18.4 C
Ranchi
Wednesday, February 12, 2025 | 02:36 am
18.4 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

जयंती विशेष : हरित क्रांति के जनक थे एमएस स्वामीनाथन

Advertisement

तमिलनाडु स्थित कुंभकोणम में 1925 में आज ही के दिन जन्मे एमएस स्वामीनाथन का पूरा नाम मनकोंबु संबाशिवन स्वामीनाथन है. उनके पिता थे एमके संबाशिवन और माता थीं पार्वती थंगम्मल. पेशे से डॉक्टर रहे पिता के पुत्र स्वामीनाथन ने कुंभकोणम में शुरुआती शिक्षा के बाद तिरुवनंतपुरम के यूनिवर्सिटी कॉलेज, कोयंबटूर के कृषि कॉलेज (तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय) और केरल विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की.

Audio Book

ऑडियो सुनें

MS Swaminathan : आइए, एक प्रश्न से बात शुरू करें- 1960 के दशक के आखिरी दौर में पंजाब से शुरू हुई हरित क्रांति, जिसे तीसरी कृषि क्रांति भी कहा जाता है, नहीं हुई होती और किसान खेती के पारंपरिक तौर-तरीकों के मोहताज बने रहकर नयी प्रौद्योगिकी के जाये कृषि यंत्रों, उन्नत बीजों, रासायनिक उर्वरकों व कीटनाशकों वगैरह से अपरिचित तथा सूखा, बाढ़ व चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं/दुर्घटनाओं के विरुद्ध संरक्षण से वंचित रहकर पुरानी लकीरों के ही फकीर बने रहते तो क्या होता? क्या आज हम अपनी विशाल जनसंख्या के दोनों जून के भरपेट भोजन का इंतजाम कर पाते? नहीं. आयात की मार्फत इंतजाम करने चलते तो उसकी बहुत बड़ी कीमत चुकाते. हमारे लिए वह खाद्यान्न आत्मनिर्भरता तो सपना होती ही, जो आज हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीक बनी हुई है, वह खाद्य सुरक्षा सपने में भी मयस्सर नहीं होती, जो कानूनी तौर पर भी हासिल है.


दरअसल, इस प्रश्न-उत्तर से गुजरे बगैर हम अपने समय के सबसे प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिकों में से एक एमएस स्वामीनाथन की स्मृतियों से ठीक से न्याय नहीं कर सकते. न ही हरित क्रांति के सपने को साकार करने के लिए उनके द्वारा किये गये अप्रतिम योगदान को ही ठीक से रेखांकित कर सकते हैं. ‘हरित क्रांति के जनक’ कहलाने वाले एमएस स्वामीनाथन का व्यक्तित्व इतना बहुआयामी है कि उनके योगदान को इस एक क्रांति को जन्म देने तक ही सीमित नहीं किया जा सकता. हम जानते हैं कि 2004 में देश के किसानों की स्थिति जानने के लिए राष्ट्रीय किसान आयोग बनाया गया, तो स्वामीनाथन को उसका प्रमुख बनाया गया था.

इस आयोग ने दो वर्षों के कार्यकाल में तत्कालीन केंद्र सरकार को जो रिपोर्टें सौंपीं, उन्हें बाद में उनके ही नाम पर स्वामीनाथन रिपोर्ट कहा जाने लगा. इन रिपोर्टों में किसानों की दशा सुधारने के लिए कई महत्वपूर्ण उपाय सुझाये गये और कई सिफारिशें की गयी थीं. परंतु जो सिफारिश सबसे अधिक चर्चित हुई, वह फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य से संबंधित थी. इसमें कहा गया था कि किसानों को उनकी फसलों की उत्पादन लागत में 50 प्रतिशत लाभ मिलाकर न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलना चाहिए. अफसोस की बात है कि इस सिफारिश पर अमल का मामला अभी तक राजनीति के पचड़े में और दावों-प्रतिदावों के बीच फंसा हुआ है तथा इसे लेकर किसान प्रायः आंदोलित होते रहते हैं.


तमिलनाडु स्थित कुंभकोणम में 1925 में आज ही के दिन जन्मे एमएस स्वामीनाथन का पूरा नाम मनकोंबु संबाशिवन स्वामीनाथन है. उनके पिता थे एमके संबाशिवन और माता थीं पार्वती थंगम्मल. पेशे से डॉक्टर रहे पिता के पुत्र स्वामीनाथन ने कुंभकोणम में शुरुआती शिक्षा के बाद तिरुवनंतपुरम के यूनिवर्सिटी कॉलेज, कोयंबटूर के कृषि कॉलेज (तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय) और केरल विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त की. अनंतर, कैंब्रिज विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट किया. जीवन के युद्ध में उतरे, तो दो कृषि मंत्रियों- सी सुब्रमण्यम और बाबू जगजीवन राम- के साथ मिलकर देश में हरित क्रांति की अगुवाई की जिम्मेदारी निभायी. उन दिनों देश खाद्यान्नों के विकट अभाव से जूझ रहा था और कई बार संकट की घड़ी में अपमानजनक शर्तों पर उनके आयात को विवश होता था.

देश के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री ने अपने प्रधानमंत्रीकाल में ऐसे ही कठिन वक्त में लोगों से एक वक्त का भोजन छोड़ने और सप्ताह में एक दिन उपवास रखने का आह्वान किया था. ऐसे में इस क्रांति ने रसायन-जैविक तकनीक के उपयोग के रास्ते चलकर धान व गेहूं के उत्पादन में भारी वृद्धि के साथ खाद्यान्न के मामले में हमारी आत्मनिर्भरता का रास्ता साफ किया. स्वामीनाथन भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक (1961-1972), आइसीएआर के महानिदेशक और कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग के सचिव (1972-79) और कृषि मंत्रालय के प्रधान सचिव (1979-80) रहे. वे वर्ष 2007 से 2013 तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे.


वर्ष 1987 में उन्हें कृषि के क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार माना जाने वाला प्रथम विश्व खाद्य पुरस्कार प्राप्त हुआ. अमेरिकी नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कृषि वैज्ञानिक डॉ नॉर्मन बोरलॉग द्वारा शुरू किये गये इस पुरस्कार के सम्मान पत्र में हरित क्रांति के जन्मदाता के रूप में उनकी भूमिका की भरपूर सराहना की गयी. ज्ञातव्य है कि 1960 के दशक में डॉ बोरलॉग द्वारा भारत व पाकिस्तान को अन्न के अकाल से उबारने के लिए शुरू की गयी वैज्ञानिक पहलों में स्वामीनाथन उनके प्रमुख सहयोगी हुआ करते थे. स्वामीनाथन को कृषि क्षेत्र के छोटे-बड़े 40 से अधिक पुरस्कार प्राप्त हुए. जिनमें शांति स्वरूप भटनागर, रेमन मैग्सेसे और अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार भी शामिल हैं. उन्हें पद्मश्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण के साथ 1924 में मरणोपरांत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया जा चुका है. वर्ष 2023 के 28 सितंबर को चेन्नई में उन्होंने 98 वर्ष की आयु में अंतिम सांस ली.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें