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भगवान महावीर के संदेशों को सुने विश्व

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भगवान महावीर ने ‘महावीर’ शब्द की बड़ी अच्छी परिभाषा दी है. उन्होंने बताया है कि जो स्वयं को जीत ले, वही महावीर है. दुनिया को जीतने वाले सिकंदर बहुत मिल जायेंगे, पर अपने को जीतो.

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प्रो वीर सागर जैन

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जैन दर्शन विभाग, श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय

आज विश्व हिंसा, आतंकवाद और युद्ध से जूझ रहा है. आज पर्यावरण के संकट का सघन दौर भी है. मनुष्य ढेरों मानसिक समस्याओं से घिरा हुआ है. चारों ओर भ्रष्टाचार है. ऐसी विकट स्थिति में भगवान महावीर के संदेशों का महत्व पहले से कहीं अधिक है. अगर उनके उपदेशों को अपनाया जाए, उसके अनुरूप आचरण किया जाए, तो देश-दुनिया में शांति स्थापित हो सकती है. भगवान महावीर ने कहा कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वनस्पति इत्यादि भी जीव हैं. इसलिए मनुष्य इनकी भी रक्षा करे.

उन्होंने रात्रि में भोजन की मनाही की थी. आज रात में भोजन की वजह से बहुत-सी बीमारियां पैदा गयी हैं. हम पानी छान कर पिएं, यह शिक्षा भगवान महावीर ने ढाई हजार साल पहले दी थीं. आज विज्ञान कह रहा है कि पानी शुद्ध पियो. तो, भगवान महावीर की प्रासंगिकता इसलिए भी है कि उन्होंने हमें खान-पान की शुद्धि का संदेश दिया. उन्होंने कहा, सूक्ष्म जीवों को भी नुकसान मत पहुंचाओ. यह उनका संदेश है- शराब और नशे से बचो.

आज हमारे समाज में नशा कितनी बड़ी समस्या है, हम सब जानते हैं. आज जो कोरोना महामारी आयी, वह मांसाहार के कारण आयी. इस दौर में समस्त विश्व ने यह देख लिया कि भगवान महावीर के संदेश कितने प्रासंगिक हैं. भगवान महावीर के संदेशों के व्यापक प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है. इसके लिए बड़ी मात्र में साहित्य सृजन और वितरण पर ध्यान देना चाहिए.

गोष्ठियों एवं सम्मेलनों के माध्यम से उनके उपदेशों और उनके महत्व पर विचार-विमर्श कराना चाहिए. समाचार पत्रों, पत्रिकाओं और अन्य संचार माध्यमों को भी इसमें अधिक योगदान करना चाहिए. उन्हें भगवान महावीर के संदेशों और प्रसंगों को अधिक से अधिक प्रकाशित और प्रसारित करना चाहिए. आज ऐसा नहीं हो रहा है.

अन्य महापुरुषों और दिव्य लोगों के भी ऐसे ही संदेश और ऐसी ही शिक्षा दी है. उनके संदेशों और उपदेशों को भी व्यापक स्तर पर प्रचारित-प्रसारित किया जाना चाहिए, किंतु भगवान महावीर के दर्शन और उपदेश इस संदर्भ में अधिक प्रासंगिक और सुगमता से ग्राह्य हैं. इसलिए उन्हें समाज के बीच अधिक-से-अधिक प्रसारित किया जाना चाहिए.

भगवान महावीर का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है स्यादवाद. इसका आशय यह है कि आप किसी के विचारों से टकराएं नहीं. सभी का अपना-अपना दृष्टिकोण है. उन्होंने समन्वय की बात कही. इसे अपनाया जाए, तो आज की बहुत-सी समस्याएं और विवाद आदि सुलझ जायेंगे. इन विचारों को लोगों तक ले जाकर ही हम बेहतर समाज का निर्माण कर सकेंगे.

भगवान महावीर ने ‘महावीर’ शब्द की बड़ी अच्छी परिभाषा दी है. उन्होंने बताया है कि जो स्वयं को जीत ले, वही महावीर है. उन्होंने कहा, दुनिया को जीतने वाले सिकंदर बहुत मिल जायेंगे, पर अपने को जीतो. हम अपने भीतर तमाम तरह के दोष धारण किये रहते हैं. उनके निवारण के लिए हम प्रयास नहीं करते. यहां आदमी लाचार हो जाता है. उन्होंने विरोधी से प्रेम करना सीखने का उपदेश दिया है. यह संसार का सबसे कठिन कार्य है.

जिससे हमारे मतभेद हैं, उसे हम तबाह कर देना चाहते हैं. इसीलिए हर जगह हिंसा और कटुता का वातावरण है. भगवान महावीर के संदेश इस के समाधान में सबसे उपयुक्त हैं. हमें उन्हें जानने-समझने का प्रयास करना चाहिए. ऐसा करना कोई मुश्किल काम नहीं है. भगवान महावीर के संदेशों को आगे बढ़ाने में जैन समाज और संगठनों का बड़ा उत्तरदायित्व है. भगवान महावीर से संबंधित और अन्य धार्मिक आयोजन में भोजन, शोभा-यात्रा जैसे कार्यक्रम के साथ-साथ उनके जीवन और सिद्धांतों पर आधारित कार्यक्रम भी होने चाहिए.

जयंती और निर्वाण के अवसर पर व्याख्यान के कार्यक्रमों में पुस्तिकाओं का भी वितरण होना चाहिए, बौद्धिक लोगों को बुलाया जाना चाहिए और भगवान महावीर के सिद्धांतों को इनके माध्यम से समाज के सभी वर्गों में प्रसारित-प्रतिष्ठित किया जाना चाहिए. इन आयोजनों में भगवान महावीर के विचारों पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए. जैन समाज के बच्चों को भगवान महावीर के संदेशों से अवगत कराना चाहिए. इसके लिए सरल साहित्य और कक्षाओं का आयोजन हो सकता है.

जो लोग भगवान महावीर के संदेशों को जानना-समझना चाहते हैं, उनके लिए विशेष व्यवस्था की आवश्यकता है. ये सारे काम जरूर करने चाहिए. भगवान महावीर के संदेश वैश्विक कल्याण के संदेश हैं, इसलिए उनके विचारों एवं संदेशों के प्रचार-प्रसार की बड़ी आवश्यकता है.

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