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मिथुन चक्रवर्ती को दादा साहब फाल्के सम्मान

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मिथुन दा के फिल्मी सफर को बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार एवं फिल्म समीक्षक प्रदीप सरदाना

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इस बार संभावना जतायी जा रही थी कि प्रतिष्ठित दादा साहब फाल्के सम्मान दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र को मिलेगा. लेकिन धर्मेंद्र का नाम पीछे रह गया. सरकार ने मिथुन चक्रवर्ती को फाल्के पुरस्कार देने कि घोषणा कर दी है. उल्लेखनीय है कि पिछले 65 बरस से फिल्मों में सक्रिय धर्मेंद्र को फाल्के पुरस्कार देने के संबंध में पिछले 10 बरस में सात बार विचार हो चुका है. हालांकि मिथुन चक्रवर्ती को फाल्के सम्मान मिलना किसी भी तरह से गलत नहीं है. वे भी पिछले 50 बरसों से फिल्मों में काम कर रहे हैं. फिल्म उद्योग को उन्होंने बहुत योगदान दिया है. लेकिन धर्मेंद्र का नाम और काम मिथुन से कहीं ज्यादा है. उनका नाम हर बार रह जाना कुछ आहत करता है. फिल्मों में उनसे बाद आये अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना और रजनीकांत को फाल्के सम्मान मिल चुका है, लेकिन धर्मेंद्र को निर्णायक मंडल न जाने कम करके क्यों आंकता है! यदि उन्हें अभी भी यह सम्मान नहीं मिला, तो कब मिलेगा? वे अब 89 बरस के हो गये हैं. अभी तक वह काफी स्वस्थ हैं. फाल्के सम्मान कलाकारों को समय रहते मिल जाए, तो अच्छा है. प्राण और शशि कपूर को यह सम्मान तब मिला था, जब वे पुरस्कार ग्रहण करने के लिए दिल्ली आने की स्थिति में नहीं थे. इसलिए तत्कालीन सूचना प्रसारण मंत्रियों ने मुंबई में उनके घर जाकर यह सम्मान प्रदान दिया था.
बहरहाल, मिथुन दा को भारतीय सिनेमा के इस शिखर सम्मान मिलने का स्वागत है. मिथुन मुश्किल भरी जिंदगी में संघर्ष करके इस मुकाम तक पहुंचे हैं. अपने फिल्म करियर में वे दो ऐसे अनुपम आयाम बना चुके हैं, जहां अभी तक कोई और नहीं पहुंच सका है. एक, वे ऐसे अकेले अभिनेता हैं, जिन्हें अपनी पहली फिल्म ‘मृगया’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला, तथा दूसरा, 1989 में मिथुन ने एक साल में ही 19 फिल्में करके ऐसा रिकॉर्ड बनाया, जो लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज हुआ. मिथुन चक्रवर्ती की एक और बात प्रेरित करती है कि इंसान में हिम्मत है, तो वह अपनी खराब जिंदगी से निकलकर एक नयी और शानदार जिंदगी जी सकता है. कोलकाता के बसंत कुमार और शांति रानी के यहां 16 जून 1950 को जन्मे मिथुन का वास्तविक नाम गौरांग चक्रवर्ती था. स्कॉटिश कॉलेज, कोलकाता से विज्ञान में स्नातक गौरांग युवा अवस्था में कदम रखते ही नक्सली आंदोलन से जुड़ गये. अपना घर बार छोड़ जब वह कट्टर नक्सली बने, तब शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यह युवक भारतीय सिनेमा का एक बेहद लोकप्रिय अभिनेता बनेगा. लेकिन उनके इकलौते भाई के निधन के बाद गौरांग की जिंदगी बदल गयी. घर की आर्थिक स्थिति देख वे घर लौट आये.
तभी उन्हें फिल्मों में काम करने का शौक जागा और वे पुणे फिल्म संस्थान में पढ़ने चले गये. वहां उन्हें फिल्मकार मृणाल सेन ने देखा, तो अपनी फिल्म ‘मृगया’ के लिए पसंद कर लिया. लेकिन फिल्म की शूटिंग शुरू होने में अभी समय था. इसलिए मुंबई पहुंचने पर मिथुन को काफी संघर्ष करना पड़ा. वे कई बार भूखे रहे, फुटपाथ पर सोये. बाद में 1976 में ‘मृगया’ प्रदर्शित हुई, तो भारतीय सिनेमा में मिथुन चक्रवर्ती के रूप में एक नये और अच्छे अभिनेता का उदय हो गया. लेकिन मिथुन की जिंदगी में खूबसूरत मोड़ 1982 में ‘डिस्को डांसर’ के प्रदर्शित होने पर आया. इस फिल्म के बाद मिथुन ऐसे रॉक स्टार बन गये कि उनका नाम रूस तक गूंज पड़ा. रूस में राज कपूर की बरसों से धूम थी, लेकिन वहां मिथुन भी पहुंच गये.
मिथुन ने अपने करियर में हिंदी, बांग्ला, उड़िया, भोजपुरी और तमिल में लगभग 350 फिल्में की हैं, जिनमें 200 फिल्में फ्लॉप रहीं या औसत ही चल सकीं. लेकिन ‘घर एक मंदिर’, ‘प्यार झुकता नहीं’, ‘सुरक्षा’, ‘अग्निपथ’, ‘हाउसफुल-2’, ‘ओएमजी’, ‘गुरु’, ‘गोलमाल-3’ और ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ तक ऐसी कितनी ही फिल्में हैं, जिनके कारण मिथुन आज भी सिनेमा के स्टार बने हुए हैं. कभी उन्हें कम बजट की फिल्मों का अमिताभ बच्चन कहा जाता था. ‘मृगया’ के बाद उन्हें ‘ताहेदार कथा’ (1992) और ‘स्वामी विवेकानंद’ (1998) के लिए भी राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. इसी वर्ष वे पद्मभूषण से भी सम्मानित हो चुके हैं. फिल्मों में अभिनय के साथ मिथुन दा समाज सेवा में भी आगे रहे. साथ ही, ऊटी में फिल्म और होटल के व्यवसाय में भी. वे फरवरी 2014 में तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य बन राजनीति में भी आये, लेकिन दिसंबर 2016 में वे राज्यसभा की सीट से त्यागपत्र देकर मार्च 2021 में भाजपा के सदस्य बन गये. मिथुन की पत्नी योगिता बाली सत्तर और अस्सी के दशक में लोकप्रिय अभिनेत्री रही हैं. इनके चार बच्चे हैं, जिनमें दो बेटे- मिमोह और ऊष्मय- फिल्मों में आये, पर उन्हें सफलता नहीं मिली. उम्मीद है कि 74 वर्षीय मिथुन आगे भी शानदार फिल्में देते रहेंगे.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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