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टिड्डियों का हमला चिंताजनक

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ऐसे समय में जब किसान लॉकडाउन के नुकसानदेह असर से निकलने की कोशिश कररहा है, उत्तर-पश्चिम भारत के कई इलाकों में टिड्डियों का हमला उनके लिए दोहरी त्रासदी है. कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान किसान अपनी ऊपज और उत्पादन (खासकर वे चीजें, जो जल्दी खराब हो जाती हैं,जैसे- सब्जियां, फल, दुग्ध उत्पाद, मछली आदि) को बाजार तक नहीं ला पायाऔर अभी भी उसे समुचित दाम नहीं मिल रहे हैं क्योंकि यातायात बाधित है तथा शहरों में मांग का स्तर गिरा हुआ है. अब उसे टिड्डियों के हमले का नुकसान भी झेलना है. अभी तो इस मुश्किल की शुरुआत ही है.

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देविंदर शर्मा

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कृषि अर्थशास्त्री

delhi@prabhatkhabar.in

ऐसे समय में जब किसान लॉकडाउन के नुकसानदेह असर से निकलने की कोशिश कररहा है, उत्तर-पश्चिम भारत के कई इलाकों में टिड्डियों का हमला उनके लिए दोहरी त्रासदी है. कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान किसान अपनी ऊपज और उत्पादन (खासकर वे चीजें, जो जल्दी खराब हो जाती हैं,जैसे- सब्जियां, फल, दुग्ध उत्पाद, मछली आदि) को बाजार तक नहीं ला पायाऔर अभी भी उसे समुचित दाम नहीं मिल रहे हैं क्योंकि यातायात बाधित है तथा शहरों में मांग का स्तर गिरा हुआ है. अब उसे टिड्डियों के हमले का नुकसान भी झेलना है. अभी तो इस मुश्किल की शुरुआत ही है.

टिड्डी दल के हमले के बारे में अंदाजा पहले से था और संयुक्त राष्ट्र की संस्था फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ) ने भी चेतावनी जारी कर दी थी कि मई और जून में ऐसी स्थिति पैदा हो सकती है. इसका कारण यह था कि इस साल मौसम टिड्डियों की पैदाइश के अनुकूल था. बीते दिसंबर और जनवरी में राजस्थान, गुजरात औरआसपास के अनेक इलाकों में टिड्डियों के हमले हुए थे. आम तौर पर ऐसा होता नहीं है कि सर्दियों के मौसम में टिड्डियों का हमला हो. तब भी एफएओ ने कहा था कि उनका प्रजनन हुआ है और वे वापस फिर मई-जून में आयेंगे. ऐसे में हमारी तैयारी पहले से होनी चाहिए थी क्योंकि हमें इस समस्या के बारे में चेतावनी मिल चुकी थी. अप्रैल में ही राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में टिड्डियों की हलचल की सूचना थी और अब मई के अंत तक यह कीट बहुत अंदर तक घुस आया है तथा राजस्थान के अलावा टिड्डी दल मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र,उत्तर प्रदेश, पंजाब, गुजरात, हरियाणा सीमा और अन्य इलाकों तक पहुंच गये हैं. टिड्डियों का यह व्यापक प्रसार बहुत चिंताजानक है.

सामान्य रूप सेअब तक यह समस्या राजस्थान और गुजरात के सीमावर्ती क्षेत्रों तक ही रहता था. टिड्डियों की यह प्रजाति अमूमन रेगिस्तानी इलाकों में पायी जाती है,लेकिन हरियाली की खोज में यह आगे तक बढ़ चुकी है. इनके साथ चिंता की बात यह है कि ये एक ही झटके में किसान के खेत को चौपट कर देती हैं. हमारे देशमें टिड्डियों के दल का आकार तीन से पांच वर्ग किलोमीटर के दायरे में देखा गया है. अफ्रीका में तो यह आकार दो हजार वर्ग किलोमीटर तक देखा गयाहै. ये दल कुछ मिनटों में ही खेत को खाने की क्षमता रखते हैं. टिड्डियों का जीवन चक्र नब्बे दिन का होता है और इस अवधि में वे तीन बार प्रजनन करती हैं. एक प्रजनन में टिड्डी दल की संख्या में बीस गुना तक बढ़ोतरी हो जाती है. इसके रास्ते में जो कुछ भी मिलेगा, यह सब खा सकता है. जो भी फसल खड़ी होगी, उसे यह निशाना बना सकता है. इससे झाड़ियां और सड़कों केकिनारे की हरियाली भी नहीं बच सकती है.

अक्सर ये पेड़ों के पत्ते भी खाजाता है. एक वायु सेना के अधिकारी ने बताया है कि टिड्डी दल ने एक बार लड़ाकू विमान का एक ईंजन ख़राब कर दिया था और हवाई पट्टी पर भी टिड्डियां भरी हुई थीं. टिड्डियों के हमले से निपटने के उपायों को लेकर दिशा-निर्देश निर्धारित हैं. अब तो कई तरह की दवाइयां और रसायन भी उपलब्ध हैं, जो बहुत प्रभावीहैं. इन्हें नियंत्रित करने के लिए सरकार के साथ किसान समुदायों को भी सहयोग करना होता है. चूंकि ऐसे हमले का मुख्य नुकसान किसानों को होता है,सो वे भी अपने स्तर पर अनेक उपाय करते हैं, जैसे बर्तन या अन्य चीजों सेआवाज पैदा कर टिड्डियों को भगाना. हालांकि केमिकल के इस्तेमाल से पर्यावरण पर नकारात्मक असर भी होता है, पर इनका उपायोग होता है.

यह भी उल्लेखनीय है कि अगर हमला बहुत बड़ा हो, तो फिर लोग भी लाचार हो जाते हैं. यदि यह संकट जून से जुलाई में प्रवेश कर गया, तो फिर यह अक्टूबर तक चलसकता है क्योंकि यह समय मॉनसून का होगा और यह उनके प्रजनन के लिए अनुकूलहोगा. जिन रास्तों से ये दल आते हैं, उनमें बीते महीनों में चक्रवात आये हैं और बारिश हुई है, जिसकी वजह से गर्मी के मौसम में हमारे यहां वेहमलावर हो रहे हैं. यह तो हमने देख लिया है, यह प्रकोप दिसंबर-जनवरी केठंड के मौसम में आ चुका है, जो कि पहले नहीं होता था, अब यह देखना है कि जुलाई से लेकर अक्टूबर तक यह क्या रूप अख्तियार करता है. अभी हमारी कोशिश यही होनी चाहिए कि टिड्डियों का हमला जुलाई में भी नचला जाए. अभी इस पर काबू पाना जरूरी है. देखा गया है कि टिड्डी दल जहां भी पहुंचा है, वहां वह प्रजनन करता है. इसी समय हमें उसे खत्म करना है औरयह काम रात में ही संभव हो सकता है क्योंकि तब वह बैठ जाती हैं. हमें उन किसानों की चिंता करनी चाहिए, जो इस हमले का शिकार है और उसके सामने जीवनयापन का संकट पैदा हो सकता है.

(बातचीत पर आधारित)

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