28.1 C
Ranchi
Wednesday, February 12, 2025 | 03:31 pm
28.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

श्रीलंका और पाकिस्तान से सबक

Advertisement

श्रीलंका के हालात अर्जेंटीना के विनिमय संकट की तरह हैं. संप्रभु बॉन्ड जारी करने की योजना बना रहे भारत के लिए यह एक चेतावनी हो सकती है.

Audio Book

ऑडियो सुनें

श्रीलंका में आर्थिक संकट की स्थिति कई वर्षों से बन रही थी, इसलिए महामारी या यूक्रेन युद्ध पर सारा दोष नहीं मढ़ा जा सकता है. ये दो बाहरी कारक हैं और निश्चित रूप से इनका असर भी रहा है, लेकिन ये सुविधाजनक राजनीतिक बहाने भी हैं. यह सही है कि महामारी के कारण पर्यटन से होनेवाली कमाई लगभग शून्य हो गयी. अन्य देशों में कार्यरत श्रीलंकाई कामगारों का रोजगार छूटने से बाहर से भी पैसा आना बहुत कम हो गया है.

ये कामगार अमूमन आठ अरब डॉलर सालाना भेजते थे. इन दो वजहों से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ. रही सही कसर तेल की बढ़ती कीमतों ने पूरी कर दी, क्योंकि श्रीलंका पूरी तरह आयातित तेल पर निर्भर है, किंतु जो तबाही और अस्थिरता हम अभी देख रहे हैं, वह कई वर्षों से तैयार हो रही थी.

बाहरी आर्थिक झटके इस कारण भारी साबित हुए, क्योंकि अर्थव्यवस्था के घरेलू आधार पहले से लगातार कमजोर होते जा रहे थे. यदि किसी अर्थव्यवस्था में कम और संभालने लायक वित्तीय घाटे की स्थिति नहीं है या समुचित मुद्रा भंडार नहीं है या मुद्रास्फीति नियंत्रण में नहीं है या कराधान ठीक नहीं है, तो थोड़ा सा आंतरिक या बाहरी झटका भी आर्थिक संकट की स्थिति पैदा कर सकता है.

अर्थव्यवस्था के स्वास्थ्य में गिरावट मुख्य रूप से पॉपुलिस्ट आर्थिक नीतियों तथा खराब आर्थिक संकेतों के प्रति सबकी लापरवाही के कारण आयी है. उदाहरण के लिए, आम तौर पर वृद्धि के समय बड़े वित्तीय घाटे को यह कह कर नजरअंदाज कर दिया जाता है कि यह आर्थिक बढ़ोतरी के लिए जरूरी है. वित्तीय घाटे की ऐसी स्थिति खर्च बढ़ने या करों में कटौती से आती है.

और, यही राजपक्षे सरकार ने 2019 में किया था. उस साल नयी बनी सरकार ने लोगों को लुभाने के लिए करों में कटौती की थी. वैट (वैल्यू एडेड टैक्स) को आधा कर दिया गया और कैपिटल गेंस टैक्स को पूरी तरह हटा दिया गया. शीर्ष नेतृत्व के तौर-तरीके अजीब थे. चार भाइयों में एक राष्ट्रपति, एक प्रधानमंत्री, एक वित्त मंत्री और एक कृषि मंत्री बन गये. खेल मंत्री इनका एक भतीजा है. ऐसे भाई-भतीजावाद के वातावरण में ढंग के लोकतांत्रिक शासन की अपेक्षा कैसे की जा सकती है? आलोचना एवं असहमति लोकतांत्रिक विमर्श के आवश्यक तत्व हैं और जब इन्हें दबाया जाता है, तो पतन सुनिश्चित हो जाता है.

श्रीलंका की वित्तीय लापरवाही और भी पहले शुरू हो गयी थी. वह अपने भारी कर्ज के किस्तों की चुकौती की स्थिति में नहीं है. उसका सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) लगभग 80 अरब डॉलर है, जबकि उसके ऊपर 51 अरब डॉलर का बहुत बड़ा कर्ज है. किस्त न चुकाने से देश की रेटिंग कमतर होगी और उसे भविष्य में कर्ज लेना मुश्किल हो जायेगा. श्रीलंका ने संप्रभु डॉलर बॉन्ड जारी करने का जोखिम भरा रास्ता अपनाया था और 2007 से उसने इसके जरिये 12 अरब डॉलर से अधिक का कर्ज उठाया है.

