13.1 C
Ranchi
Saturday, February 8, 2025 | 02:34 am
13.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

दिल्ली में 5 फरवरी को मतदान, 8 फरवरी को आएगा रिजल्ट, चुनाव आयोग ने कहा- प्रचार में भाषा का ख्याल रखें

Delhi Assembly Election 2025 Date : दिल्ली में मतदान की तारीखों का ऐलान चुनाव आयोग ने कर दिया है. यहां एक ही चरण में मतदान होंगे.

आसाराम बापू आएंगे जेल से बाहर, नहीं मिल पाएंगे भक्तों से, जानें सुप्रीम कोर्ट ने किस ग्राउंड पर दी जमानत

Asaram Bapu Gets Bail : स्वयंभू संत आसाराम बापू जेल से बाहर आएंगे. सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है.

Oscars 2025: बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप, लेकिन ऑस्कर में हिट हुई कंगुवा, इन 2 फिल्मों को भी नॉमिनेशन में मिली जगह

Oscar 2025: ऑस्कर में जाना हर फिल्म का सपना होता है. ऐसे में कंगुवा, आदुजीविथम और गर्ल्स विल बी गर्ल्स ने बड़ी उपलब्धि हासिल करते हुए ऑस्कर 2025 के नॉमिनेशन में अपनी जगह बना ली है.
Advertisement

सामाजिक बदलाव के प्रतीक कर्पूरी ठाकुर

Advertisement

डाॅ राम मनोहर लोहिया की मृत्यु के बाद जननायक समाजवादी आंदोलन के एक बड़े नेता के रूप में उभरे और देश की राजनीति में अपनी भूमिका निभायी.

Audio Book

ऑडियो सुनें

सामाजिक बदलाव के प्रतीक थे जननायक कर्पूरी ठाकुर. हाशिये के लोगों को सम्मान और इज्जत के साथ जीने का उन्होंने सपना देखा था. जीवन भर वह इसी काम में लगे रहे. सादगी के साथ अपने धुन में लगे रहे वाले कर्पूरी ठाकुर आजादी और रोटी, सामाजिक न्याय और व्यक्ति के जीवन की गरिमा स्थापित करने की दिशा में अपने वैचारिक आधारों को तेज करते रहे. जननायक की ईमानदारी चट्टान की तरह दृढ़ और अभेद्य थी.

- Advertisement -

अपने बौद्धिक परिष्कार, नैतिक विकास एवं आत्मिक उत्थान के लिए श्रेष्ठ साहित्य का स्वाध्याय वे निरंतर करते थे. सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन के लिए उन्होंने बड़े-बड़े आंदोलनों की अगुआई की. आजादी और रोटी मानव समाज की हर युग में अति महत्वपूर्ण और परिवर्तनकारी समस्याएं रही है. जननायक कर्पूरी ठाकुर भारत के स्वतंत्रता संग्राम के सच्चे सिपाही थे.

व्यक्ति का जीवन मूल्यवान है. जिंदा रहने के लिए उसे भोजन चाहिए. उनका जीवन संघर्षों, अभावों और अवरोधों से भरा हुआ था. उनका कहना था कि आदमी के जीवित और स्वस्थ्य रहने के लिए भोजन की व्यवस्था कितनी अहम है, यह कोई भूखा व्यक्ति ही बता सकता है. आजादी के साथ उन्होंने रोटी को जोड़ा. कुपोषण को उन्होंने अपने भ्रमण के दौरान अपनी आंखों से देखा था. अच्छा भोजन मिलने पर ही व्यक्ति शारीरिक रूप से बलवान बन सकता है.

देश की रक्षा के लिए निरोग और शक्तिशाली व्यक्ति की मांग होती आयी है. वह एक देशभक्त के रूप में जाने जाते हैं. देश की सीमाएं सुरक्षित रहे, इसके लिए वह व्यग्र रहा करते थे. उन्होंने एक मजबूत राष्ट्र के लिए मजबूत सेना की आवश्यकता पर जोर दिया. वह सामाजिक न्याय के प्रबल पक्षधर थे. यह सिद्धांत मुख्यत: समाज के वंचित वर्गों की दशा सुधारने की मांग करता है.

सामाजिक जीवन के तीन मुख्य क्षेत्रों-सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय के विश्लेषण से यह ज्ञात होता है कि तीनों एक दूसरे के पूरक है. ये तीनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं. सामाजिक न्याय की विस्तृत व्याख्या करने पर तीनों तरह के न्याय का बोध हो जाता है. सामाजिक जीवन में सभी व्यक्तियों की गरिमा स्वीकार की जाये.

विस्तृत अर्थ में सामाजिक न्याय का मूलमंत्र यह है कि सामाजिक जीवन से जो लाभ प्राप्त होता है, वह गिने-चुने हाथों में न सिमट कर रह जाये, बल्कि विशेष रूप से असहाय, निर्धन और निर्बल वर्गों को उसमें समुचित हिस्सा मिले ताकि वे गरिमापूर्ण जीवन व्यतीत कर सकें.

वह महान समाजवादी चिंतिक डाॅ लोहिया के इन विचारों के समर्थक थे. कार्ल मार्क्स ने वैज्ञानिक समाजवाद के सिद्धांत का प्रतिपादन किया, परंतु उन सिद्धांतों को लागू करने का काम लेनिन ने किया. उसी तरह कर्पूरी जी ने डॉ लोहिया के विचारों को धरातल पर उतारने का महत्वपूर्ण काम किया. वह मनुवादी वर्ण व्यवस्था और उससे उपजी जाति प्रथा के प्रबल विरोधी थे. वह दलितों के उत्थान के लिए कितने बेचैन थे, इसका पता उनकी इस उद्घोषणा से चलता है कि अपनी रक्षा के लिए दलितों के हाथों में हथियार का लाइसेंस दिया जाये.

डाॅ राम मनोहर लोहिया की मृत्यु के बाद जननायक समाजवादी आंदोलन के एक बड़े नेता के रूप में उभरे और देश की राजनीति में अपनी भूमिका निभायी.1967 का चुनाव ऐसा चुनाव था जब वे पिछड़ों के एक लाेकप्रिय नेता के रूप में उभरे और आरक्षण की एक समान नीति के पीछे पिछड़ी जातियों को एकताबद्ध करने में सफल हुए.

गरिमापूर्ण जीवन जीने का व्यक्ति को अधिकार होना चाहिए, इसमें किसी प्रकार का अतिक्रमण और हस्तक्षेप नहीं हो. जननायक इसे महत्व देते थे. भारत में प्राचीन काल से प्रचलित वर्ण व्यवस्था एवं जाति प्रथा के कारण व्यक्ति को गरिमापूर्ण जीवन जीने का अवसर प्राप्त नहीं था. स्वतंत्र भारत में राजनीतिक स्वतंत्रता सभी को प्राप्त है.

अति पिछड़े जैसे सामाजिक समूह छोटी जनसंख्या वाली जातियां होती हैं और इनका बसाव फैला और छितराया हुआ होता है. इस बसावट के कारण अत्यंत पिछड़ी जातियों का वोट प्रभावी नहीं होता था. लेकिन निर्वाचन आयोग की वर्तमान व्यवस्था में अत्यंत पिछड़े सामाजिक समूह का महत्व बढ़ गया. विभिन्न स्तर के चुनावों में कहीं-कहीं अपनी निर्णायक भूमिका वे अदा करने लगे हैं.

ट्रेंडिंग टॉपिक्स

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Word Of The Day

Sample word
Sample pronunciation
Sample definition
ऐप पर पढें