजधानी को स्मार्ट सिटी में बदला जा सकता है. इससे दिल्ली को त्रिशंकु स्थिति से छुटकारा मिलेगा.

भाजपा का एक हिस्सा मानता है कि कुछ समय के लिए केंद्र से नियंत्रित व्यवस्था फायदेमंद हो सकती है, पर लंबी अवधि में दिल्ली शासन में सहभागी भूमिका से वंचित हो जायेगी. अभी वे इसलिए केंद्र सरकार के नियंत्रण का समर्थन कर रहे हैं क्योंकि उनकी पार्टी निकट भविष्य में आप सरकार को हराने या हटाने में अक्षम है. साल 2014 में लोकसभा की सभी सात सीटें जीतने के एक साल बाद वह 70 विधानसभा सीटों में केवल तीन जीत सकी और शेष आप के खाते में गयीं, जिसे 54 प्रतिशत से अधिक मत मिले थे.

साल 2019 में ऐसा ही हुआ, लेकिन 2020 में आप को आठ सीटों पर ही हरा सकी. अपनी सरकार को पंगु बनाने के पीछे आप एक षड्यंत्र देख रही है कि उसे अगले चार साल काम न करने दिया जाए. लेकिन स्थानीय भाजपा नेतृत्व की स्थिति ऐसी है कि वे घायल केजरीवाल को सांकेतिक चुनौती देने में भी सक्षम नहीं है.

केजरीवाल को खुद नुकसान करने देने और नेतृत्व क्षमता विकसित करने के बजाय भाजपा एक नकारात्मक राह पर अग्रसर है. उसे एक भरोसेमंद वैकल्पिक नेतृत्व तथा कानून की जीवंत भावना का पालन करनेवाले लोकतांत्रिक सांस्थानिक प्रारूप से दिल्ली को रिझाने की कोशिश करनी चाहिए. वैसा नेतृत्व कभी उसके पास हुआ करता था. एक निर्वाचित सरकार एक अनिर्वाचित नौकरशाह के अधीन नहीं हो सकती है.

(ये लेखक के िनजी विचार हैं़)

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें