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मानसिक स्वास्थ्य महत्वपूर्ण

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Mental Health : विशेषज्ञों का मानना है कि सोशल मीडिया का प्रभाव एक बड़ा कारक बन गया है. दूसरों की जीवनशैली को देखकर बहुत से लोगों में हीन भावना पनप सकती है.

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Mental Health : हमारे देश में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं निरंतर गंभीर होती जा रही हैं. सबसे अधिक चिंताजनक यह है कि युवाओं में अवसाद और व्यग्रता बढ़ रही है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़े बताते हैं कि मई, 2020 में 18 से 24 साल की आयु के 9.3 प्रतिशत लोगों ने अवसाद और व्यग्रता के लक्षणों को महसूस किया था. मार्च, 2022 आते-आते यह आंकड़ा लगभग दुगुना होकर 16.8 प्रतिशत हो गया. स्थिति कितनी विकट होती जा रही है, इसका अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि पिछले साल इस आयु वर्ग के लगभग 25 प्रतिशत युवाओं में अवसाद के लक्षण पाये गये तथा करीब 30 प्रतिशत व्यग्रता से ग्रस्त हैं.

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आत्महत्या से युवाओं की मौतों की संख्या भी साल-दर-साल बढ़ रही है. भारत की जनसंख्या का बहुत बड़ा हिस्सा युवा है और इसी पर देश का वर्तमान एवं भविष्य टिका हुआ है. पढ़ाई-लिखाई से लेकर कामकाज तक लगातार बढ़ते दबावों के साथ सामंजस्य स्थापित करना युवाओं के लिए चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है. सोशल मीडिया, ऑनलाइन गतिविधियों तथा सूचनाओं के अंतहीन अंबार ने स्थिति को जटिल बना दिया है. मानसिक स्वास्थ्य का मसला अब व्यक्ति तक सीमित नहीं है. इसके व्यापक प्रभाव को देखते हुए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है. सबसे पहले तो समस्या के मूल कारणों की पहचान और पड़ताल जरूरी है.

विशेषज्ञों का मानना है कि सोशल मीडिया का प्रभाव एक बड़ा कारक बन गया है. दूसरों की जीवनशैली को देखकर बहुत से लोगों में हीन भावना पनप सकती है. साइबर बुलिंग, ट्रोलिंग, गैर-जरूरी जानकारियां भावनात्मक रूप से बेहद नुकसानदेह हो सकती हैं. सोशल मीडिया की लत रोजमर्रा के अनुशासन को चोट पहुंचाती है. शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में गलाकाट प्रतिस्पर्धा तथा विकल्पों के अभाव से युवा आबादी जूझ रही है.

बड़ी संख्या में छात्र अपने घर-परिवार से दूर कम संसाधनों में जीते-रहते हुए अच्छी पढ़ाई और नौकरी के सपने को साकार करने में जुटे रहते हैं. हालांकि मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित परामर्श और सहायता के लिए व्यवस्थाएं बढ़ रही हैं, पर अभी भी ये सर्वसुलभ नहीं हैं. चाहे शारीरिक समस्या हो या मानसिक, यदि उसका पता प्रारंभ में चल जाए और परामर्श लेने की प्रक्रिया शुरू हो जाए, तो समाधान आसान हो जाता है. अनेक अध्ययनों में पाया गया है कि समस्या का अहसास होने के बाद भी लोग चिकित्सकीय सहायता या मनोवैज्ञानिक परामर्श लेने से कतराते हैं. इसकी एक बड़ी वजह है सामाजिक पूर्वाग्रह. इससे मुक्त होने की आवश्यकता है. युवाओं को मदद लेने में हिचकिचाना नहीं चाहिए. मानसिक स्वास्थ्य के बारे में व्यापक जागरूकता का प्रसार भी आवश्यक है.

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