इसमें से 4.5 डॉलर इस साल चुकाने थे, लेकिन देश के पास केवल दो अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा ही बची है. सामान्य स्थिति में पुराने कर्ज को चुकाने के लिए देश नया कर्ज ले सकता था, पर आज वित्तीय और चालू खाता घाटों, 19 फीसदी से ज्यादा की मुद्रास्फीति और घंटों तक बिजली गुल रहने जैसी स्थितियों को देखते हुए कोई भी विदेशी जान-बूझ कर ऐसा नहीं करेगा. संप्रभु डॉलर बॉन्ड से विदेशी मुद्रा जुटाने का रास्ता लुभावन लगता है, पर यह जल्दी खतरनाक भी हो सकता है.

श्रीलंका पहला देश नहीं है, जो विदेशी बॉन्ड निवेशकों द्वारा मंझधार में छोड़ दिया गया हो. श्रीलंका के हालात अर्जेंटीना के विदेशी विनिमय संकट की तरह खराब हो सकते हैं. संप्रभु डॉलर बॉन्ड जारी करने की योजना बना रहे भारत के लिए यह स्थिति एक चेतावनी हो सकती है. जब आप किसी अन्य मुद्रा में उधार लेते हैं, तो आपके पास कर्ज से बाहर निकलने के लिए उससे मुकरने या उस मुद्रा को छापने की स्वतंत्रता नहीं होती.

श्रीलंका के संकट के साथ-साथ पाकिस्तान के हालात से भी सबक लिये जा सकते हैं. इमरान खान की सरकार गिरने की ऐतिहासिक घटना मुख्य रूप से खर्चीली नीतियों, आर्थिक कुप्रबंधन, 15 फीसदी की उच्च मुद्रास्फीति और भारी कर्ज का बोझ जैसे कारकों का परिणाम है. इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र होने के आरोप-प्रत्यारोप सच छुपाने के उपाय ही हैं.

खान को मिला लोकप्रिय जनादेश का नतीजा दुर्भाग्य से लोक-लुभावन नीतियां रहीं. एक विपक्षी सांसद नफीसा शाह ने खान पर आरोप लगाया कि उन्होंने राजनीतिक संस्कृति को तबाह किया तथा संसद व संस्थाओं को कमजोर किया.

पाकिस्तानी पत्रकार मार्वी सरमद ने एक लेख में चेताया है कि यह निष्कर्ष निकालना मूर्खतापूर्ण होगा कि पाकिस्तान में लोकतंत्र की जीत हुई है और इमरान खान का हटना इसका एक सबूत है. उनका दावा है कि यह सब पाकिस्तानी सेना का किया-धरा है. पाकिस्तान को आर्थिक कुप्रबंधन और उच्च मुद्रास्फीति भुगतनी पड़ी है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष या चीन जैसे बाहरी स्रोतों के कर्ज पर बहुत अधिक निर्भरता भी एक कारक है.

लोक-लुभावन नीतियों और वित्तीय अनुशासनहीनता का अंत अच्छा नहीं होता. वर्ष 1991 में भारत का संकट भी ऐसे ही कारकों का परिणाम था, जिनका असर 1990 के खाड़ी युद्ध और महंगे तेल से बेहद चिंताजनक हो गया तथा मुद्रा संकट पैदा हो गया. उसके बाद से कई बाहरी झटकों, जैसे- 1997 का पूर्वी एशिया संकट, डॉट कॉम प्रकरण, अमेरिका में आतंकी हमला, 2007-08 का वित्तीय संकट या अभी महामारी या यूक्रेन मसला आदि के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था टिकी हुई है और संकट टलता रहा है, लेकिन यह आत्मसंतोष का कारण नहीं होना चाहिए.

कुछ राज्य सरकारों की कर्ज और घाटे की नीतियां टिकाऊ नहीं हो सकती हैं, भले ही वे सीधे तौर पर संकट को न बुलाएं. जीडीपी के अनुपात में पंजाब का कर्ज 53 प्रतिशत है, जो निर्देशों के मुताबिक 20 प्रतिशत होना चाहिए. केंद्र का कर्ज जीडीपी के अनुपात में 61.7 प्रतिशत हो गया है. साल 2021 के राजस्व का 45 फीसदी हिस्सा ब्याज चुकाने में खर्च हुआ था. कुछ राज्य राष्ट्रीय पेंशन योजना की जगह गैर जिम्मेदाराना ‘परिभाषित लाभ’ योजनाएं लाना चाहते हैं. लोक-लुभावन और बड़ा कल्याणकारी खर्च करने की प्रवृत्ति बढ़ रही है. हम यह नजरअंदाज नहीं कर सकते हैं कि वित्तीय लापरवाही के क्या नतीजे होते हैं.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

संबंधित ख़बरें

Trending News

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें